वित्तीय दायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख करते हुए इसकी प्रासंगिकता पर विचार करें।
03 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
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भारत में राजकोषीय घाटे से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिये 2003 में एफआरबीएम एक्ट को लाया गया था। इसके मुख्य प्रावधान निम्नलिखित है:-
किंतु सरकार की यह नीति आतंरिक और बाह्य समस्याओं के कारण पूर्णतः सफल नहीं हो पाई। उदाहरण के लिये मानसून संबंधी समस्या, अकाल तथा 2008 के वैश्विक संकटों से यह नीति प्रभावित हुई।
प्रासंगिकता
राजस्व तथा राजकोषीय घाटे को कम करने का लक्ष्य आज भी प्रासंगिक है। किंतु समस्या अधिनियम के प्रावधानों की व्यावहारिकता में है। वर्तमान परिस्थिति में भारत का वैश्विक जुड़ाव बढ़ा है। साथ ही वैश्विक तापन के कारण मानसून की अनिश्चितता भी बढ़ी है। ऐसे में राजस्व तथा राजकोषीय घाटे को निश्चित किया जाना व्यवहारिक नहीं है। इसी संदर्भ में एन के सिंह समिति ने मौजूदा कानून को समाप्त कर उसकी जगह नया कर्ज़ और राजकोषीय उत्तरदायित्व कानून बनाने की सिफारिश की है। इसमें राजकोषीय घाटे को प्रति वर्ष निर्धारित करने के लिये 3 सदस्यीय राजकोषीय परिषद बनाने का सुझाव दिया गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा के समय खतरा होने की स्थिति, राष्ट्रीय आपदा की स्थिति तथा कृषि उत्पादों के खराब होने पर राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में फेरबदल की बात को स्वीकार किया गया है। इसके अलावा इस बात पर भी बल दिया गया है कि राजकोषीय घाटा और विकास निर्धनता उन्मूलन के आड़े नहीं आना चाहिये। सामान्य परिस्थिति में समिति के अनुसार भी 2023 तक राजकोषीय घाटे को कम कर 0.8 % के स्तर पर लाने की बात की गई थी।
अतः अधिनियम को प्रासंगिक बनाये जाने की आवश्यकता है।