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प्रश्न :
विश्व का प्रमुख कृषि उत्पादक देश होने के बावजूद प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के विश्व व्यापार में भारत की कुल हिस्सेदारी मात्र 1.6% है । भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की संभावनाओं पर चर्चा करते हुए इस उद्योग के समक्ष उपस्थित प्रमुख चुनौतियों का वर्णन करें।
14 May, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्या है?
- इसके पिछड़ेपन के क्या कारण हैं?
- संभावनाओं तथा चुनौतियों की चर्चा।
भारत में कृषि उत्पादन में मजबूती के बावजूद खाद्य प्रसंस्करण उद्योग अभी नवजात अवस्था में है। भारत का कृषि उत्पादन आधार अपेक्षाकृत मज़बूत है, परंतु इसकी उत्पादकता कम है और मुख्यतः यह जीवनयापन का जरिया है। इसके एक अन्य पहलू पर ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि इस क्षेत्र में उपज की बर्बादी खासकर फलों और सब्जियों में लगभग 35 प्रतिशत है।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र में उत्पादित फलों और सब्जियों का कुल 2 प्रतिशत, दूध का 35 प्रतिशत, माँस का 21 प्रतिशत और कुक्कुट का 6 प्रतिशत ही उपयोग हो पाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर की तुलना में प्रसंस्करण की यह मात्रा बहुत ही कम है। इस क्षेत्र में संगठित क्षेत्र की पैठ न के बराबर है और ज़्यादातर यहाँ असंगठित क्षेत्र का ही प्रभुत्व है।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में विकास की अपार संभावनाएँ हैं, क्योंकि देश में विविधतापूर्ण कच्चे माल का बड़ा आधार होने के साथ-साथ सवा सौ करोड़ जनसंख्या का उपभोक्ता बाज़ार भी उपलब्ध है।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को भारतीय अर्थव्यवस्था के एक बड़े संदर्भ में देखना चाहिये जहाँ औद्योगिक क्षेत्र काफी बड़ी वृद्धि का अनुभव कर रहा है। इतने विशाल बाज़ार के क्रियाकलापों को असंगठित क्षेत्र अकेले नहीं संभाल सकता है। इस क्षेत्र का संचालन एक कुशल व्यावसायिक दृष्टि से करना होगा जिसमें इसकी संभावनाओं एवं सामर्थ्य का उचित ध्यान रखना होगा।
भारतीय खाद्यान्न क्षेत्र विस्तार की ओर बढ़ रहा है और विश्व खाद्य व्यापार में इसका योगदान उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है। भारत में खाद्यान्न उद्योग ऊँची वृद्धि और ऊँचे लाभ के साथ सामने आ रहा है। इसका प्रमुख कारण है इसमें निहित संभावनाएँ और योगित मूल्य (Value Addition), विशेषकर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के क्षेत्र में। भारतीय खाद्य और घरेलू सामानों का बाज़ार विश्व का छठा सबसे बड़ा बाज़ार है, जिसमें खुदरा बाज़ार 70 प्रतिशत की बिक्री करता है।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की संभावनाओं और महत्त्व को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 1998 में एक अलग खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय का गठन किया है।
भारत में खाद्य प्रसंस्करण के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ
- भारत में महत्त्वपूर्ण अवसंरचनाओं की अपर्याप्तता इस उद्योग के मार्ग में प्रमुख बाधा है। भारत में राष्ट्रीय राजमार्ग कुल सड़कों का केवल 2 प्रतिशत है तथा वे अति भारित हैं।
- भारत में डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर की कमी है। शीत भंडार एवं वेयर हाउस की संख्या एवं क्षमता अपर्याप्त है। खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में एक व्यापक राष्ट्रीय नीति का अभाव है। वर्तमान में यह उद्योग विभिन्न राज्य स्तरीय एवं केंद्रीय कानूनों से शासित होता है, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा होती है।
- भारत में खाद्य पदार्थों की जाँच के लिये प्रयोगशालाओं की कमी है एवं उनके पास पर्याप्त आधुनिक उपकरण भी नहीं हैं। जाँच मानकों में एकरूपता का अभाव है, जिससे जाँच परिणामों में विरोधाभास देखने को मिलता है।
- प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी के कारण आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग नहीं हो पाता तथा पुरानी तकनीकों का प्रयोग होता है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण की दिशा में अनुसंधान एवं विकास की कमी है जिस कारण खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में नवाचार नहीं हो पाता।
- राज्य स्तरीय APMC (Agriculture Produce Market Committee) कानूनों के कारण इस उद्योग को गुणवत्तापूर्ण कच्चा माल पर्याप्त मात्रा में सही समय पर नहीं मिल पाता।
उपर्युक्त बाधाएँ भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकास के मार्ग में रुकावट हैं। यह एक अत्यंत संभावनाशील उद्योग है जो न केवल कृषि क्षेत्र के विकास में सहायक होगा, बल्कि किसान की आय में पर्याप्त वृद्धि करने में भी मददगार साबित होगा। अतः समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिये इस उद्योग के समक्ष आने वाली इन बाधाओं को दूर किया जाना चाहिये।
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