उत्तर :
मनुष्य का शरीर असंख्य कोशिकाओं से बना होता है। स्टेम कोशिका विभाजित होने के बाद भी फिर से पूर्ण रूप धारण कर लेती है। इससे शरीर की लगभग सभी कोशिकाओं को निर्मित किया जा सकता है। अन्य कोशिकाएँ विभाजन होने पर क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। स्तंभ (स्टेम) कोशिका से शरीर के किसी अंग की कोशिका तैयार हो सकती है।
- स्टेम सेल बैंकिंग की प्रक्रिया में कोशिकाओं को क्रायोजेनिक तरीके से (-196°c तापमान पर) कई वर्षों के लिये संरक्षित करके रखा जा सकता है। प्रयोगशाला में कोशिका को उपयुक्त पोषक पदार्थ और वृद्धि कारकों की उपस्थिति में संवर्धित किया जाता है, जिससे विशिष्ट जीन सक्रिय होते हैं, कोशिका विभाजन बढ़ता है और विशेष ऊतकों का निर्माण होता है। इन ऊतकों से अंग और अंग से अंग तंत्र बनते हैं। स्टेम सेल्स का उपयोग कर बनाए गए अंगों की आनुवांशिक संरचना में ज़रा भी विविधता नहीं होती। इससे 75 से भी अधिक बीमारियों का इलाज संभव है।
- भ्रूण या गर्भनाल (umbilical cord) से एकत्र की गई स्टेम कोशिकाएँ ज्यादा उपयोगी होती हैं। गर्भनाल को अभी तक व्यर्थ समझकर फेंक दिया जाता था। अब यही भावी बीमारियों से मुक्ति का ज़रिया बन चुका है।
- वयस्क व्यक्ति के रक्त या बोनमैरो से एकत्र किये गए स्टेम सेल के विकसित होने की गति धीमी होती है।
- बीमार व्यक्ति का रक्त-संबंधी व्यक्ति के स्टेम सेल से उपचार किया जा सकता है। उदाहरण के लिये कोई व्यक्ति रक्त कैंसर से ग्रस्त है। ऐसे में रक्त-संबंधी व्यक्ति के बोनमैरो से स्टेम सेल लेकर उन्हें प्रयोगशाला में तैयार किया जाएगा तथा बीमार व्यक्ति को प्रत्यारोपित कर दिया जाएगा। ये कोशिकाएं कैंसर की वजह से नष्ट हो रही कोशिकाओं को बदल देंगी।
- इन कोशिकाओं में स्व-नवीकरण की अद्भुत क्षमता होती है। कोशिकाओं का यही गुण इन्हें रीजनरेटिव मेडीसिन्स और ऊतक व अंगों के ट्रांसप्लांटेशन का उन्नत विकल्प बनाता है।
- स्टेम सेल्स, कोशिकाओं और ऊतकों का अक्षय भंडार है। इन कोशिकाओं से पेंक्रियाज़, लीवर, मांसपेशी, हड्डी आदि का पुनर्निर्माण संभव है।
- स्टेम सेल्स के उपयोग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि ये कोशिकाएँ हमारे अपने शरीर की होती हैं तथा हमारा प्रतिरक्षा तंत्र इन्हें बाह्य समझकर अस्वीकार नहीं करता।
- यह तकनीक उन स्थितियों में भी बहुत कारगर है, जहाँ अंग प्रत्यारोपण संभव नहीं होता है, जैसे लीवर या गॉल ब्लैडर के कैंसर (ये अंग शरीर में जोड़े में नहीं होते अत: कैंसर की अंतिम अवस्था में पता चलने पर इन्हें काटकर अलग नहीं किया जा सकता)।
इनसे ल्यूकेमिया, हिस्टियोसाइटिक और फेगोसाइटिक डिसऑर्डर, प्रतिरक्षा तंत्र, प्लेटलेट्स, आरबीसी, प्लाज़्मा सेल और चयापचय की असामान्यताएँ, पीठ व कमर के दर्द, बुढ़ापे के कारण होने वाले दृष्टि-दोषों, कैंसर, पार्किंसन, मधुमेह, रीढ़ की हड्डी में होने वाली क्षतियों और कई प्रकार के आनुवंशिक रोगों और ट्यूमर को हमेशा के लिये ठीक किया जा सकता है।
स्टेम सेल से दिल का वॉल्व, फेफड़ा, धमनियाँ, उपास्थि, मूत्राशय और कृत्रिम शुक्राणु भी बनाए जा चुके हैं। स्टेम सेल से स्वस्थ और सक्रिय हृदय पेशियाँ बनाकर गंभीर हृदय रोगों से जूझ रहे मरीजों में सीधे ट्रांसप्लांट की जा सकती हैं या इंसुलिन का निर्माण करने वाली पेंक्रियाज़ की बीटा कोशिकाएँ डायबीटिज़ के रोगियों में ट्रांसप्लांट की जा सकती हैं
भविष्य में स्टेम सेल पर इतना अधिक कार्य बढ़ चुका होगा कि इससे प्रयोगशाला में कृत्रिम अंग जैसे गुर्दे, हृदय, लीवर आदि तैयार करना संभव हो सकेगा। हालाँकि वैज्ञानिकों का एक बड़ा वर्ग नैतिकता के मुद्दों को लेकर इस पर सहमत नहीं है।