“गर्मी के मौसम में जंगलों में लगने वाली आग व्यापक रूप से प्राकृतिक पूंजी को नष्ट कर देती है।” इसके कारणों की चर्चा करते हुए पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले प्रभावों तथा समाधानों पर प्रकाश डालिये।
21 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण
प्रश्न-विच्छेद
हल करने का दृष्टिकोण
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गर्मी के मौसम में देश के पहाड़ी राज्यों विशेषकर उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली आग हर साल विकराल होती जा रही है, जो न केवल जंगल, वन्य जीव और वनस्पति जैसी प्राकृतिक पूंजी को नष्ट कर रही है बल्कि समूचे पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है। इसके लिये जहाँ कुछ हद तक प्राकृतिक कारण ज़िम्मेदार हैं वहीं अधिकांश रूप में यह मानवीय क्रियाकलापों द्वारा उत्पन्न हो रही है।
जंगलों का इस प्रकार धधकना कई तरह के संकटों को निमंत्रण देता है। जंगलों के जलने से उपजाऊ मिट्टी का कटाव तो तेज़ी से होता ही है, साथ ही जल संभरण का काम भी प्रभावित होता है। वनाग्नि का बढ़ता संकट जंगली जानवरों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर देता है। इसके प्राकृतिक कारणों में जहाँ बिजली गिरना, पेड़ की सूखी पत्तियों के मध्य घर्षण, तापमान की अधिकता तथा पेड़-पौधों में शुष्कता आदि शामिल हैं, वहीं मानवीय कारणों में अनेक क्रियाकलापों को शामिल किया जाता है, जैसे-
वर्तमान में वनों में अतिशय मानवीय अतिक्रमण ने वनों में लगने वाली आग की बारंबारता को बढ़ाया है। पशुओं को चराना, झूम खेती, बिजली के तारों का वनों से होकर गुज़रना आदि ने इन घटनाओं में वृद्धि की है। इसके अतिरिक्त, सरकारी स्तर पर वन संसाधन एवं वनाग्नि के प्रबंधन हेतु तकनीकी प्रशिक्षण का अभाव इसका प्रमुख कारण है। अव्यावहारिक वन कानूनों ने वनोपज पर स्थानीय निवासियों के नैसर्गिक अधिकारों को खत्म कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीणों और वनों के बीच की दूरी बढ़ी है।
कुछ समय पूर्व खाद्य एवं कृषि संगठन के विशेषज्ञों के दल ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में भारत में जंगल की आग की स्थिति को बहुत गंभीर और बेहद चिंताजनक बताया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि आर्थिक और पारिस्थितिकी के नज़रिये से जंगल की आग पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता, न ही क्षेत्रीय स्तर पर इस समस्या से निपटने के लिये कोई कार्य योजना है। जंगल की आग पर आँकड़े बहुत सीमित हैं, साथ ही वे विश्वसनीय नहीं है। इसके अलावा, आग के मौसम की भविष्यवाणी करने की भी कोई व्यवस्था नहीं है तथा इसके खतरे के अनुमान, आग से बचाव और उसकी जानकारी के उपाय भी उपलब्ध नहीं हैं।
वनाग्नि पारिस्थितिकी को व्यापक रूप से प्रभावित करती है। पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले इसके प्रभावों में शामिल हैं-
वनाग्नि की इस भीषण समस्या से निपटने के लिये भारत में एक संपूर्ण वनाग्नि प्रबंधन की आवश्यकता है जो राज्यों में संस्थागत रूप में उपलब्ध हो, साथ ही केंद्र सरकार द्वारा प्रशिक्षण, अनुसंधान और जागरूकता संबंधी सहायता भी उपलब्ध कराई जानी चाहिये। इसके अन्य समाधानों में-
वन हमारी अमूल्य संपदा हैं, आम आदमी के साथ इसका सदियों पुराना रिश्ता कायम किये बिना जंगलों को आग और इससे होने वाले नुकसान से बचाना सरकार और वन विभाग के वश में नहीं है, लेकिन इस वास्तविकता को स्वीकारने के लिये कोई तैयार नहीं है।