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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    वर्तमान समय में विश्व के कई विकसित देशों ने आयात को हतोत्साहित करने के लिये संरक्षणवादी उपाय शुरू

    19 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • संरक्षणवाद का अर्थ उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
    • संरक्षणवाद का उद्देश्य।
    • संरक्षणवाद का भारत पर प्रभाव।
    • निष्कर्ष।

    संरक्षणवाद का संदर्भ सरकार की उन कार्यवाहियों एवं नीतियों से है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करती है। ऐसी नीतियाँ प्रायः विदेशी प्रतियोगिता से स्थानीय व्यापारों एवं नौकरियों का संरक्षण करने के प्रयोजन से की जाती है।

    ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से अलग होने का निर्णय, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप से अलग होना, अमेरिका द्वारा सभी देशों से स्टील तथा एल्युमीनियम के आयात पर भारी कर लगाने की विभिन्न घटनाएँ बढ़ती संरक्षणवादी प्रवृत्तियों का प्रतिबिंब है।

    संरक्षणवाद का प्राथमिक उद्देश्य वस्तु का सेवाओं की कीमत में वृद्धि कर या देश में प्रवेश करने वाले आयातों की मात्रा को सीमित या प्रतिबंधित कर स्थानीय व्यवसायों या उद्योगों को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाना है। संरक्षण वाद निम्न तरीकों से कार्य करता है– आयात पर टैरिफ और कोटा या स्थानीय व्यवसायों को सब्सिडी अथवा करों में कटौती के माध्यम से।

    संरक्षणवाद का भारत पर प्रभाव:

    • अरबिंद सुब्रह्मण्यम के अनुसार यदि विश्व संरक्षणवादी बन गया तो हमारे निर्यात में 25 प्रतिशत की दर से विकास नहीं हो पाएगा जिसका हमारी समृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
    • विकसित देशों द्वारा उठाए जाने वाले संरक्षणवादी कदमों से उन देशों में शिक्षा और रोजगार के अवसर तलाश रहे छात्रों के सपनों और आकांक्षाओं को अत्यधिक प्रभावित कर सकते हैं।
    • काम की आउटसोर्सिंग के मामले में गृह देश में रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न करने के लिये ये देश आउटसोर्स होने वाली नौकरियों की संख्या में कटौती आरंभ कर सकते हैं। इसी प्रकार ये भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एवं विदेशी संस्थागत निवेशों को भी प्रभावित कर सकते हैं।
    • व्यापार में संरक्षणवादी रवैया अपनाने से इसका समग्र प्रभाव भारत जैसे विकासशील देशों के सकल घरेलू उत्पाद एवं वृद्धि दर में कमी के रूप में देखा जाएगा जो अपनी प्रौद्योगिकी और वित्तीय आवश्यकताओं के लिये इन विकसित देशों पर ज्यादा निर्भर करते हैं।

    निष्कर्षः सतत् और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिये नीति निर्माताओं को ऐसे ठोस परिवर्तनों पर अनिवार्य रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है जो हमारे सम्मुख विद्यमान चुनौतियों के प्रति अनुक्रियात्मक हो। इसके साथ ही देशों के बीच विवादों के तेजी से समाधान बढ़ी हुई पारदर्शिता एवं विकाशसील देशों के लिये बेहतर तकनीकी सहायता तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली हेतु अतिरिक्त सुधारों की आवश्यकता है।

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