मानव जनित वर्षा (cloud seeding) की प्रक्रिया को स्पष्ट करें। क्या इस विधि को भारत के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में व्यवहृत करना धारणीय है?
06 Apr, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी
उत्तर की रूपरेखा:
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देश के कई हिस्सों में सूखा की घटना एक सामान्य बात है। इस स्थिति के परिणाम कठोर हैं और कई बार तो अपरिवर्तनीय हैं। सूखा की स्थिति तब होती है जब दुनिया के कुछ हिस्से महीनों के लिए बारिश से वंचित रह जाते हैं या फिर पूरे साल के लिए भी। बादलों के बीजन (cloud seeding) की तकनीक भारत के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पानी की समस्या से निजात दिलाने का कारगर उपाय हो सकता है। ऐसी तकनीक मानसून की परिवर्तनशीलता संबंधी इसके प्रभावों के न्यूनीकरण में कारगर सिद्ध हो सकती है तथा कृषि एवं पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले इसके प्रभावों को कम किया जा सकता है
क्लाउड सीडिंग मौसम में बदलाव लाने की ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बादलों से इच्छानुसार वर्षा कराई जा सकती है। क्लाउड सीडिंग के लिए सिल्वर आयोडाइड या ड्राई आइस (ठोस कार्बन डाईऑक्साइड) को रॉकेट या हवाई जहाज के ज़रिए बादलों पर छोड़ा जाता है। हवाई जहाज से सिल्वर आयोडाइड को बादलों के बहाव के साथ फैला दिया जाता है। विमान में सिल्वर आयोडाइड के दो बर्नर या जनरेटर लगे होते हैं, जिनमें सिल्वर आयोडाइड का घोल हाई प्रेशर पर भरा होता है। जहां बारिश करानी होती है, वहां पर हवाई जहाज हवा की उल्टी दिशा में छिड़काव किया जाता है। कहां और किस बादल पर इसे छिड़कने से बारिश की संभावना ज़्यादा होगी, इसका फैसला मौसम वैज्ञानिक करते हैं। इसके लिए मौसम के आंकड़ों का सहारा लिया जाता है। इस प्रक्रिया में बादल हवा से नमी सोखते हैं और कंडेंस होकर उसका मास यानी द्रव्यमान बढ़ जाता है। इससे बारिश की भारी बूंदें बनने लगती हैं और वे बरसने लगती हैं। क्लाउड सीडिंग का उपयेाग वर्षा में वृद्धि करने के लिये, ओलावृष्टि के नुकसान को कम करने, कोहरा हटाने तथा तात्कालिक रूप से वायु प्रदूषण कम करने के लिये किया जाता है।
क्या यह भारत के सूखाग्रस्त क्षेत्रें के लिये धारणीय है?
पक्ष में तर्कः
क्लाउड सीडिंग के विरुद्ध तर्क:
निष्कर्षः यहाँ समस्या क्लाउड सीडिंग शब्द को अप्राकृतिक कहने से है। मानव ने जब से पृथ्वी पर कदम रखा है या कम-से-कम जब से जीवाश्म ईंधन जलाना शुरू किया है, तब से वह मौसम तंत्र को रूपांतरित करता आया है, जो कि क्लाउड सीडिंग परियोजनाओं से कहीं ज्यादा प्रभाव डालते हैं। एक प्रदूषक के रूप में सिल्वर आयोडाइड चिमनियों से निकलते टनों प्रदूषण तथा गाडि़यों के धुएँ के समक्ष नगण्य है। इसके अलावा, हम जल संरक्षण के परंपरागत तौर-तरीकों को भी पुनर्जीवित कर सकते हैं जो भारतीय संदर्भ में जाँचा-परखा हुआ है।