भारतीय कृषि के विकास में भूमि-सुधारों की भूमिका को रेखांकित करें। भारत में भूमि-सुधारों की सफलता के लिये उत्तरदायी कारकों की पहचान कीजिये।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- संक्षेप में भूमि सुधार को बताएँ।
- भूमि सुधार के माध्यम से कृषि विकास की प्रक्रिया को बताएँ।
- किन पहलों ने भूमि सुधार को सफल बनाया, चर्चा करें।
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भूमि सुधार का तात्पर्य भूमि के स्थायित्व और प्रबंधन के मौजूदा पैटर्न को बदलने हेतु किये गए संस्थागत सुधारों से है। भूमि सुधार के माध्यम से भारतीय कृषि को निम्नलिखित रूप में सुदृढ़ किया जा सकता है-
- वर्तमान में भारत में खंडित भू-भाग या जोतों के छोटे आकार की समस्या विद्यमान है और लगभग 67% किसानों के पास 1 हेक्टेयर से भी कम भूमि उपलब्ध है। ऐसे में सहकारी खेती के माध्यम से जोतों के छोटे आकार की समस्या को कम किया जा सकता है।
- काश्तकार किसानों को भूमि से ज़मींदारों द्वारा मनमाने ढंग से बेदखल कर दिया जाता है, ऐसे में उचित काश्तकारी कानून के माध्यम से काश्तकारों के अधिकारों को संरक्षित किया जा सकता है।
- सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु जिन उपायों या सहायता आधारित कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है, इनके लाभों को ज़मींदारों या भूमि मालिकों के स्थान पर किसानों तक पहुँचाने की प्रक्रिया को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
भारत में भूमि-सुधार की प्रक्रिया कई चरणों में संपादित हुई है और इसकी सफलता में कई कारकों का योगदान रहा है-
- राजनीतिक इच्छा-शक्ति के माध्यम से विभिन्न सुधारों को लागू करना। जैसे- भूमि सुधार को 9वीं अनुसूची में शामिल करना और संपत्ति को मूल अधिकार की सूची से हटाकर कानूनी अधिकार बनाना।
- भूमि संबंधी अधिकारों और संवैधानिक प्रावधानों के प्रति लोगों में जागरूकता ने इस संबंध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों और सहकारी समितियों ने सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों के अधिकतम लाभ किसानों को उपलब्ध कराने का कार्य किया।
- हरित क्रांति के दौरान उच्च पैदावार क्षमता वाले बीज की किस्मों, कार्बनिक उर्वरकों और विभिन्न आगतों पर सब्सिडियों ने भूमि सुधार को प्रभावी बनाया।
वस्तुतः भूमि सुधार एक सतत् प्रक्रिया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद किये गए सुधारों ने भूमिहीनों को भूमि उपलब्ध कराई है, किंतु वर्तमान में भी अनुकूल फसल प्रतिरूप, कार्बनिक खेती और सतत् कृषि को अपनाने की आवश्यकता है।