प्रायद्वीपीय भारत की तुलना में उत्तर भारत में नहरों द्वारा सिंचाई की व्यापकता अधिक क्यों है? दक्षिण भारत में प्रचलित सिंचाई के विभिन्न साधनों की विवेचना कीजिये।
24 Apr, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलउत्तर की रूपरेखा:
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सिंचाई, भूमि के ऊपर जल का कृत्रिम रूप से उपयोग है। यह वर्षा जल का स्थानापन्न अथवा पूरक है, जिसकी पूर्ति दूसरे जलस्रोतों से की जाती है। इसका प्रयोग सूखा तथा अपर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में होता है। सिंचाई के माध्यम नहर, कूप, नलकूप, ड्रिप, स्प्रिंकल इत्यादि हो सकते हैं।
नहर द्वारा सिंचाई भारत में सिंचाई का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है तथा नलकूप के बाद इसका दूसरा स्थान है, परंतु सिंचाई का यह माध्यम दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तर भारत में अधिक प्रचलित है, क्योंकि यह प्रणाली उन्हीं क्षेत्रों में विस्तृत है, जहाँ बड़े समतल मैदान हैं तथा मिट्टी गहरी एवं उपजाऊ है और सदावाहिनी नदियाँ बहती हैं। चूँकि उत्तर भारत में सदावाहिनी नदियाँ, गहरी उपजाऊ मिट्टी तथा पारगम्य मृदा संरचना पाई जाती है, अतः नहर उत्तर भारत में ही अधिक विकसित हैं, परंतु दक्षिण भारत की कुछ नदी घाटियों तथा तटीय क्षेत्रों में भी नहरों का विकास हुआ है।
चट्टानी तथा असमान भूमि में नहरों की खुदाई कठिन है और आर्थिक दृष्टि से भी लाभप्रद नहीं है। अधिकतर प्रायद्वीपीय नदियाँ बरसाती हैं तथा गर्मी के मौसम में सूख जाती हैं। अतः वे नहर को वर्ष भर जल की आपूर्ति नहीं कर सकती हैं।
दक्षिण भारत में प्रचलित सिंचाई के विभिन्न माध्यम:
दक्षिण भारत में सिंचाई के विभिन्न साधन यथा- तालाब, नहर, कूप तथा नलकूप इत्यादि हैं, परंतु प्रायद्वीपीय भारत में सिंचाई का सर्वप्रमुख साधन तालाब है। तालाब वर्षाजल अथवा नदियों एवं जलधाराओं के जल संचय की अति प्राचीन परंपरा है।
तालाब पानी के भंडारण का एक स्रोत है, जिसे मिट्टी को काटकर अथवा जलधारा में पत्थरों द्वारा बनाया जाता है। बांध द्वारा भंडारित जल का प्रयोग सिंचाई तथा अन्य प्रयोजनों के लिये किया जाता है। कुछ तालाबों को आंशिक रूप से खोदकर तथा कुछ को आंशिक रूप से घेरकर बनाया जाता है।
प्रायद्वीपीय भारत के असमान और तुलनात्मक रूप से चट्टानी पठार में वार्षिक वर्षा केवल मौसमी होती है, यहाँ तालाब सिंचाई पद्धति अत्यधिक लोकप्रिय है और प्रायद्वीपीय भारत में ज्यादातर तालाबों द्वारा ही सिंचाई होती है।
आंध्र प्रदेश में तालाबों से सबसे अधिक सिंचाई होती है, इसका भारत में कुल तालाबों द्वारा सिंचाई में 29% का योगदान है। गोदावरी तथा इसकी सहयोगी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में तालाबों की अधिकता है। नेल्लोर तथा वारंगल में मुख्यतः तालाब द्वारा ही सिंचाई होती है।
कई ऐसी जलधाराएँ हैं जो कि वर्षा ऋतु में प्रलयंकारी हो जाती हैं, इनके जल के उपयोग का सर्वोत्तम तरीका है बांध तथा तालाब द्वारा जल का संचय करना, अन्यथा जल समुद्र में व्यर्थ चला जाएगा।
जल जीवन के लिये आवश्यक तत्त्व है तथा जल कृषि की उत्पादकता बढ़ाने के लिये भी आवश्यक है। भारत में जहाँ कृषि मुख्यतः मानसून पर निर्भर करती है वहाँ पर सिंचाई, कृषि की उत्पादकता, सामर्थ्य तथा सुरक्षा में वृद्धि करने में मदद कर सकती है।