"महानगर से लेकर ग्रामीण एवं तटीय क्षेत्रों में बाढ़ आपदा प्रबंधन पर सवाल उठाती है। यद्यपि बाढ़ प्राकृतिक आपदा है, परंतु मानव इसे अधिक भयावह बना देता है,” स्पष्ट करें तथा भारत में बाढ़ प्रबंधन पर संक्षिप्त चर्चा करते हुए बाढ़ से बचाव के संदर्भ में उपाय सुझाएँ।
01 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधन
उत्तर की रूपरेखा:
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नदी, झील या सागर तल के उत्थान के कारण भूमि के अस्थायीतौर पर आप्लावन को बाढ़ कहते हैं। इसकी उत्पत्ति अतिवृष्टि, हिमद्रवण, उच्च ज्वार, बांध टूटने आदि कारणों से हो सकती है। हाल ही के वर्षों में आई बाढ़ के उदाहरणस्वरूप नासिक बाढ़, असम बाढ़ और आंध्र व तमिलनाडु में आई बाढ़ों ने आपदा प्रबंधन पर सवाल खड़े किये हैं। हालाँकि, बाढ़ एक प्राकृतिक कारण है परंतु मनुष्य की गतिविधियों ने इसकी भयावहता को चरम पर ला दिया है।
मानवीय गतिविधियों, जैसे- वनोन्मूलन, निचले क्षेत्रों में भूस्खलन के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों तथा तटीय क्षेत्रों में निर्माण कार्य, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में मानव बस्तियों का निर्माण और आर्थिक गतिविधियाँ, नदी तथा झीलों में प्रदूषकों और अवसादों में वृद्धि ने बाढ़ के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ा दिया है। इसी का परिणाम हाल के बाढ़ों, विशेषतः उत्तराखण्ड और आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु में आई बाढ़ के भयावह परिणामों के संदर्भ में देखा जा सकता है।
भारत में आपदा प्रबंधन की अपर्याप्त व्यवस्थाएँ इसके प्रभाव को बढ़ा देती है। वर्तमान में आपदा प्रबंधन का ढाँचा द्विस्तरीय हैः
राज्य स्तरीय तंत्रः इसके अंतर्गत जल संसाधन मंत्रालय, राज्य तकनीक सलाहकार समिति और बाढ़ नियंत्रण बोर्ड शामिल हैं।
केंद्रीय सरकार तंत्रः इसके अंतर्गत अनेक संगठन और विशेषज्ञ समितियाँ शामिल हैं। जिनमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), केंद्रीय जल कमीशन, ब्रह्मपुत्र बोर्ड, गंगा बाढ़ नियंत्रण कमीशन आदि प्रमुख हैं।
उपर्युक्त प्रयासों के बावजूद वर्तमान में बाढ़ एक भयावह समस्या बनी हुई है, जिसका कारण नियमों और कानूनों का अप्रभावी क्रियान्वयन, आपदा प्रबंधन से जुड़े कर्मचारियों के लिये उचित प्रशिक्षण की अनुपलब्धता, संसाधनों की अपर्याप्तता, राज्यों की राजनैतिक इच्छा-शक्ति के अभाव के रूप में देखा जा सकता है।
अतः बाढ़ के प्रभावों को कम करने के लिये निम्न प्रयास किये जा सकते हैं:
उपयुक्त प्रयासों से न केवल आपदा के जोखिम को कम किया जा सकेगा बल्कि होने वाली व्यापक आर्थिक- सामाजिक हानि से बचा जा सकेगा।