“भारतीय परिवहन क्षेत्र में स्वच्छ ईंधन व्यवस्था लागू करने में आ रही कठिनाइयों के लिये ऑटोमोबाइल उद्योग की अरुचि के साथ-साथ सरकार की नीतियों का भी दोष है।” इस कथन पर चर्चा करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- स्वच्छ ईंधन की आवश्यकता को संक्षेप में लिखें।
- इस संबंध में उद्योग जगत की असंवेदनशीलता पर चर्चा करें।
- सरकार की वर्तमान परिवहन नीति में व्याप्त खामियों का उल्लेख करें।
- निष्कर्ष लिखें।
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अपने पर्यावरणीय संकल्पों को पूरा करने के लिये भारत को अपनी परिवहन व्यवस्था में वैकल्पिक ईंधन का प्रचलन बड़े पैमाने पर शुरू करना होगा। लेकिन इस संबंध में किये जाने वाले प्रयासों की राह में कई प्रकार की कठिनाइयाँ हैं। दरअसल भारत की परिवहन नीति जहाँ विसंगतियों से युक्त है, वहीं उद्योग जगत पर्यावरण सुरक्षा के प्रति कभी उतना गंभीर नहीं रहा है।
इस मामले में उद्योग जगत की असंवेदनशीलता को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
- उद्योग जगत के पास स्वच्छ ईंधन की दिशा में आगे बढऩे की एक योजना रही है, लेकिन या तो इसने उसे नज़रअंदाज़ किया या फिर जानबूझकर उसे कमज़ोर करने की कोशिश की गई।
- ईंधन एवं उत्सर्जन के बीएस-4 मानकों को मार्च 2017 तक पूरे देश में लागू हो जाना था, लेकिन उद्योग जगत ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और वे समय-सीमा के बाद भी बीएस-3 मानक वाले वाहन बेचते रहे। लेकिन सरकार ने इसकी इज़ाज़त नहीं दी, जिसे लेकर वाहन उद्योग ने निराशा जताई थी
- ऑटोमोबाइल उद्योग प्रदूषण और उससे होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को नज़रंदाज़ करता रहा है। अतः यह नीतिगत अनिश्चितता नहीं बल्कि सार्वजनिक विमर्श की अनदेखी करना है।
सरकार की परिवहन नीति में भी कुछ कमियाँ देखने को मिली हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-
- सरकार की वैकल्पिक ऊर्ज़ा को बढ़ावा देने की यह नीति निश्चित ही सराहनीय है, लेकिन इसके क्रियान्वयन को लेकर कई तमाम समस्याएँ मौजूद हैं।
- यदि ई-वाहन प्राकृतिक गैस एवं कोयले से पैदा होने वाली बिजली का इस्तेमाल करते हैं तो फिर हम वातावरण में कार्बन-डाइऑक्साइड को विस्थापित करेंगे न कि उसे खत्म कर सकेंगे। यानी ई-वाहनों का इस्तेमाल बढ़ने पर भी प्रदूषण बरकरार रहेगा। दरअसल होगा यह कि अब धुआँ कारों के साइलेंसर से न निकलकर ऊर्जा संयंत्रों की चिमनियों से निकलेगा।
- अब भी भारत में वाहनों की गिनती खासकर कारों की काफी कम है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक केवल 10 फीसदी भारतीयों के पास ही कारें थीं। इसका मतलब है कि मोटर वाहन अब भी एक बड़े तबके की पहुँच से दूर हैं। यानी भारत में अधिकांश आबादी अभी भी सार्वजनिक परिवहन के साधनों का उपयोग करती है। ऐसे में हमें ई-वाहन निर्माण का दायरा व्यापक करना होगा।
- ई-वाहन अपनाने की दिशा में अधिक साहसिक एवं आक्रामक होने के बजाय भारत की नीति ढुलमुल ही रही है। कुछ महीने पहले हाइब्रिड एवं इलेक्ट्रिक वाहनों के त्वरित समेकन एवं विनिर्माण के पहले चरण में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी बढ़ाने के नाम पर डीज़ल की औसत हाइब्रिड कारों को ही बढ़ावा दिया गया।
किसी भी देश की प्रगति का व्यक्तियों की आवाजाही और माल की ढुलाई से संबंधित उसकी दक्षता से गहरा संबंध होता है। अच्छी परिवहन व्यवस्था उपलब्ध संसाधनों, उत्पादन केन्द्रों और बाज़ार के बीच अनिवार्य संपर्क उपलब्ध कराते हुए आर्थिक वृद्धि में सहायता प्रदान करती है। प्रदूषण आज गंभीर समस्या है, अतः सरकार को चाहिये कि इस समस्या के समाधान के मुद्दे पर भी विचार करे और उन नीतियों का पालन करे जो व्यावहारिक हों।