हाल ही में सरकार द्वारा उर्वरकों पर प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के रूप में सब्सिडी देने का निर्णय लिया गया। उर्वरकों पर दिया जाने वाला DBT अन्य DBT से किस प्रकार भिन्न है? इसके लाभ तथा इससे संबंधित चुनौतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी करें।
07 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
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सब्सिडी को बेहतर रूप में लक्षित करने तथा लिकेज को नियंत्रित करने के लिये हाल ही में सरकार ने उर्वरक पर DBT के रूप में सब्सिडी देने का निर्णय लिया तथापि यह LPG व अन्य DBT से भिन्न है, इसे हम निम्नलिखित रूपों में देख सकते हैं:
a. उर्वरक पर उत्पादन लागत तथा किसानों को बेचे जाने वाले मूल्य का अंतर जो कि सब्सिडी का मूल्य होगा, किसानों की बजाये सीधे उर्वरक उत्पादक कंपनी को दिया जाएगा।
b. पॉइंट ऑफ़ सेल (POS) उपकरण की सहायता से किसानों के आधार नंबर को रिकॉर्ड किया जायेगा जब वे उर्वरक खरीदेंगे साथ ही एक प्रमाणित रसीद जिसमें बिक्री व सब्सिडी का विवरण होगा वह भी किसानों को प्राप्त होगा।
c. उर्वरक विक्रेता के पास उपलब्ध बिक्री के आँकड़े स्वत: अपडेट हो जाएंगे और किसानों को लिखित मूल्य पर उर्वरक उपलब्ध होगा।
d. सब्सिडी, उर्वरक उत्पादक कंपनियों को डीलरों द्वारा की गई वास्तविक बिक्री के आधार पर प्राप्त होगी।
लाभ:
i. DBT से व्यपवर्तन (diversion) पर रोक, लीकेज पर नियंत्रण तथा बेहतर पारदर्शिता, जवाबदेहिता व दक्षता सुनिश्चित करना संभव होगा।
ii. यह बेहतर मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, संतुलित उर्वरीकरण तथा बेहतर उत्पादन को भी बढ़ावा देगा।
iii. LPG तथा अन्य प्रकार की DBT सब्सिडी उर्वरकों पर नहीं दी जा सकती है क्योंकि उर्वरक क्षेत्र में लाभार्थी तथा उसकी पात्रता स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है।
iv. कुछ उर्वरकों पर सब्सिडी दर अत्यधिक है, इसलिये अधिकांश किसानों के लिये यह एक बड़ा वित्तीय बोझ होता कि वह पहले मूल्य चुकाएँ और बाद में सब्सिडी प्राप्त करें।
v. यूरिया, पोटाश तथा फास्फोरस के विभिन्न प्रकार के उर्वरकों पर अलग-अलग सब्सिडी दी जाती है इसलिये एक से आधिक सब्सिडी उत्पाद के कारण भी किसानों को DBT के रूप में उर्वरक सब्सिडी देना आधिक जटिल होता।
vi. यूरिया के संबंध में भिन्न-भिन्न कंपनियों के उत्त्पादन प्रक्रिया के आधार पर सब्सिडी दर अलग-अलग होती है। इसे भी सामान्य DBT सब्सिडी के तहत समायोजित कर पाना मुस्किल था।
चुनौतियाँ:
i. बायोमेट्रिक मिसमैच, प्रमाणीकरण विफलता तथा इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसी समस्याएँ वर्तमान में भी ग्रामीण क्षेत्रों में बरकरार हैं जो इस कार्यक्रम की सफलता को नकारात्मक रूप में प्रभावित कर सकती हैं। परन्तु यह आशा की जा सकती है कि भविष्य में इंटरनेट के बढ़ते प्रसार से इस समस्या का निदान हो जाए।
ii. एक नए तंत्र का निर्माण करना तथा सभी हितधारकों को नए तंत्र के प्रति जागरूक व संवेदनशील बनाना कठिन कार्य था तथापि पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इसकी सफलता से आशा की जा सकती है कि आगे भी यह योजना सफल रहेगी।
iii. फिर उर्वरक डीलरों के मार्जिन में गिरावट से संबंधित कुछ समस्याएँ हैं जिन्हें प्राथमिकता के स्तर पर संबोधित करने की आवश्यकता है।
iv. पीक समय में POS द्वारा बिक्री में लगने वाला अत्यधिक समय फसलों के पैदावार एवं बिक्री सीजन में व्यवहार्य नहीं होगा। पीक टाइम ट्रांजेक्शन लोड से निपटने के लिये अर्ली-चेक-आउट-सिस्टम की व्यवस्था की जा सकती है।
यह निश्चय ही एक बेहतर कदम है, तथापि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसानों को समय पर व पर्याप्त मात्रा में उर्वरक उपलब्ध हो। उर्वरक खरीद के लिये किसानों को कम इंतजार करना पड़े साथ ही एक बेहतर औपचारिक शिकायत निवारण तंत्र की व्यवस्था भी की जानी चाहिए ताकि प्रभावी उर्वरक वितरण तंत्र का निर्माण संभव हो सके।