भुगतान शेष के अर्थ को स्पष्ट करते हुये इसके असंतुलन के प्रमुख कारणों की चर्चा करें?
उत्तर :
भुगतान शेष (Balance of Payments) सामान्यतया एक वर्ष की समयावधि के दौरान किसी देश के शेष विश्व के साथ हुए सभी मौद्रिक लेन-देनों के लेखांकन का विवरण है। यह मौद्रिक लेन-देन वस्तु एवं सेवाओं के आयात एवं निर्यात, वित्तीय परिसंपत्तियों (स्टॉक, बांड) अंतर्राष्ट्रीय खरीद-बिक्री के तथा वास्तविक परिसंपत्तियों (प्लांट, मशीनरी) की अंतर्राष्ट्रीय खरीद एवं बिक्री से उत्पन्न हो सकते हैं।
भुगतान शेष में असंतुलन तब होता है जब चालू खाता शेष तथा पूंजी खाता शेष का कुल जोड़ शून्य नहीं होता है, इसके स्थान पर कुल जोड़ या तो धनात्मक होगा या ऋणात्मक होगा। यदि चालू खाते एवं पूंजी खाते का कुल जोड़ धनात्मक है तो यह भुगतान शेष आधिक्य (Surplus BOP) को प्रकट करता है तथा यदि कुल जोड़ ऋणात्मक है तो भुगतान शेष घाटे को प्रकट करता है।
भुगतान शेष में असंतुलन के कई कारण हैं जिन्हें सामान्यतः तीन वर्गों में बांटा जाता है- आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक।
आर्थिक कारण
- सरकार द्वारा विकास पर अत्यधिक खर्च करने से बड़े पैमाने पर आयात किये जाते हैं, जिससे भुगतान शेष में ‘घाटे’ का असंतुलन उत्पन्न हो जाता है।
- मंदी अवस्फीति, पुनरुत्थान तथा तेजी के रूप में व्यापार चक्रों (Business cycle) का चलना। तेजी के समय देश से बड़ी मात्र में निर्यात किये जाते हैं। फलस्वरूप भुगतान शेष में ‘बचत’ का असंतुलन पाया जाता है।
- घरेलू बाजार में मुद्रा-स्फीति की ऊँची दर के कारण बड़ी मात्रा में वस्तुओं का आयात करना पड़ता है, जिसके कारण घाटे का भुगतान शेष उत्पन्न होता है।
- तकनीक एवं प्रबंधकीय नव-प्रवर्तनों के कारण व्यापार करने वाले देशों की लागत संरचना में परिवर्तन होता है। लागत ढाँचे में अनुकूल परिवर्तन होने से निर्यात को बढ़ावा मिलता है और इसके कारण बचत का भुगतान शेष असंतुलन उत्पन्न होता है।
राजनीतिक कारण
- राजनीतिक अस्थिरता के कारण विदेशों से प्राप्त प्रत्यक्ष निवेश तथा पोर्टफोलियो निवेश में कमी आती है। इसके कारण भुगतान शेष के पूंजी खाते में घाटा उत्पन्न होता है।
- आयात शुल्क में कमी जैसे सरकार की लोकप्रियवादी नीतियों के कारण आयातों को प्रोत्साहन मिलता है तथा इसके कारण चालू खाते घाटे में वृद्धि होती है।
सामाजिक कारण
- रुचियों तथा प्राथमिकताओं में परिवर्तन के कारण माँग का स्वरूप भी बदल जाता है। अनुकूल परिवर्तन निर्यात को प्रोत्साहित करते हैं, जबकि प्रतिकूल परिवर्तन के कारण आयातों में वृद्धि हो सकती है।