नई आर्थिक नीति से आप क्या समझते हैं? वर्तमान में इसकी सफलता पर चर्चा करते हुए इसके तहत अपनाए गए सुधारों को स्पष्ट करें।
16 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा
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नई आर्थिक नीति का तात्पर्य भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने के लिये 1991 में अपनाई गई नीतियों से है। नई आर्थिक नीति के उपायों को स्थिरीकरण उपाय तथा संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रम में बाँटकर देखा जा सकता है।
अर्थव्यवस्था में त्वरित सुधारों के लिये स्थिरीकरण उपायों को अमल में लाया गया। इसके तहत रुपए के विनिमय दर का अवमूल्यन करना, आईएमएफ से उधार लेना, कीमत में स्थिरीकरण तथा मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाने जैसे उपायों पर बल दिया गया।
संरचनात्मक समायोजन के तहत सुधारों को प्रथम पीढ़ी तथा द्वितीय पीढ़ी के सुधारों में बाँटकर देखा जा सकता है। इसमें औद्योगिक सुधारों के तहत छः उद्योगों को छोड़कर अन्य उद्योगों को लाइसेंस मुक्त किया गया, बाज़ार आधारित उत्पादन नीति को बढ़ावा दिया गया तथा तकनीकी उन्नयन हेतु पूंजीगत वस्तुओं के आयात पर छूट दी गई। वित्तीय सुधारों के तहत रिज़र्व बैंक की भूमिका को नियामक के स्थान पर सुविधादाता के रूप में बदल दिया गया तथा एसएलआर एवं सीएलआर के अनुपात को तर्कसंगत बनाया गया। इसके अलावा विदेशी संस्थाओं को भारतीय वित्त बाज़ार में निवेश की अनुमति दी गई। वहीं, राजकोषीय सुधारों के तहत कर को तर्कसंगत बनाकर कर की मात्रा में वृद्धि की गई, विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने के लिये आयातों पर प्रतिबंधों को कम किया गया और निर्यात प्रोत्साहन को बढ़ावा दिया गया।
दूसरी पीढ़ी के सुधारों में इन्हीं सुधारों को व्यापक रुप से लागू करने के साथ-साथ अवसंरचना के विकास का प्रयास किया जा रहा है। उदाहरण के लिये औद्योगिक क्षेत्र की नीति को वृहद् उद्योगों के साथ-साथ लघु तथा कुटीर उद्योगों पर भी लागू किया गया और वित्तीय क्षेत्र में मुद्रा बाजार के स्थान पर पूंजी बाज़ार के विकास पर बल दिया गया है। इसके अलावा, विस्तारीकरण नीति के तहत कृषि सुधार बुनियादी ढाँचा तथा श्रम सुधारों पर बल दिया जा रहा है।
आज भारत पीपीपी के आधार पर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। साथ ही, भारत में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 1993 के 45 प्रतिशत की तुलना में 2011 में घटकर 22 प्रतिशत तक सीमित हो गई है। ये आँकड़े बताते हैं कि नई आर्थिक नीति अपने उद्देश्यों में काफी हद तक सफल रही है। किंतु भारत में अमीरों तथा गरीबों के बीच बढ़ता अंतराल तथा प्रति व्यक्ति आय के रूप में भारत का कमज़ोर प्रदर्शन यह बताता है कि यह नीति पूर्णतया समावेशी नहीं हो पाई है। अर्थव्यवस्था में संपूर्ण सुधार के लिये इसे अधिक समावेशी बनाए जाने की आवश्यकता है।