निवेश का PPP मॉडल भारत की बुनियादी संरचना में निवेश का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। ढाँचागत क्षेत्र के लिये इसकी आवश्यकता और महत्त्व पर चर्चा करें।
10 Nov, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थापीपीपी परियोजना का अर्थ है किसी भी परियोजना के लिये सरकार या उसकी किसी वैधानिक संस्था और निजी क्षेत्र के बीच हुआ लंबी अवधि का समझौता। इस समझौते के तहत शुल्क लेकर ढांचागत सेवा प्रदान की जाती है। इसमें आमतौर पर दोनों पक्ष मिलकर एक स्पेशल परपज व्हीकल (एसपीवी) गठित करते हैं, जो परियोजना पर अमल का काम करता है। दोनों पक्षों के बीच जिस समझौते पर हस्ताक्षर होते हैं, उसे मॉडल कंसेशन एग्रीमेंट कहा जाता है।
आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया ने जब गति पकड़ी, तब देश के ढाँचागत क्षेत्र में बदलाव आना शुरू हुआ और इस क्षेत्र में विकास के लिये सार्वजनिक निजी भागीदारी का निवेश मॉडल काफी लोकप्रिय बनकर उभरा है। आज अवसंरचना के कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों, जैसे- सड़क, रेल, नवीकरणीय ऊर्जा, बंदरगाह, हवाई-अड्डा, पाइपलाइन और शहरी ढाँचागत क्षेत्र आदि में निवेश के लिये पीपीपी मॉडल को बढ़ावा दिया जा रहा है।
लाभ-
हालाँकि कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में पीपीपी परियोजनाओं से जुड़ी कुछ नकारात्मक प्रवृत्तियाँ भी हैं, जैसे- दोषपूर्ण रिस्क शेयरिंग, अयोग्य बिजनेस मॉडल और वित्तीय अस्थिरता आदि, जिसकी वजह से निजी कंपनियाँ कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के बाद निवेश बाहर निकाल देती हैं। पीपीपी के किसी भी प्रोजेक्ट के लिये काफी हद तक निजी क्षेत्र, बैंक कर्ज़ पर निर्भर रहते हैं। बैंकों का अपना क्षेत्रवार लक्ष्य होता है, जिसके पूरा हो जाने के बाद पीपीपी प्रोजेक्ट के लिये कर्ज़ मिलना मुश्किल हो जाता है।
महत्त्व
सार्वजनिक परियोजनाओं में पीपीपी के होने से मुख्य फायदा यह होता है कि निजी कंपनियाँ डिज़ाइन, निर्माण और संचालन की उत्कृष्ट कार्यकुशलता सार्वजनिक सेवा के लिये लाती हैं। ऐसा तर्क दिया जाता है कि निजीकरण से परियोजना संचालन में ज्यादा कुशलता आती है जिससे परियोजना लागत में बचत और लाभ अधिकतम होता है।
पीपीपी मॉडल के पक्ष में एक प्रमुख दावा यह भी किया जाता है कि चूँकि इस मॉडल में निजी वित्तीय संसाधनों का उपयोग होता है जिससे परियोजना में सार्वजनिक संसाधन लगाने ही नहीं पड़ते हैं। ये बचे हुए सार्वजनिक संसाधन सरकार की दूसरी नीतिगत प्राथमिकताओं के लिये काम में लाए जा सकते हैं।