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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    जल प्रबंधन समय की मांग है। टिप्पणी करें।

    25 Oct, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    जल प्रकृति के सबसे महत्त्वपूर्ण संसाधनों में से एक है। पृथ्वी पर उपलब्ध जल का जितना प्रयोग हो रहा है, उससे अधिक जल प्रदूषित हो रहा है और व्यर्थ बहकर बर्बाद हो रहा है। इसलिये आज जल प्रबंधन की महती आवश्यकता है। कृषि, औद्योगिक, घरेलू, मनोरंजन हेतु तथा विभिन्न पर्यावरणीय गतिविधियों में जल महत्त्वपूर्ण अवयव है। आज कई कारणों से विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में रह रहे करोड़ों लोग भीषण जल-संकट का सामना कर रहे हैं। वे अशुद्ध और प्रदूषित जल का उपभोग करने को विवश हैं। साथ ही जनसँख्या वृद्धि, शहरीकरण और लोगों की जीवन-शैली में बदलाव से जल की मांग में तेज़ी के कारण जल सुरक्षा के समक्ष गंभीर चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं। जल-स्रोतों में बढ़ रहा प्रदूषण पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये खतरनाक होने के साथ-साथ स्वच्छ जल की उपलब्धता को भी प्रभावित कर रहा है।

    भारत में भी जल से जुड़ी तमाम समस्याएँ मौजूद हैं, जिनका मूल कारण जल की अनुपलब्धता नहीं, बल्कि जल की बर्बादी और कुप्रबंधन है। पिछले कुछ सालों में अनियमित मानसून और जलवायु परिवर्तन ने जल संकट को और बढ़ा दिया है। जल के इस संकट से निपटने के लिये जल प्रबंधन एक अपरिहार्य कदम है। वर्तमान में जल से जुड़ी समस्याओं का एकमात्र उपाय जल प्रबंधन में ही खोजा जा सकता है। सुपरिभाषित जल नीतियों और नियमों के अंतर्गत योजनओं का क्रियान्वयन, जल का वितरण और जल संसाधनों का इष्टतम उपयोग ही जल प्रबंधन कहलाता है। हालाँकि जल के बारे में नीतियाँ, कानून तथा नियम बनाने का अधिकार राज्यों के पास है, परंतु फिर भी जल संबंधी सामान्य सिद्धांतों को समाहित करने वाले राष्ट्रीय जल संबंधी ढाँचागत कानून का निर्माण करना समय की मांग है। तेज़ी से बदल रही परिस्थितियों को देखते हुए नई जल नीति बनाई जानी चाहिये।

    देश में पिछले 70 सालों में तीन राष्ट्रीय जल नीतियाँ बनी। पहली जल नीति 1987 में, दूसरी 2002 में तथा तीसरी जल नीति 2012 में बनी। इसके अलावा 14 राज्यों ने अपनी अलग जल नीति बना ली है। 2012 की नीति में जल को एक प्राकृतिक संसाधन मानते हुए इसे जीवन, आजीविका, खाद्य सुरक्षा और निरंतर विकास का आधार माना गया है।

     जल प्रबंधन के कुछ उपाय-

    • बड़ी जल-परियोजनाओं की जगह छोटे जलाशयों का निर्माण करना।
    • मृदा प्रबंधन तथा वनीकरण के प्रयासों में तेज़ी लाना, ताकि भूजल का रिचार्ज हो सके।
    • शहरी उपभोग के बाद के व्यर्थ जल का पुनर्चक्रीकरण करना।
    • जलापूर्ति के दौरान पानी के लीकेज से होने वाले नुकसान को कम करने के प्रयास करना।
    • उपभोग के आधार पर जल शुल्क की व्यवस्था करना तथा जल का वास्तविक मूल्य निर्धारित करना ताकि लोग ज़िम्मेदारी और कुशलता से पानी का इस्तेमाल करें।
    • खेती में ड्रिप तथा स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी जल संरक्षण तकनीकों को अपनाना।


    2016 के भारत जल-सप्ताह में इज़राइल को सहयोगी देश के रूप में शामिल किया गया। इज़राइल की तुलना में भारत में जल की उपलब्धता पर्याप्त है, लेकिन इज़राइल का जल प्रबंधन भारत से कहीं ज़्यादा बेहतर है। इज़राइल में खेती, उद्योग आदि कार्यों में पुनर्चक्रीकृत (recycled) जल का उपयोग अधिक होता है। 

    आज भारत की लगभग 30% आबादी शहरों में निवास करती है और आने वाले वर्षों में यह आँकड़ा और बढ़ने की संभावना है। अतः सरकारों और समुदायों को उचित जल प्रबंधन की ओर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है। नदियों को जोड़ा जाना भी इस ओर एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है। इससे उन इलाकों में जल की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है, जहाँ वर्ष के कुछ महीनों में भीषण जल संकट उत्पन्न हो जाता है। जल का उचित प्रबंधन न केवल समुदायों बल्कि राज्यों के बीच संभावित तनाव को कम करने में भी सहायक होगा। कृषि, औद्योगिक उत्पादन, पेयजल, उर्जा-विकास, सिंचाई तथा जीवन हेतु जल की निरंतरता बनाए रखने के लिये सतत् प्रयास ज़रूरी हैं।

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