वर्तमान परिदृश्य में भारतीय कृषि का भले ही आज़ादी के बाद सकल घरेलू उत्पाद में योगदान बढ़ा है, लेकिन इसी अनुपात में उसकी चुनौतियां भी बढ़ी हैं, आज भी खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण रोज़गार, पर्यावरण तकनीक, मृदा संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन जैसे मुद्दों पर भारतीय कृषि मौन है। चर्चा करें।
19 May, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था
उत्तर की रुपरेखा:
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भारत एक कृषि प्रधान देश है और आज भी हमारी 60 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। आज़ादी के पश्चात् उत्पन्न खाद्य संकट की समस्या का समाधान हरित क्रांति के माध्यम से निकाला गया। व्यापक सिंचाई, उच्च क्षमता वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों एवं तकनीकी उपकरणों आदि के कारण हुए उच्च उत्पादन के फलस्वरूप कृषि का भारतीय सकल घरेलू उत्पाद में 55 प्रतिशत से अधिक योगदान रहा है। परंतु 90 के दशक के पश्चात् उदारीकरण की नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था के स्वरूप में आए परिवर्तन, हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभावों, जलवायु परिवर्तन, कृषि की अपेक्षा उद्योग को वरीयता देना आदि कारणों के चलते वर्तमान समय में कृषि क्षेत्र का भारतीय सकल घरेलू उत्पाद में योगदान बहुत कम (लगभग 15.35 प्रतिशत) रह गया है।
कृषि क्षेत्र की उपेक्षा एवं वर्तमान बदली परिस्थितियों के अनुकूल उसका प्रबंधन न करने के कारण खाद्य असुरक्षा, ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी आदि की समस्या उत्पन्न हो गई है। अवैज्ञानिक कृषि के परिणामस्वरूप मृदा अपरदन, उत्पादकता में कमी, मृदा क्षरण, पुरानी फसल प्रजातियों का लोप, भूमिगत जलस्तर में कमी, मृदा लवणता में वृद्धि, मृदा के सूक्ष्म पोषक तत्त्वों में कमी, कीटनाशकों आदि के प्रयोग से पर्यावरण एवं जैवविविधता के समक्ष संकट उत्पन्न हो गया है।
कृषि के समक्ष उत्पन्न इन समस्याओं से निपटने के लिये कृषि का कुशल प्रबन्धन आवश्यक है जैसे कृषि में निवेश, अनुसंधान आदि में वृद्धि की जाए, जैविक कृषि एवं पर्यावरण अनुकूल कृषि को बढ़ावा दिया जाए, ड्रिप सिंचाई, स्पि्रंकल सिंचाई का प्रयोग किया जाए, कम पानी में उगने वाली फसलों का प्रयोग किया जाए। इन कार्यों के समुचित क्रियान्वयन के साथ प्रशासनिक प्रतिबद्धता में वृद्धि एवं कृषि शिक्षा अत्यन्त आवश्यक हैं।
सरकार द्वारा भी इस दिशा में कई पहलें की गई हैं- जिनमें मृदा हेल्थ कार्ड, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना एवं प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना प्रमुख हैं।
इन कार्यों को अपनाकर हम न केवल अपने देश की बल्कि वैश्विक खाद्य ज़रूरतों की पूर्ति में भी सहायक हो सकते हैं।