कृषकों की आय को दोगुनी करने के सरकार के प्रयासों को साकार करने में बागवानी क्षेत्र किस प्रकार सहायक हो सकता है? साथ ही बागवानी क्षेत्र में उपस्थित प्रमुख चुनौतियों का वर्णन करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- ऊपर दिये गए कथन के संदर्भ में पृष्ठभूमि बताएँ।
- भारत में बागवानी सेक्टर की क्षमताओं तथा चुनौतियों का वर्णन।
- सरकार द्वारा इस क्षेत्र की सहायता हेतु शुरू किये गए कार्यक्रम।
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निकट भविष्य में (2022 तक) सरकार ने कृषि क्षेत्र की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है, क्योंकि कृषि क्षेत्र देश की आधी जनसंख्या की आजीविका का स्रोत है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में बागवानी सेक्टर की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
भारत में बागवानी की स्थिति:
वर्तमान में फलों और सब्जियों सहित बागवानी का उत्पादन अनाज से भी अधिक है। पिछले एक दशक में बागवानी उत्पादन में लगभग 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
बागवानी सेक्टर में कृषि आय को दोगुना करने की क्षमता है, क्योंकिः
- कोई भी बागवानी फसल अल्प अवधि की होती है तथा छोटे भूमि क्षेत्रों में उगाई जा सकती है। अतः छोटे किसान इनके उत्पादन को प्राथमिकता देते हैं।
- इसके उत्पादन में अधिकांशतः सीमांत किसान (2 हेक्टेयर से कम भूमि) संलग्न है। इसका अर्थ है कि कम संसाधन वाले किसानों को इससे बहुत अधिक लाभ प्राप्त होगा। 2010-11 की कृषि जनगणना में कुल सब्जियों का 87 प्रतिशत और फलों का 90 प्रतिशत उत्पादन छोटे भूमि धारकों द्वारा ही किया गया था।
- दलहन फसलों के विपरीत इन फसलों ने तीव्र नकदी प्रवाह को सुनिश्चित किया है। दलहन फसलों को बोने से लेकर उनके विपणन तक छह महीने का समय लग सकता है।
- बेहतर आय, शहरीकरण, बदलती हुई उपभोग और जीवनशैली ने फलों, सब्जियों, मशरूम, औषधीय पौधों और फूलों की मांग में वृद्धि की है। इनकी पूर्ति शहरों के निकट रह रहे छोटे किसानों द्वारा की जा रही है।
- बागवानी अत्यंत ही श्रम सघन कृषि पद्धति है। सस्ते श्रमिक और कम पूंजी आगत जैसी आवश्यकताएँ छोटे किसानों के लिये बहुत ही उपयुक्त हैं। यह खराब मानसून से कम प्रभावित होती है।
संपूर्ण क्षमता प्राप्त करने में चुनौतियाँ:
- बाजार सहायता और फसल उपज के बाद खेत से खाने की मेज तक (farm to fork) उपज प्रबंधन शृंखला का अभाव।
- फसल कटाई के पश्चात् अनुपयुक्त सुविधाएँ जैसे परिवहन के लिये वातानुकूलित वाहनों की कमी तथा कोल्ड स्टोरेज और प्रसंस्करण सुविधाओं का अभाव आदि। इसके कारण त्वरित बिक्री करनी पड़ती है और बड़े पैमाने पर किसानों को नुकसान होता है।
- यद्यपि बागवानी विपणन में उपभोक्ता मूल्य उच्च होते हैं परंतु बिचौलियों की अधिकता के कारण इस कार्य में प्राथमिक तौर पर संलग्न कृषकों को उनके उत्पादों पर उचित लाभ प्राप्त नहीं हो पाता है।
- उत्पादन प्रायः कोल्ड स्टोरेज में रखे हुए अपने स्टॉक को वापस प्राप्त ही नहीं करते हैं, क्योंकि उनके शुल्क का भुगतान उनके स्टॉक की बिक्री से प्राप्त आय से अधिक हो जाता है।
- सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली (Micro-irrigation System), ग्रीन हाऊस का निर्माण, ग्रेडिंग और पैकेजिंग में निवेश हेतु संस्थागत वित्त का अभाव।
- सिंचाई के मूलभूत ढाँचे और बागवानी फसलों की शेल्फ लाइफ (उपज के भंडारण और उपयोग होने तक की अवधि) बढ़ाने के लिये अनुसंधान का अभाव।
- भूमि पट्टे एवं अनुबंध कृषि (Contract Farming) और सहकारी कृषि के अभाव जैसी समस्याओं के कारण निजी निवेश का अभाव।
- राज्यों में APMC अधिनियम का घटिया कार्यान्वयन। पुनः ओपन एंडेड एमएसपी व्यवस्था किसानों को खाद्यान्न उत्पादन हेतु प्रोत्साहित करती है। भले ही उस क्षेत्र की जलवायु बागवानी के लिये उपयुक्त क्यों न हो।
सरकार ने इस क्षेत्र की सहायता हेतु कुछ पहल की हैः
- केंद्र प्रायोजित बागवानी विकास मिशन (मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर MIDH)।
- केंद्र सरकार द्वारा किसानों की आय में वृद्धि करने के लिये बागवानी क्षेत्र को सामरिक विकास प्रदान करने हेतु ‘चमन’ नामक अग्रणी परियोजना शुरू की गई है। ‘चमन’ का पूरा नाम कोआर्डिनेटड हॉर्टिकल्चर एसेसमेंट एंड मैनेजमेंट (Coordinated Horticulture Assessment & Management-CHAMAN) है। इसमें जियो-इन्फार्मेटिक्स के माध्यम से किसानों को बागवानी फसलों के लिये अत्यंत उपयुक्त स्थान चिह्नित करके सही फसल लेने में सहायता प्रदान की जाती है, ताकि उनकी आय में वृद्धि हो सके।
- FTP (foreign trade policy) 2015-20 के अंतर्गत भारत से फलों/सब्जियों सहित कृषि उत्पादों के निर्यात (MEIS) को प्रोत्साहन दिया गया है।
- कई राज्यों में आदर्श APMC अधिनियम की तर्ज पर APMC में सुधार किये गए हैं।
- भूमि पट्टे की व्यवस्था को कारगर बनाने के लिये नीति आयोग ने एक आदर्श भूमि पट्टा अधिनियम का प्रारूप तैयार किया है।
- GI टैग के विभिन्न बागवानी फसलों का विस्तार किया गया है, विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के उत्पादों पर।
इन उपायों को पूरी ईमानदारी से लागू किया जाना चाहिये। फलों के प्रसंस्करण उद्योग विस्तार में किसानों के साथ पश्चगामी संपर्क (backward linkages) तथा खुदरा विक्रेताओं के साथ अग्रगामी संपर्क (forward linkage) स्थापित करने से मूल्य संवर्धन और अपव्यय में कमी लाने में सहायता मिलेगी। इससे उत्पादकों को उच्च लाभ सुनिश्चित होगा। हाल ही में गठित मूल्य स्थिरीकरण कोष (price stabilisation fund) का उपयोग मूल्यों में व्यापक उतार-चढ़ाव को रोकने के लिये किया जाना चाहिये, जिनसे प्रायः उत्पादकों और उपभोक्ताओं को ही हानि पहुँचती है।