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प्रश्न :
भारतीय वित्तीय व्यवस्था के विभिन्न घटकों और उसके कार्यों को विस्तारपूर्वक बताएँ।
04 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
भूमिका में:
भारतीय वित्तीय व्यवस्था के विभिन्न घटकों का सामान्य परिचय देते हुए उत्तर आरंभ करें-भारतीय वित्तीय व्यवस्था में विभिन्न संस्थाएँ, बाज़ार एवं प्रपत्र शामिल होते हैं जो एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित होते हैं।
विषय-वस्तु में:
विषय-वस्तु के पहले भाग में देश में वित्तीय व्यवस्था की प्रभावी भूमिका को बताते हुए उसके घटकों को विस्तारपूर्वक बताएँ-देश में वित्तीय व्यवस्था, बचतों को निवेश में परिवर्तित करने के लिये मुख्य साधन उपलब्ध कराती है। साथ ही संसाधनों के आवंटन में योगदान के कारण भारत जैसे विकासशील देश में अहम भूमिका निभाती है। वित्तीय संस्थाएँ या मध्यवर्ती वित्तीय संस्थाओं में वाणिज्यिक बैंकों, बीमा कंपनियों, पारस्परिक निधियों और बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ, विकास हेतु वित्तीय संस्थाएँ शामिल हैं। वहीं वित्तीय प्रपत्रों में मांग जमाएँ, अल्पावधि ऋण, मध्यवर्ती सावधि ऋण, दीर्घकालीन ऋण एवं सामान्य शेयरर्स और बॉण्ड आदि शामिल होते हैं।
इन संस्थाओं को मुख्य रूप से निम्न वर्गों में बाँटा गया है-
- विकास वित्तीय संस्थाएँ
- बीमा कंपनियाँ
- अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की वित्तीय संस्थाएँ
- पारस्परिक निधियाँ
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ
विषय-वस्तु के दूसरे भाग में हम वित्तीय व्यवस्था के महत्त्वपूर्ण कार्यों को बताएंगे-
- देश में बड़े उपक्रमों की स्थापना के लिये यह निधियों का संग्रह करती है।
- जोखिम के नियंत्रण एवं अनिश्चितता के प्रबंधन हेतु यह साधन प्रदान करती है।
- यह विकेंद्रीकृत निर्णयों को एक साथ लाने के लिये सूचनाएँ प्रदान करती है।
- यह वस्तुओं एवं सेवाओं के विनिमय हेतु भुगतान पद्धति की व्यवस्था प्रदान करती है।
- इसमें संवेदनशील सूचनाओं का सूक्ष्मता से विश्लेषण किया जाता है जिससे सूचना-अंतराल के प्रबंधन में मदद मिलती है।
निष्कर्ष
अंत में प्रश्नानुसार संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।वित्तीय संस्थाओं की प्राथमिक भूमिका ऋणदाता एवं ऋणकर्त्ता के बीच मध्यस्थता का कार्य करने की होती है। ये संस्थाएँ पूरी तरह रिज़र्व बैंक की निगरानी में कार्य करती हैं। वित्तीय संस्थाओं द्वारा जमा की गई निधियों को वित्तीय संपत्तियों के विभिन्न पोर्टफोलियो में निवेश किया जाता है। वित्तीय संस्थाएँ अंतिम ऋणदाताओं को तरल एवं कम जोखिम वाली वित्तीय संपत्तियाँ प्रदान करती हैं। इस प्रकार वित्तीय संस्थाएँ बचतकर्त्ताओं एवं निवेशकों के बीच मध्यस्थता करके देश के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाती हैं।
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