नदी जोड़ो परियोजना के समर्थन में जहाँ एक ओर बाढ़ और सूखे के प्रभाव का नियंत्रण, पीने और सिंचाई हेतु जलापूर्ति आदि तर्क प्रस्तुत किये जाते रहे हैं, वहीं इस परियोजना के विरोध में भी कुछ तर्क मौजूद हैं। चर्चा करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- प्रस्तावना
- नदी जोड़ो परियोजना के विरोध में तर्क
- निष्कर्ष
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जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग और जल-प्रबंधन में खामियों के चलते देश के कई इलाके प्रतिवर्ष भीषण जल संकट से जूझते हैं। साथ ही देश की कुछ नदियों में प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ से भी जन-धन की व्यापक हानि हो रही है। इन सब समस्याओं का सामना करने के लिये सरकार द्वारा नदी जोड़ो परियोजना को साकार करने के प्रयास किये जा रहे हैं। इसके अंतर्गत देश की 30 से ज्यादा नदियों को जोड़ने की बात की जा रही है।
जिस प्रकार इस परियोजना से होने वाले लाभ गिनाए जाते रहे हैं, उसी प्रकार इसके विरोध में भी कुछ वैध तर्क मौजूद हैं, जो इस परियोजना के समक्ष चुनौती उत्पन्न करते हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
- प्रत्येक नदी की अपनी प्राकृतिक ढाल और पारिस्थितिकी होती है, जो इस परियोजना से बुरी तरह प्रभावित होगी।
- देश में कई उदाहरण ऐसे हैं जो बताते हैं कि जब नदियों के पानी की दिशा नहरों के ज़रिये मोड़ी गई, तो उन्होंने आस-पास की ज़मीन को खारा और दलदली बना दिया। उदाहरण- उ.प्र. की शारदा नहर।
- इन नहरों से होने वाले रिसाव के कारण हज़ारों हेक्टेयर भूमि में जलजमाव और सीलन की समस्या उत्पन्न हो गई है, जिससे जल की कम आवश्यकता वाली गेहूँ और दलहन की फसलें ख़राब हो रही हैं।
- नहरों में तेज़ी से भरने वाली गाद न सिर्फ नहर की पानी ले जाने की क्षमता को प्रभावित करती है बल्कि यह कृषि भूमि को भी बंजर बना रही है।
- नहरों तथा नदी जल बँटवारे को लेकर देश में कई राज्यों के बीच विवाद चल रहे हैं। उदा.- सतलुज-यमुना लिंक नहर और कावेरी जल विवाद।
- नदी-जोड़ो परियोजना के लिये, किसी भी दूसरी परियोजना की तुलना में कहीं अधिक भूमि की आवश्यकता होगी। इसके लिये भूमि अधिग्रहण सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती होगा।
- कुछ अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण भी चिंताजनक हैं, जैसे- अमेरिका के कोलोरेडो से लेकर मिसीसिपी नदी घाटी तक बड़ी संख्या में ऐसी परियोजनाएँ बाढ़ का प्रकोप बढ़ाने लगी थीं, साथ ही उनसे विद्युत उत्पादन भी धीरे-धीरे कम होने लगा। जिसके कारण वहाँ कई बांध तोड़ने पड़े।
- भारत भू-सांस्कृतिक विविधता वाला देश है। यहाँ विभिन्न क्षेत्रों में सिंचाई और पेय जल प्रबंधन के लिये अपनाए जा रहे तरीके भिन्न-भिन्न हैं। इसलिये जल-संकट के लिये सब पर एक समाधान थोपना ठीक नहीं।
इस प्रकार यदि नदियों की भू-गर्भीय स्थिति, उनमें गाद की मात्रा तथा देश-विदेशों में ऐसी परियोजनाओं के अनुभव पर ध्यान दिया जाए तो नदी जोड़ो परियोजना के बारे में बताए जाने वाले लाभ प्रश्नगत हो जाएंगे।