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प्रश्न :
क्या आप मानते है कि भारतीय अर्थव्यवस्था विकास के पथ पर अग्रसर है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क सहित विश्लेषण कीजिये।
30 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण :
- केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा द्वारा जरी की गयी रिपोर्ट की चर्चा
- सकारात्मक तथा नकारात्मक पक्ष
- विश्लेष्णात्मक निष्कर्ष
हाल ही में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही के विकास के आँकड़े जारी किये गए जिसके अनुसार, जनवरी से मार्च के मध्य अर्थव्यवस्था की विकास दर 7.7 प्रतिशत रही। इन आँकड़ों से भविष्य में विकास दर और तेज़ होने का अनुमान लगाया जा सकता है। क्या इन आँकड़ों के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था को विकास के पथ पर अग्रसर माना जा सकता है? इसे निम्नलिखित बिंदुओं के द्वारा समझा जा सकता हैः
भारतीय अर्थव्यवस्था ने घरेलू विकास में प्रतिलाभ को दर्शाया है।- विमुद्रीकरण तथा जीएसटी सहित सरकार की नई नीतिगत पहलों ने स्पष्ट रूप से उत्पादकता प्रदर्शन को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया है।
- नई मौद्रिक नीति फ्रेमवर्क समझौते में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति को औसतन 4 प्रतिशत बनाए रखने का लक्ष्य शामिल किया गया है।
- 2017-18 की चौथी तिमाही में सकल नियत पूंजी निर्माण में 14.4 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई।
- रेल-सड़क परियोजनाओं के विस्तार को प्राथमिकता देने के साथ ही सब्सिडी के बेहतर नियोजन के माध्यम से अतिरिक्त राजकोषीय विस्तार का निर्माण किया गया।
- मेक इन इंडिया तथा स्टार्ट-अप जैसी योजनाओं से उत्पादकता में सुधार हुआ है।
- रियल एस्टेट और बैंकिंग के लिये नियामक ढाँचे को बदल दिया गया है।
उपर्युक्त तथ्यों के बावजूद कुछ ऐसे भी आँकड़े देखने को मिलते हैं जो अर्थव्यवस्था में गिरावट को इंगित करते हैं। जैसे- केंद्रीय सांख्यिकीय कार्यालय द्वारा जारी सकल घरेलू उत्पाद विकास के अनुमान से पता चलता है कि 2011-12 की कीमतों के आधार पर 2017-2017 में अर्थव्यवस्था में 6.7 प्रतिशत का विकास हुआ जो सरकार के चार वर्षों के शासन में सबसे कम वृद्धि दर है।
सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि अर्थशास्त्री यह भी मानते हैं कि अर्थव्यवस्था केवल उस निम्न स्तर से ऊपर उठी है जिस निम्न स्तर पर पहुँच गई थी। कृषि क्षेत्र में व्यक्तिगत सकल घरेलू उत्पाद में मात्र 4.91 प्रतिशत की वृद्धि 2012-13 के बाद से चौथी तिमाही के दौरान होने वाली सबसे कम वृद्धि है। कई राज्यों में कृषकों द्वारा हड़ताल की जा रही है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण मांग में कमी आने के साथ ही निर्यात आधारित जीडीपी अनुपात भी घट गया जो की एक दशक में सबसे कम है।
ऐसे में आर्थिक विकास पुनरुत्थान का जश्न मनाना निश्चित रूप से जल्दबाजी होगी, किंतु औद्योगिक तथा कृषिगत सुधारों के साथ निश्चित तौर पर भारत द्वारा वास्तविक उच्च दर प्राप्त करने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।
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