वर्तमान में रुपए के मूल्य में गिरावट के कारणों की चर्चा करते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को स्पष्ट करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में वर्तमान में रुपए के मूल्य में गिरावट की चर्चा करें।
- तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में इसके कारणों की चर्चा करते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को स्पष्ट करें।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
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पिछले कुछ महीनों में रुपए के मूल्य में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। पिछले वर्ष डॉलर की तुलना में रुपए में 5.96% की मज़बूती देखी गई थी, जो वर्ष 2018 की शुरुआत से ही लगातार डॉलर के मुकाबले कमज़ोर होता दिख रह है। पिछले कुछ हफ्तों से गिरावट की गति में और भी वृद्धि हुई है। इस वर्ष रुपए का मूल्य डॉलर के मुकाबले लगभग 7% नीचे आ चुका है। वर्तमान में यह एक साल के न्यूमतम स्तर तक पहुँच गया है। अवमूल्यन के कारणों की पड़ताल की जाए तो इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-
- पिछले वर्ष फेडरल रिज़र्व बैंक की सख्त मौद्रिक नीति के बीच 10 वर्षीय यू.एस. ट्रेज़री बॉण्ड में लगभग 2% से 3% की वृद्धि देखी गई थी। इसने निवेशकों को दुनिया के अन्य देशों में अपनी संपत्ति बेचने और अमेरिका में निवेश करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया ताकि वे अधिक-से-अधिक लाभ अर्जित कर सकें। इसके अतिरिक्त निवेशकों को यह भी आशंका हो सकती है कि अमेरिकी मौद्रिक नीति की सख्ती से दूसरे देशों की मुद्रा की तुलना में डॉलर की उपलब्धता कम हो। इन दोनों कारकों की आड़ में व्यापारियों ने भविष्य में खुदरा मांग के अनुमान में अन्य मुद्राओं के उपयोग से डॉलर को तरजीह दी।
- अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता ट्रेड वार, जिसके अंतर्गत दोनों ही देशों ने एक-दूसरे की वस्तुओं पर कड़े प्रतिबंध आरोपित किये और शुल्कों में बढ़ोतरी की तथा अमेरिका में श्रम मूल्यों में हुई बढ़ोतरी मुद्रा में अवमूल्यन के कारणों में से एक है।
- जनवरी माह से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा इक्विटी और बॉण्ड मार्केट से संचयी रूप में 9.4 बिलियन डॉलर की निकासी की गई है।
- वैश्विक अस्थिरता की स्थिति अगस्त 2013 की तरह ही बनी हुई है। उल्लेखनीय है कि इसी दौरान भारतीय रुपए का पिछला न्यूनतम स्तर 68.83 रुपए प्रति डॉलर था।
- तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ने चालू खाता घाटा (current account deficit) को और विस्तृत किया है। इसके कारण भी निवेशकों में रुपए के प्रति अविश्वास का भाव दिख रहा है।
- पेट्रोलियम तथा रत्न एवं आभूषण जैसी वस्तुओं में उच्च आयात तीव्रता की स्थिति।
- उच्च लॉजिस्टिक्स लागत में कटौती करने के लिये विश्वसनीय घरेलू सुधारों की अनुपस्थिति।
- इसके अतिरिक्त भारत द्वारा क्रिप्टोकरेंसी को मान्यता नहीं प्रदान करना और बैंकों में हो रही धोखाधड़ी की घटनाओं ने निवेशकों में अविश्वास का माहौल उत्पन्न किया है।
- हाल के दिनों में स्विस बैंक में रुपए की हुई बढ़ोतरी ने भी भारतीय रुपए पर दबाव डाला है।
मुद्रा के मूल्य में गिरावट प्रत्येक स्थिति में नकारात्मक नहीं होता है। ध्यातव्य है कि मुद्रा के मूल्य में गिरावट से किसी भी देश का आयात महँगा हो जाता है और उसका निर्यात सस्ता हो जाता है। किंतु, प्रत्येक स्थिति में यह सिद्धांत लाभकारी नहीं होता है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी इसके प्रभाव को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से देखा जा सकता है -
