नई आर्थिक नीति से आप क्या समझते हैं नई आर्थिक नीति के तहत अपनाए गए सुधारों पर प्रकाश डालते हुए यह बताएँ कि वर्तमान समय में यह कितनी सफल रही।
02 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थानई आर्थिक नीति का तात्पर्य भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने के लिए 1991 में लाई गई नीतियों से है। नई आर्थिक नीति के उपायों को स्थिरीकरण उपाय तथा संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रम में बांटकर देखा जा सकता है।
अर्थव्यवस्था में त्वरित सुधारों के लिए स्थिरीकरण उपाय को लाया गया। इसके तहत रुपए के विनिमय दर का अवमूल्यन करना, आईएमएफ से उधार लेना, कीमत में स्थिरीकरण तथा करना मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाना जैसे उपायों पर बल दिया गया।
संरचनात्मक समायोजन सुधारों को प्रथम पीढ़ी तथा द्वितीय पीढ़ी के सुधारों में बांटकर देखा जा सकता है। इसमें औद्योगिक सुधारों के तहत छः उद्योगों को छोड़कर अन्य उद्योगों को लाइसेंस मुक्त किया गया, बाजार आधारित उत्पादन नीति को बढ़ावा किया गया तथा तकनीकी उन्नयन हेतु पूंजीगत वस्तुओं के आयात पर छूट दी गई। वित्तीय सुधारों के तहत रिजर्व बैंक की भूमिका को नियामक के स्थान पर सुविधादाता में बदल दिया गया तथा एसएलआर एवं सी एल आर की मात्रा को तर्कसंगत बनाया गया। इसके अलावा विदेशी संस्थाओं को भारतीय वित्त बाजार में निवेश की अनुमति दी गई। वही राजकोषीय सुधारों के तहत कर को तर्कसंगत बनाकर कर की मात्रा में वृद्धि की गई,विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने के लिए आयातों पर प्रतिबंध को कम किया गया और निर्यात प्रोत्साहन को बढ़ावा दिया गया।
दूसरी पीढ़ी के सुधारों में इन्हीं सुधारों को व्यापक रुप से लागू करने के साथ-साथ अवसंरचना के विकास का प्रयास किया जा रहा है। उदाहरण के लिए औद्योगिक क्षेत्र की नीति को वृहद उद्योगों के साथ-साथ लघु तथा कुटीर उद्योगों पर भी लागू किया गया तथा वित्तीय क्षेत्र में मुद्रा बाजार के स्थान पर पूंजी बाजार के विकास पर बल दिया जा रहा है। इसके अलावा विस्तारीकरण नीति के तहत कृषि सुधार बुनियादी ढांचा सुधार तथा श्रम सुधारों पर बल दिया जा रहा है।
आज भारत पीपीपी के आधार पर विश्व की सब तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। साथ हीभारत में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 1993 के 45 प्रतिशत की तुलना में 2011 में घटकर 22 प्रतिशत तक सीमित हो गई है।ये आकड़े बताते हैं कि नई आर्थिक नीति अपने उद्देश्यों में काफी हद तक सफल रही है। किंतु भारत में अमीरों तथा गरीबों के बीच बढ़ता अंतराल तथा प्रति व्यक्ति आय के रूप में भारत का कमजोर प्रदर्शन यह बताता है कि यह नीति पूर्णता समावेशी नहीं हो पाई है। अर्थव्यवस्था की संपूर्ण सुधार के लिए इसे अधिक समावेशी बनाए जाने की आवश्यकता है।