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प्रश्न :
मानव निर्मित आपदाओं की शृंखला ने बड़े पैमाने पर हो रहे विकास और पृथ्वी के संसाधनों के दोहन पर सोचने के लिये हमें मज़बूर कर दिया है। भारत में मानव निर्मित आपदा के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण करें।
27 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधनउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- प्रस्तावना
- मानव निर्मित आपदाओं के कारण
- मानव निर्मित आपदा के कुछ उदाहरण
मानव निर्मित आपदा प्राकृतिक आपदा से भिन्न होती है, क्योंकि यह घटना मानव मंशा, लापरवाही या त्रुटि या एक मानव निर्मित प्रणाली की विफलता से प्रेरित होती है। यह देखना बहुत ही चिंताजनक है कि मानव प्रेरित गतिविधियों की वजह से मानव का विनाश हो रहा है।
पर्यावरणविद् प्रकृति के शोषण को रोकने के लिये सख्त कानून बनाने की दिशा में सक्रिय रहे हैं। इस संदर्भ में सरकार समय-समय पर कदम उठाती रही है तथा पीड़ित परिवारों को मुआवज़ा देकर इस स्थिति को टालने की कोशिश करती रही है। हम ज़िम्मेदारियों से दूर भागते हैं और प्रकृति पर दोषारोपण करते हैं तथा इसे ‘भगवान की इच्छा’ के रूप में दर्शाते हैं लेकिन इस मामले की सच्चाई यह है कि हममें से हर एक पर्यावरण को नष्ट करने और ऐसी स्थितियों को जन्म देने के लिये ज़िम्मेदार है।
पृथ्वी, मानव द्वारा संसाधनों के अतिशय शोषण को और अधिक बर्दाश्त नहीं कर सकती। औद्योगिक क्रांति के समय से पृथ्वी के संसाधनों का हर तरह से शोषण किया जा रहा है। बहुत सारा विषाक्त और मानव अपशिष्ट, जल स्रोतों में फेंका जा रहा है, जीवाश्म ईंधन जलाए जा रहे हैं तथा मानव कचरा भूमि के अंदर दफन किया जा रहा है। हाल के समय तक भारत और दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था। परंतु मानव निर्मित आपदाओं की शृंखला ने हमें इस दिशा में सोचने को मज़बूर कर दिया है। क्योंकि प्रकृति हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करेगी जैसा हम उसके साथ करेंगे।
भोपाल गैस त्रासदी में मिथाइल आइसोसाइनेट गैस और अन्य रसायनों के रिसाव होने के कारण आधी रात को आँखों और फेफड़ों में जलन शुरू हो गई थी।
ओलियम गैस रिसाव- भोपाल गैस रिसाव के बाद ही यह रिसाव राजधानी दिल्ली में हुआ। इसने लोगों को काफी भयभीत किया जो दो दिन पहले ही हुए भोपाल गैस त्रासदी के सदमे से उबर रहे थे।
2005 में आई महाराष्ट्र बाढ़- यह बाढ़ 24 घंटे में दर्ज आठवीं सबसे भारी वर्षा के कारण आई थी। इस बाढ़ का एक महत्त्वपूर्ण कारण इस शहर का प्राचीन ड्रेनेज सिस्टम था।
2010 लद्दाख बाढ़- यह ग्लोबल वार्मिंग के चलते वर्षा के पैटर्न में आए परिवर्तन के कारण हुआ था।
2013 में महाराष्ट्र में सूखा- दरअसल वर्षा न होना सूखे का एक कारण है, लेकिन प्रमुख अंशदायी कारक मौजूदा जल संसाधनों का कुप्रबंधन, जल वितरण की उचित नीति का अभाव तथा अन्य क्षेत्रों की तुलना में उद्योगों को अधिक पानी का वितरण आदि हैं।
पुणे का भूस्खलन- भूस्खलन दो प्रकार के होते हैं, प्रकृति प्रेरित तथा मानव प्रेरित। वर्तमान भूस्खलन संभवतः मानव जनित था जो इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हो रहे निर्माण कार्य, सड़क निर्माण, वनों की कटाई और खेती से हुआ था।
ये आपदाएँ गंभीर चेतावनी हैं कि पृथ्वी और अधिक मानव अपशिष्ट बर्दाश्त नहीं कर सकती। अगर हम अभी अपनी गतिविधियों को नियंत्रित नहीं करते हैं, तो कुछ वर्षों में हमारी आने वाली पीढ़ी को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। भारत अभी एक विकासशील देश है जिसे अपने पर्यावरण कानूनों और नीतियों में बहुत अधिक परिवर्तन की आवश्यकता है। भारत को एक मज़बूत कदम उठाते हुए विश्व को एक साफ संदेश देने की ज़रूरत है। हमारे उद्योगों में से अधिकांश अभी भी पर्यावरण कानूनों और प्रोटोकॉल का उल्लंघन कर रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में पौधों का अधिक-से-अधिक रोपण, कंपनियों के बीच प्रेरित कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी की अवधारणा, कई स्थानों पर कचरे के डिब्बों की स्थापना, बच्चों तथा अन्य वर्गों के बीच व्यापक जागरूकता कार्यक्रम आदि कई परिवर्तन देखने को मिले हैं। लेकिन अभी भी लाखों लोग पर्यावरण प्रभाव और उसके परिणामों के बारे में अनजान हैं।
यह बदलाव सकारात्मक और प्रेरणादायक है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और प्रोटोकॉल का हिस्सा बनना बदलाव नहीं ला सकता। प्रयास ज़मीनी स्तर पर किये जाने चाहियें। हमें जल्द ही काम करना होगा तथा जल्द ही कार्रवाई करनी होगी, अन्यथा मानव खुद मानव जाति के अंत का कारण बन जाएगा।
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