भारत जल प्रबंधन में अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना कर रहा है। उक्त कथन की पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय जल आयोग की आवश्यकता तथा केंद्रीय जल आयोग और केंद्रीय भूजल बोर्ड की पुनर्संरचना का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
25 Apr, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
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भारत 21वीं सदी में जल प्रबंधन की अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना कर रहा है। चूँकि जल संकट दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है अतः अब 20वीं सदी के समाधान उतने प्रभावी नहीं रहे। पुराने समाधान उस समय विकसित किये गए थे, जब भारत ने अपनी सिंचाई क्षमता का निर्माण नहीं किया था जो कि खाद्य सुरक्षा के लिये एक मूलभूत आवश्यकता है तथा इसके परिणामस्वरूप हरित क्रांति हुई और देश में खाद्य सुरक्षा आई।
परंतु, अब स्थिति काफी बदल चुकी है, आज बांधों में भंडारित जल के उचित प्रबंधन की चुनौती है, क्योंकि यह जल उन क्षेत्रों तक तब नहीं पहुँच पाता है जब उन्हें इसकी आवश्यता होती है। साथ-ही-साथ भूमिगत जल, जिसके कारण हरित क्रांति सफल हो पाई थी, भी स्थिरता के संकट का सामना कर रहा है। जलस्तर तथा जल की गुणवत्ता दोनों का ह्रास हुआ है जिसके कारण एक नए संकट का निर्माण हुआ है और जहाँ समाधान स्वयं समस्या का अंग बन गया है। यहाँ अब नई चुनौती जलभृतों को धारणीय रूप से प्रबंधित करना है।
हाल में सूखा तथा किसानों द्वारा आत्महत्या जैसी घटनाएँ चिंताजनक हैं। जलवायु परिवर्तन भी नई चुनौतियाँ पेश कर रहा है, क्योंकि इसके कारण अत्यधिक वाष्पोत्सर्जन तथा वृष्टि हो रही है जो कि बाढ़ तथा सूखे जैसी घटनाओं में वृद्धि कर रही है।
इसके अलावा तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण तथा औद्योगीकरण के कारण जल की मांग में वृद्धि के कारण शहरों तथा गाँवों, कृषि एवं उद्योगों के मध्य विवाद होना आज आम बात हो चुकी है।
परिणामस्वरूप भारत में कई भागों के जलस्तर में कमी आई है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो 2030 तक कुल जल की मांग के आधे की पूर्ति नहीं हो पाएगी। इसके अलावा फ्रलोराइड, आर्सेनिक, मरकरी तथा यूरेनियम द्वारा संदूषण भी एक बड़ी समस्या है।
इन चुनौतियों के निदान के लिये जल संसाधन मंत्रालय के द्वारा मिहिर शाह कमेटी का गठन किया गया, जिसने राष्ट्रीय जल आयोग के गठन का सुझाव दिया है, जो कि मौजूदा केंद्रीय जल आयोग और केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड को समाहित कर लेगा।
पुनर्गठन की आवश्यकता क्यों?
भारत में जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन के लियेः ताकि सभी नदी-घाटियों तथा संसाधनों का मानसून की बढ़ती अनिश्चितता एवं अन्य जलवायविक कारकों के संदर्भ में बेहतर प्रबंधन किया जा सके।
प्रति व्यक्ति जल की घटती उपलब्धता तथा बढ़ती अनुमानित मांग के कारण इसकी आवश्यकता अधिक हो गई है।
केंद्रीय जल आयोग ऐसे समय से संबद्ध है, जब आवश्यकताएँ तथा परिस्थितियाँ भिन्न थीं। केन्द्रीय जल आयोग के पास जल के उपयोग, पर्यावरण, सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों तथा सिंचाई प्रबंधन की समस्याओं से निपटने के लिये पर्याप्त विशेषज्ञता नहीं है।
साथ ही, केंद्रीय जल आयोग जो कि भू-पृष्ठ जल परियोजनाओं का विकास करता है तथा केन्द्रीय भूमिगत जल बोर्ड जो कि भूगर्भ जल के उपयोग तथा संदूषण की निगरानी करता है, दोनों स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं तथा दोनों में समन्वय की कमी है।
समेकित जल प्रबंधन विकास योजना बनाने, जल उपयोग की प्रभाविकता बढ़ाने तथा बजटिंग के लिये नदी-घाटी दृष्टिकोण अपनाने हेतु पुनर्गठन की आवश्यकता है।
चिंताएँ:
निष्कर्षः इन संस्थानों के सुदृढ़ीकरण, पुनर्गठन तथा पुनर्रचना की आवश्यकता है, ताकि भारत के जल-क्षेत्र को जिस प्रकार के नेतृत्व की आवश्यकता है, प्रदान किया जा सके। इसके अलावा, जल एक बहु-विषयक विधा है, जिसमें न केवल अभियंत्रण एवं जल विज्ञान अपितु उन सारे विषयों के विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है, जो इस क्षेत्र को स्पर्श करते हैं। भू-जल एवं भूगर्भ जल को एक ही इकाई के तौर पर देखे जाने की जरूरत है। जब तक नागरिकों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित नहीं की जाती है, संस्थागत प्रयास सफल नहीं होंगे।