निर्यात पर प्रभाव-
- भारतीय निर्यात ज़्यादातर लघु अवधि अनुबंधों (short term contracts) पर आधारित है, ऐसे में निर्यात के सस्ते होने से मांग में वृद्धि होती है और निर्यातकों को सहायता मिलती है।
- मुद्रा का मूल्य कम होने से निर्यातकों को सीमित मात्रा में लाभ होता है और वस्तुओं के मुकाबले सेवाओं के निर्यात में यह लाभ अधिक दिखाई देता है। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि वस्तुओं के निर्यात में लगभग 60% की आयात तीव्रता देखी गई है, जबकि सेवाओं के संदर्भ में आयात पर निर्भरता काफी कम है।
- रुपए के मूल्य में कमी ऐसे समय हुई है जब विकसित अर्थव्यवस्था विशेषरूप से अमेरिका संरक्षणवादी रुख अपना रहा है। यह स्थिति भी निर्यात को अपेक्षित लाभ लेने से रोकेगी।
- इसके अतिरिक्त कुछ आधारभूत सुविधाओं जैसे- लॉजिस्टिक्स लागत और परिवहन सुविधाओं को बेहतर बनाए बिना अवमूल्यन का पर्याप्त लाभ नहीं मिल पाएगा।
- भारतीय निर्यात की प्रकृति लोचशील (elastic) होने से अवमूल्यन का बहुत लाभ मिलना मुश्किल है।
- भारत द्वारा निर्यातित वस्तुओं में प्रमुख रूप से रत्न एवं आभूषण तथा पेट्रोलियम उत्पाद शामिल हैं। भारत में निर्यात के लिहाज़ से इन वस्तुओं का उत्पादन अनुकूल नहीं है और इन्हें आयात कर मूल्य संवर्द्धन (value addition) के उपरांत ही निर्यात किया जाता है। इस तरह अवमूल्यन जब आयात को महँगा कर देगा तो वह निश्चित ही उपर्युक्त वस्तुओं के निर्यात को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा।
आयात पर प्रभाव-
- मुद्रा के मूल्य में कमज़ोरी आयात को महँगा बनाती है। इससे कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी होगी और कमज़ोर विनिमय दर खुदरा वस्तुओं के मूल्य को भी बढाएगा।
- यह रत्न और आभूषण क्षेत्र को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा, क्योंकि इनका निर्यात वस्तुतः आयात पर ही टिका है।
- पूंजीगत वस्तुओं के आयातकों की बचत में भी कमी हो सकती है।
- चूँकि भारत का आयात लोचशील नहीं है, अर्थात् हमारा आयात काफी हद तक निश्चित है ऐसे में अवमूल्यन और भी नुकसानदेह है।
- एक प्रगतिशील देश जो अपने विकास के लिये अपेक्षित तकनीकों को बाहर से खरीदता है, के लिये अवमूल्यन की स्थिति और भी नकारात्मक है।
- इसके अतिरिक्त यह देश में मुद्रास्फीति को भी बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। मुद्रास्फीति में वृद्धि विकास के लिये हानिकारक है खासकर वैसे समय में जब देश निवेश पुनरोद्धार की प्रक्रिया से गुजर रहा हो। साथ ही विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों के लिये यह स्थिति प्रतिकूल ही प्रतीत होती है। क्योंकि जब वे अपनी फीस अदा करने के लिये डॉलर की खरीद करेंगे तो उन्हें अधिक रुपए चुकाने होंगे।
भारत के लिये यह स्थिति अधिक जोखिमपूर्ण नहीं है क्योंकि भारत उन पाँच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है जो डॉलर के मज़बूत होने से अधिक सुभेद्य नहीं हैं। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज़ के अनुसार, भारत की ऋणों के वित्तपोषण के लिये विदेशी मुद्रा उधार पर कम निर्भरता अवमूल्यन के जोखिम को कम कर देती है। भारत का व्यापक घरेलू बाज़ार और स्थिर वित्तपोषण इसे बाहरी अस्थिरताओं से बचाने का कार्य करता है। हाल के वर्षों में भारत द्वारा पर्याप्त मात्रा में विदेशी रिज़र्व भंडार का सृजन करना भी इसे मज़बूती प्रदान करता है।