संसद के उच्च सदन के रूप में राज्यसभा की शक्तियों एवं उपयोगिता को स्पष्ट करें। इस सदन को अधिक उपयोगी बनाने के लिये किन उपायों पर बल दिया जाना चाहिये?
उत्तर :
भारत में संघीय व्यवस्था को संरक्षित करने के लिये उच्च सदन के रूप में राज्यसभा का गठन किया गया था। इसकी प्रमुख शक्तियों को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है-
- राज्यसभा की सबसे महत्वपूर्ण शक्ति कानून निर्माण की शक्ति है। नियमानुसार विभिन्न विधेयकों को अधिनियम में परिवर्तित करने के लिये राज्यसभा की सहमति की आवश्यकता पड़ती है। यद्यपि साधारण विधेयक के मामले में संख्या बल के अधिक होने के कारण लोकसभा संयुक्त बैठक के माध्यम से राज्यसभा पर भारी पड़ सकती है। किंतु संविधान संशोधन विधायकों में राज्यसभा की शक्तियां लोकसभा के समान ही है।
- वित्तीय विधायकों के मामले में राज्यसभा की स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर है। वित्त विधेयक से संबंधित मामलों में राज्यसभा की सलाह को मानना लोकसभा के लिये अनिवार्य नहीं है।
- इसके अलावा राज्यों के प्रतिनिधित्व करने के के लिये राज्यसभा को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त हैं।
- अनुच्छेद 249 के अनुसार यह संसद को राज्य सूची के विषय पर क़ानून बनाने के लिये अधिकृत करती है
- इसके अलावा, अनुच्छेद 312 के तहत यह संसद को केंद्र एवं राज्य दोनों के लिये नई अखिल भारतीय सेवाओं के सृजन हेतु अधिकृत कर सकती है।
राज्यसभा की उपयोगिता को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है-
- लोकसभा के अधिकांश प्रतिनिधि बहुमत वाले दल से चयनित होते हैं ऐसे में अपने राजनीतिक लाभ के लिये ये विधियों के निर्माण में निरंकुश हो सकते हैं। यह सदन निम्न सदन की निरंकुशता पर रोक लगाती है और कानून निर्माण की प्रक्रिया को अपेक्षाकृत अधिक लोकतांत्रिक बनाता है।
- वित्तीय विधेयकों के मामले में राज्यसभा लोकसभा को बहुमूल्य सुझाव प्रदान कर इसकी समस्याओं का समाधान करती है।
- राज्यसभा में अनुभवी एवं दक्ष लोगों को मनोनीत किए जाने के प्रावधान भी हैं। इससे विभिन्न मामलों में विधेयकों पर विशेषज्ञों की राय मिल पाती है जिससे विधेयक की प्रभाविता में वृद्धि होती है।
- इसके अलावा यह केंद्र के अनावश्यक हस्तक्षेप को रोककर राज्यों के हितों की रक्षा करती है।
इस सदन को अधिक उपयोगी बनाने के लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-
- राज्यसभा में विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों कि संख्या को समान किया जा सकता है, इससे संघीय ढाँचा अधिक मजबूत होगा और अपेक्षाकृत कम जनसंख्या वाले छोटे राज्यों के हित भी सुरक्षित रहेंगे।
- इसके अलावा, सामान्य विधेयक तथा वित्त विधेयक से संबंधित मामले में राज्यसभा की शक्तियों को बढ़ाने की आवश्यकता है।
- राज्यसभा की प्रभाविता को बढ़ाने के लिये इसके सदस्यों के चयन में भी सावधानी बरतने की आवश्यकता है। इसके सदस्यों के चयन में राजनीति अथवा दलबंदी का स्थान पर विशेषज्ञता, निरपेक्षता तथा व्यक्ति विशेष की नैतिकता को अधिक महत्त्व देने की आवश्यकता है।
- संसदीय समितियों में राज्यसभा को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए।
इन कदमों के क्रियान्वयन से राज्यसभा की भूमिका तथा प्रभाविता को बढ़ाकर देश में संघीय शासन व्यवस्था को सुदृढ़ किया जा सकता है।