‘गुड वाटर गवर्नेंस’ धारणीय जल विकास हेतु एक नई संकल्पना है। गुड वाटर गवर्नेंस देश के निर्माण में भारत के प्रयासों का परीक्षण कीजिये।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- गुड वाटर गवर्नेंस तथा इसके आयामों को परिभाषित करें।
- भारत में जल की स्थिति पर चर्चा करें तथा बताएँ कि भारत जल संकट की कौन सी चुनौतियों का सामना कर रहा है
- इस क्षेत्र में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख करें।
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जल प्रशासन (water governance) राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक व्यवस्था को दर्शाता है जो किसी विशेष क्षेत्र में जल के उपयोग और प्रबंधन को प्रभावित करते हैं। यह विभिन्न संस्थानों, संगठनों, कानूनों, परिपालनों, स्थिरता और समाज के विभिन्न स्तरों पर जल सेवाओं की आपूर्ति के माध्यम से जल संसाधन और सेवाओं के आवंटन और वितरण में समानता तथा दक्षता को निर्धारित करता है तथा सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों और पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच पानी के उपयोग को संतुलित करता है।
भारत के पास विश्व की 2% जमीन है, परंतु यहाँ विश्व की 16 प्रतिशत आबादी तथा 15 प्रतिशत मवेशी निवास करते हैं, जबकि इसके पास विश्व के जल संसाधन का केवल 4 प्रतिशत ही है। साथ ही, भारत जल उपलब्धता में 180 देशों में 133वें नंबर पर है तथा जल की गुणवत्ता में 122 देशों में 120वें नंबर पर है। यह आकलन किया गया है कि भारत का 80% भू-पृष्ठीय जल प्रदूषित है जिसके कारण भारत को प्रतिवर्ष जल-संबंधी रोगों से 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की क्षति होती है। भारतीय जल क्षेत्र द्वारा जिन चुनौतियों का सामना किया जा रहा है उनमें शहरी क्षेत्रों में जल का बढ़ता उपभोग तथा बर्बादी, जल जनित रोग, औद्योगिक विकास, राजनीतिक तथा विनियामक विवाद, जलचक्र असंतुलन, सिंचाई तथा कृषि क्षेत्र में बढ़ती मांग, प्रौद्योगिकी का अभाव इत्यादि शामिल हैं।
कुछ चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
- भारत जल संकट की समस्या से जूझ रहा है तथा इसके और अधिक गहराने की संभावना है क्योंकि भारत की आबादी 2050 तक 1-6 अरब हो जाने की संभावना है।
- भारत के पूर्वी तथा मध्यवर्ती क्षेत्र के जलाशयों में सबसे अधिक पानी है जो कि 44 से 36 प्रतिशत के बीच है, जबकि दक्षिण, पश्चिम तथा उत्तर क्षेत्र में जलस्तर क्रमशः 20, 26 तथा 27 प्रतिशत है। केंद्रीय जल आयोग के आँकड़ों के अनुसार देश में 10 वर्ष का औसत जलस्तर 38.5 प्रतिशत है।
- कुछ सामान्यीकृत चुनौतियाँ हैं: जल का मूल्य निर्धारण, जल की उत्पादकता में वृद्धि करना, आभासी जल व्यापार, जल संचयन, जल अधिकार, जल आधारभूत संरचना तथा सामुदायिक भागीदारी।
सरकार द्वारा विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से जल संकट की समस्या से प्रभावी रूप से निपटने के लिये कई कदम उठाए गए हैं:
- जल भंडारण तंत्रः भारत की 60 प्रतिशत से अधिक सिंचित कृषि तथा 85 प्रतिशत से अधिक पेयजल आपूर्ति भूमिगत जल पर निर्भर करती है। विभिन्न स्थानों पर जल संचयन तंत्र लगाए गए हैं, पृष्ठ जल की पुनःपूर्त्ति तथा अवनालिका एवं परत अपरदन की रोकथाम के लिये उपाय किये गए हैं।
- अपशिष्ट जल का उपचारः भारत का 80% भू-पृष्ठ जल प्रदूषित है तथा जल प्रदूषण का 75% घरेलू मल-जल से आता है, जिसे बिना उपचारित किये स्थानीय जलस्रोतों में छोड़ दिया जाता है। सरकार ने इसके लिये कई कदम उठाए हैं जैसे- स्मार्ट सिटी योजना को आरंभ किया गया है जो कि जल प्रबंधन तथा अपशिष्ट जल को उपचारित करने पर ध्यान केंद्रित करती है। हाल ही में आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा अपनाई गई ग्रीन सिटी की अवधारणा, निगमों द्वारा लगाए गए वेस्टवाटर ट्रीटमेंट प्लांट तथा क्लीन गंगा मिशन भी नदियों में छोड़े जाने वाले अपशिष्ट जल से संबंधित हैं।
- मल-जल उपचारणः श्रेणी-। के अंतर्गत रहने वाली 70% आबादी को सीवर की सुविधा प्राप्त है। दिल्ली के पास प्रतिदिन 230 मिलियन लीटर सीवर जल को उपचारित करने की क्षमता है। स्मार्ट सिटी मिशन मल-जल उपचारण तथा संसाधनों के धारणीय उपयोग पर केन्द्रित है।
- जल संरक्षण के कई तरीके हैं, जिसमें वर्षा जल संचय, ट्रिप सिंचाई, अलवणीकरण, जल पुनर्चक्रण, जल रहित शौचालय, सौर तथा पवन ऊर्जा आपूर्ति, जल शक्ति, शोध एवं विकास, परीक्षण एवं मापन, कौशल और प्रशिक्षण आदि स्वच्छ भारत अभियान के तहत कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनके लिये सरकार कानून बना रही है तथा इसके लिये विभिन्न योजनाओं, प्रक्रियाओं तथा अधिनियमों को निष्पादित और कार्यान्वित कर रही है।
- बल वाटर फोरम तथा ग्लोबल वाटर पार्टनरशिप फ्रेमवर्क फॉर एक्शन ने जल संकट की समस्या को प्रायः सरकार की विफलता माना है। चूँकि भारत जल की कमी संबंधी समस्या से जूझ रहा है, अतः एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन का विकास भारत को तेज़ी से गुड वाटर गवर्नेंस देश बनाने के लिये आवश्यक है।