बेरोज़गारी से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न प्रकारों का परिचय देते हुए बताएँ कि भारत में किस प्रकार की बेरोज़गारी पाई जाती है?
13 Dec, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा-
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बेरोज़गारी एक ऐसी स्थिति है जिसके अंतर्गत कार्य करने में सक्षम व्यक्ति को मांगे जाने पर भी रोज़गार नहीं मिल पाता है। बेरोज़गारी को किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिये एक सूचक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इसे मापने के लिये सामान्यतः बेरोज़गारी दर का प्रयोग किया जाता है, जो बेरोज़गार व्यक्ति और श्रमबल के अनुपात को दर्शाता है। उल्लेखनीय है कि भारतीय संदर्भ में 15-59 आयु वर्ग को श्रमबल माना गया है।
बेरोज़गारी के प्रकार:
चक्रीय बेरोज़गारी: ऐसी बेरोज़गारी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक उतार-चढ़ाव के कारण उत्पन्न होती है। ये उतार-चढ़ाव समग्र मांग से संबंधित होता है, अतः इसे मांगजनित बेरोज़गारी भी कहा जाता है। इस प्रकार की बेरोज़गारी को राजकोषीय और मौद्रिक नीति के माध्यम से दूर किया जा सकता है।
संरचनात्मक बेरोज़गारी: भारत जैसे देशों में इस प्रकार की बेरोज़गारी देखने को मिलती है। यह अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष से संबंधित होती है। इसके लिये संरचनात्मक ढाँचे में कमी, पूंजीगत मशीनरियों में निवेश का अभाव और कौशल विकास की कमी आदि को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है।
मौसमी बेरोज़गारी: मौसम के अनुसार रोज़गार के दशाओं में भी परिवर्तन होने लगता है। भारत के कृषि क्षेत्रों में इस तरह की बेरोज़गारी देखने को मिलती है। भारत में कृषि सिंचाई के लिये मानसून पर निर्भरता इस तरह की बेरोज़गारी के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। सिंचाई सुविधाओं के विकास के माध्यम से इसे दूर किया जा सकता है।
प्रच्छन्न बेरोज़गारी: यदि कोई व्यक्ति किसी कार्य में संलग्न है लेकिन उसकी उत्पादकता शून्य है तो इसे छिपी या प्रच्छन्न बेरोज़गारी कहा जाता है। अत्यधिक जनसंख्या का दबाव और रोज़गार के वैकल्पिक अवसर का न होना इसके प्रमुख कारण हैं। भारत में कृषि क्षेत्रों और ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी बेरोज़गारी देखने को मिलती है।
अल्प बेरोज़गारी: यह बेरोज़गारी की ऐसी स्थिति का द्योतक है जहाँ किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुकूल रोज़गार नहीं मिल पाता है या फिर मिलता भी है तो वह पर्याप्त समय के लिये नहीं मिल पाता है। भारत में इसे एक बड़ी समस्या के रूप में देखा जाता है। इसके कारण रोज़गार की गुणवत्ता प्रभावित होती है और ILO के ‘डिसेंट वर्क’ की विपरीत ‘वर्किंग पूअर’ जैसी विरोधाभासी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।