सशस्त्र संघर्ष की स्थिति में स्वायत्त मशीनों के उदय से पार पाने के लिए वैश्विक मानदंडों की आवश्यकता बताई जा रही है। स्वायत्त मशीनों के उदय से संबंधित समस्याओं को बताते हुए संघर्ष में उनकी भूमिका को नियंत्रित करने से संबंधित चुनौतियों की चर्चा करें?
उत्तर :
उत्तर कि रूपरेखा:
- स्वायत्त मशीन के बारे में बताएँ।
- इनके उदय से संबंधित समस्याओं को बताएँ।
- भूमिका को नियंत्रित करने से संबंधित चुनौतियों पर प्रकाश डालें।
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स्वायत्त मशीन का तात्पर्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता से युक्त ऐसी मशीनों से है जो अपने संचालन संबंधी निर्णय लेने में सक्षम होती हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विस्तार के कारण कभी टर्मिनेटर जैसी फिल्मों में कल्पना मानी जाने वाली ये मशीनें आज वास्तविकता बनती जा रही हैं। आतंकवाद तथा वैश्विक संघर्ष जैसी स्थिति में इनके दुरुपयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में स्वायत्त मशीनों के उदय से संबंधित समस्याओं को निम्न रूप में देखा जा सकता है:-
- प्रथम समस्या इनके उपयोग के उत्तरदायित्व निर्धारण से जुड़ी हुई है। स्वयं निर्णय लेने में सक्षम होने के कारण इनके प्रयोग के बाद उत्तरदायित्व का निर्धारण आसान नहीं होगा। ऐसे में उत्तरदायित्व के अभाव के कारण इनका प्रयोग एक व्यक्ति दूसरे के विरुद्ध आसानी से कर सकता है, क्योंकि उत्तरदायित्व की अवधारणा ही व्यक्ति को हथियारों के अनैतिक प्रयोग करने से रोकती है।
- एक समस्या यह भी है कि ये मशीनें नैतिकता के आधार पर अच्छे-बुरे का निर्धारण नहीं कर सकती। ऐसे में अच्छे व्यक्ति भी इनका शिकार हो सकते हैं। उदाहरण के लिये यदि कोई स्वायत्त मशीन हथियार का प्रयोग करने पर हमला करने के लिए निर्देशित है, तो ऐसे व्यक्ति भी इसका शिकार हो सकते हैं जो हथियार का प्रयोग अपने बचाव के लिये कर रहे हैं।
- युद्ध की स्थिति में सैनिकों के अलावा आम नागरिक भी इनके शिकार हो सकते हैं, जो युद्ध की नैतिकता के विरुद्ध है।
- इसके अलावा इन मशीनों का प्रयोग विश्व में हथियारों की होड़ को बढ़ाकर वैश्विक शांति को प्रभावित कर सकती है।
- चरम स्थिति में यदि इन मशीनों की कृत्रिम बुद्धिमत्ता का स्तर इतना बढ़ जाए कि ये अपने स्वार्थ के बारे में सोचने लगीं, तो ऐसी स्थिति में ये संपूर्ण मानवता के लिये खतरा बन सकती हैं। ‘रोबोट’ जैसी फिल्मों में इस स्थिति को दिखाया गया है।
इन्हीं कारणों से संयुक्त राष्ट्र के जनेवा में संपन्न सम्मेलन में उनकी भूमिका को नियंत्रित करने की आवश्यकता की बात की गई है। इससे संबंधित चुनौतियों को निम्न रूप में देखा जा सकता है:-
- प्रथम चुनौती इनके प्रयोग के उत्तरदायित्व को स्पष्ट रूप से निर्धारित करने की है, ताकि दुरुपयोग की स्थिति में संबंधित व्यक्ति, समूह या देश पर कार्रवाई की जा सके।
- एक चुनौती वैश्विक स्तर पर एक ऐसे शक्तिशाली निकाय के निर्माण की है, जो विश्व में इनसे संबंधित प्रौद्योगिकी के प्रयोग और विस्तार को नियंत्रित करें, ताकि आतंकवादी समूह इनका प्रयोग न कर पाएँ।
- इसके अलावा मशीन निर्माण संबंधी नियमों को भी स्पष्ट किये जाने की आवश्यकता है, ताकि अच्छे व्यक्तियों पर इनका दुष्प्रभाव न पड़े।
- किसी भी स्थिति में अंतिम नियंत्रण मनुष्य के पास ही होना चाहिये, ताकि इसके विनाशकारी प्रयोगों को रोका जा सके। साथ ही ये मशीनें ऐसे प्रोग्रामों से युक्त होनी चाहिये कि मानव जाति को खतरा होने से पहले ये स्वयं को ही नष्ट कर लें।
स्पष्ट है कि इन मशीनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए इन चुनौतियों पर विचार करना आवश्यक है।