गैर-निष्पादनकारी संपत्ति (NPA) के वर्गीकरण को समझाएँ तथा कृषि क्षेत्रक ऋणों में गैर-निष्पादनकारी संपत्ति की वृद्धि के कारणों को उजागर करते हुए हाल के दिनों में गैर-निष्पादनकारी संपत्ति (NPAs) से निपटने हेतु सरकार के कदमों को रेखांकित कीजिये।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा :
- गैर-निष्पादनकारी संपत्ति(NPA)क्या है ?
- वर्गीकृत कृषि क्षेत्रक का उल्लेख
- ऋणों में गैर-निष्पादनकारी संपत्ति की वृद्धि के कारणों की चर्चा करें।
- NPAs से निपटने हेतु सरकार के प्रयास
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सामान्य रूप से वह संपत्ति जिस पर ब्याज/मूलधन 90 दिनों तक बकाया हो, उसे गैर-निष्पादनकारी संपत्ति कहा जाता है। समयावधि के आधार पर इसे तीन वर्गों में बाँटा गया है—
- सब-स्टैंडर्ड एसेट्सः 12 माह या इससे कम अवधि तक NPA के रूप में बने रहने वाली संपत्ति।
- डाउटफुल एसेट्सः अगर कोई संपत्ति 12 माह तक सब-स्टैंडर्ड की श्रेणी में बनी रहे।
- लॉस एसेट्सः यह न वसूल की जा सकने वाली और अत्यंत कम मूल्य वाली संपत्ति होती है। बैंक द्वारा इसके परिसंपत्ति के रूप में बने रहने की पुष्टि नहीं की जाती है।
भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार वर्ष 2017 में 2016 की तुलना में गैर-निष्पादनकारी संपत्ति की मात्र में 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2016 के 48,800 करोड़ के मुकाबले 2017 में बढ़कर 60,2000 करोड़ रुपए हो गई।
बैंक द्वारा प्राथमिकता क्षेत्रक उधारी के वर्गीकरण में प्रमुख घटक के रूप में शामिल होने के कारण बैंक को अपने समायोजित निवल बैंक क्रेडिट का 18 प्रतिशत राशि, ऑफ-बैलेंस शीट एक्सपोजर की क्रेडिट समतुल्य राशि में जो भी अधिक हो, कृषि क्षेत्र को ऋण के रूप में देना अनिवार्य है। किंतु इन ऋणों की निर्धारित समय-सीमा में वसूली न हो पाने से यह गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्ति के रूप में तब्दील हो जाती है।
कृषि क्षेत्र में गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्ति में वृद्धि के कारण:
- ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या में वृद्धि के कारण भूमि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ा है और कृषि जोत स्वामित्व में संकुचन की प्रवृत्ति देखने को मिलती है।
- कृषि कार्य हेतु अवसंरचनात्मक सुविधाओं की कमी और शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सुविधाओं की भी पर्याप्तता नहीं होने से ग्रामीण संकट में वृद्धि होना।
- सरकार के कृषि ऋण माफी जैसे क़दमों से कुछ लोगों में जानबूझकर ऋण न चुकाने की प्रवृत्ति।
- इसके अतिरिक्त कृषिगत उत्पादों के मूल्यों में गिरावट के कारण भी किसानों में ऋण वापसी की भावना हतोत्साहित हुई है।
सरकार द्वारा गैर-निष्पादनकारी संपत्ति से निपटने हेतु कई कदम उठाए गए हैं—
- संसद द्वारा बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में संशोधन किया गया है। इस अधिनियम के माध्यम से भारतीय रिज़र्व बैंक ऋण चुकाने में डिफॉल्ट के मामले में कार्यवाही प्रारंभ करने के लिये बैंकों को निर्देशित कर सकता है।
- साथ ही एनपीए समस्या के समाधान हेतु 4R's की अवधारणा प्रस्तुत की गई है। इसके अंतर्गत रिकॉगनिशन, रिकैपिटलाइज़ेशन, रेज़ोल्यूशन और रिफॉर्म शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त शोधन अक्षमता और दिवालियापन संहिता, 2016 को सूचना उपक्रमों से संबद्ध करना,जैसे कदम हैं।