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प्रश्न :
भारतीय अर्थव्यवस्था ने वर्तमान में चीन की मंदी, कमोडिटी की कीमतों में गिरावट और पश्चिमी दुनिया के अधिकांश देशों में जारी आर्थिक स्थिरता के बावजूद अपने हालिया आर्थिक सुधारों की वजह से वृद्धि दर को बनाए रखा है, लेकिन अभी भी भारतीय अर्थव्यवस्था को साध्य तक पहुँचने हेतु आर्थिक सुधारों के सन्दर्भ में काफी लम्बा सफर तय करना बाकी है। क्या आप सहमत हैं?
07 May, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- चीन की मंदी तथा पश्चिमी दुनिया में आर्थिक अस्थिरता के साथ भारत की मज़बूत होती स्थिति की चर्चा।
- भारत द्वारा विकास दर को बनाए रखने हेतु. किये गए प्रयास एवं इसके सकारात्मक परिणाम।
- अन्य अपेक्षित सुधार।
वर्तमान विश्व अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुज़र रही है। चीन में निवेश की कमी के कारण आई मंदी और कमोडिटी कीमतों में गिरावट, और ब्रिट्रेन के यूरोपीय संघ से अलग होने के कारण संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्थाओं के समक्ष संकट उत्पन्न हो गया है। भारत भी इनसे अछूता नहीं है। इसके कारण भारत में मुद्रास्फीति, रुपए की कीमत में गिरावट, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में गिरावट आदि समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन सबके बावजूद भारत ने अपनी विकास दर को बनाए रखा है। आज भारत की गिनती दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में की जा रही है। रेटिंग एजेंसी फिच के अनुसार 2016 में वैश्विक लगभग 2.5 प्रतिशत की वृद्धि दर के सापेक्ष भारत की वृद्धि दर लगभग 7.5 प्रतिशत दर्ज़ की गई है। इसका प्रमुख कारण भारत में हालिया आर्थिक सुधार है।
इन वैश्विक प्रभावों के बावजूद भारत द्वारा अपनी विकास दर को बनाए रखने के पीछे भारत की अर्थव्यवस्था का मिश्रित स्वरूप एवं सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिये कर प्रणाली को लचीला बनाना, निवेश का दायरा बढ़ाना, देशी और विदेशी उद्योगों को अधिक सुविधाएँ उपलब्ध कराना, स्टार्ट अप्स को प्रोत्साहन देना, ई-कॉमर्स रिटेलिंग में शत-प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मंज़ूरी आदि प्रयास किये गए हैं। इसके साथ ही मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसे कई कदमों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान की है।
इन कदमों के परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियादी आवश्यकताओं की कहीं न कहीं पूर्ति हुई है जो अर्थव्यवस्था के आँकड़ों से स्पष्ट होती है। इससे भविष्य में सकारात्मक दीर्घकालिक परिणाम उत्पन्न होने की आशा है।
परंतु अभी भी कई अन्य आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है, जैसे प्राथमिक क्षेत्र को मज़बूती प्रदान करना, ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस में सुधार, श्रम सुधार, कृषि निवेश से संबंधित सुधार, बैंकिंग क्षेत्र में सुधार (एन.पी.ए. से संबंधित), विदेशी उद्योगों के साथ देशी लघु एवं कुटीर उद्योगों का सामंजस्य स्थापित करना, उद्योगों में तकनीकी का प्रयोग एवं हाल ही में पारित जी.एस.टी को सफलतापूर्वक लागू करना आदि।
इस प्रकार इन प्रयासों के द्वारा हम वैश्विक नवीन चुनौतियों का सामना कर स्वयं को विश्व की एक प्रमुख आर्थिक शक्ति बना सकते हैं।
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