भारत में कृषि में जोखिम की स्थितियों को स्पष्ट करते हुए, एकीकृत खेती के लाभों पर प्रकाश डालें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- कृषि में जोखिम की स्थिति तथा कारण
- एकीकृत खेती के लाभ तथा यह कैसे कृषि को जोखिम से उबारने में सहायक सिद्ध होगी।
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कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का केंद्रबिंदु तथा भारतीय जीवन की धुरी है। आर्थिक जीवन का आधार, रोज़गार का प्रमुख स्रोत तथा विदेशी मुद्रा अर्जन का माध्यम होने के कारण कृषि को देश की आधारशिला कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। कुल श्रम शक्ति का लगभग 52 प्रतिशत भाग कृषि एवं कृषि से संबंधित गतिविधियों से ही अपना जीविकोपार्जन कर रही है। अतः यह कहना समीचीन होगा कि कृषि के विकास, समृद्धि व उत्पादकता पर ही देश का विकास, समृद्धि व उत्पादकता तथा संपन्नता निर्भर है।
सरकार द्वारा किये गए विभिन्न के प्रयासों जैसे - भूमि सुधार कानून, किसान क्रेडिट कार्ड योजना, नाबार्ड की स्थापना, भारत निर्माण योजना के बावजूद भारतीय कृषि जोखिम की स्थिति में है,जिसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
- गरीबी तथा ऋणग्रस्तता के कारण किसान अपनी उपज कम कीमतों पर बिचौलियों को बेचने के लिये बाध्य है।
- भारत में कृषि क्षेत्र में निवेश का अभाव देखने को मिलता है, जिसका मूल कारण है कि कृषि को आज लाभ का व्यवसाय नहीं माना जाता है।
- वैश्वीकरण तथा उदारीकरण की नीतियों के तहत भारतीय बाज़ार के द्वार विदेशी कृषि उत्पादों के लिये खोल दिये जाने से कृषि व्यवस्था पर संकट के बादल छा रहे हैं।
- कृषिगत आगतों की बढ़ती कीमतें, गिरता भू-जल स्तर एवं भूमि की घटती उर्वरता के कारण कृषि घाटे का सौदा बन गई है।
वर्तमान में जब फसलों के ज़रिये मुनाफा कमा पाना काफी मुश्किल हो चुका है। ऐसे में अगर खेती के साथ कृषि से जुड़ी सह गतिविधियों को भी जोड़ दिया जाए तो कृषि को आर्थिक रूप से व्यावहारिक बनाने के साथ ही किसानों की शुद्ध आय को भी बढ़ाया जा सकता है। इसके निम्नलिखित लाभ हैं:
- एकीकृत खेती द्वारा जमीन के उसी टुकड़े से खाद्यान्न, चारा, खाद और ईंधन भी पैदा किया जा सकता है।
- इसमें पशुपालन, बागवानी, हर्बल खेती, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, रेशम उत्पादन, मत्स्य पालन और कृषि वानिकी जैसे काम भी शामिल हैं।
- इस प्रणाली के तहत एक अवयव के अपशिष्टों, अनुत्पादों और अनुपयोगी जैव-ईंधन का इस तरह से पुनर्चक्रण किया जाता है कि वह दूसरे अवयव के लिये इनपुट के तौर पर इस्तेमाल हो जाता है जिससे लागत में भी कमी आती है और उत्पादकता में बढ़ोतरी होती है।
- रासायनिक उर्वरकों के बजाय देशी खाद के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है।
- इस तरह की एकीकृत खेती का अगर वैज्ञानिक तरीके से पालन किया जाए तो यह खेती मे लगे परिवारों को पूरे साल की आजीविका प्रदान करने के अलावा उनकी आय वृद्धि का भी माध्यम बन सकता है।