वैश्विक अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार की दृष्टि से वर्ष 2018 किस प्रकार से महत्त्वपूर्ण हो सकता है? प्रमुख आर्थिक संकेतकों का उल्लेख करते हुए विवेचना कीजिये।
20 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा
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वैश्विक अर्थव्यवस्था 2008 के वित्तीय संकट की छाया से बाहर निकलती हुई प्रतीत हो रही है और इसी के अनुरूप वैश्विक मौद्रिक नीति में भी परिवर्तन लाना होगा। आने वाले महीनों में भारतीय नीति-निर्माताओं को भी इस बात का ध्यान रखना होगा।
वैश्विक आर्थिक पुनरुद्धार (रिकवरी) की जारी प्रक्रिया के इस वर्ष और मज़बूत होने की संभावना है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ‘विश्व आर्थिक परिदृश्य’के जनवरी माह के अपडेट के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्ष 2017 के 3.7 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2018 में 3.9 प्रतिशत की दर से वृद्धि करेगी। अमेरिका में आर्थिक वृद्धि दर 2017 के 2.3 प्रतिशत की तुलना में 2018 में 2.7 प्रतिशत होगी। यूरो क्षेत्र से भी अपेक्षा है कि वह 2 प्रतिशत से अधिक की दर से विकास करेगा। पुनरुद्धार की अपेक्षित गति वैश्विक मौद्रिक नीति के लिये वर्ष 2018 को एक महत्त्वपूर्ण वर्ष बना सकती है, क्योंकि बड़े केंद्रीय बैंक अपने संकटकालीन नीतिगत सामंजन (पॉलिसी एकोमोडेशन) की प्रक्रिया को पलट रहे हैं। अमेरिका में सामान्यीकरण की प्रक्रिया पहले से ही जारी है यदि वृद्धि और मुद्रास्फीति में कोई उछाल आता है तो इसकी गति में और वृद्धि हो सकती है। यूरोपीय सेंट्रल बैंक (इसीबी) अपनी परिसंपत्ति खरीद को कम कर रहा है और बैंक ऑफ जापान भी नीतिगत सामान्यीकरण की राह में आगे बढ़ने पर विचार कर सकता है।
कम-से-कम दो ऐसे बड़े कारण हैं कि बड़े केंद्रीय बैंकों के लिये नीतिगत सामंजन की समाप्ति महत्त्वपूर्ण है। पहला, भले ही विकसित अर्थव्यवस्थाएँ विकास कर रही हैं और वैश्विक पुनरुद्धार में योगदान कर रही हैं, लेकिन वे प्रचलित निम्न या नकारात्मक दरों के कारण एक संभावित मंदी से निपटने के लिये अभी पर्याप्त रूप से तैयार नहीं हैं। यहाँ तक कि अमेरिका में भी नीति दर (पॉलिसी रेट) 1.25-1.5 प्रतिशत के बीच ही है। यह वर्ष के अंत तक 2-2.25 प्रतिशत के स्तर पर पहुँचेगी और तब भी यह मंदी से निपटने में पर्याप्त रूप से सहायक नहीं होगी। यूरोपीय सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ जापान के लिये एक नकारात्मक वृद्धि के झटके का प्रबंधन करना और भी कठिन होगा। इसलिये यह आवश्यक है कि ऐसे समय जब अर्थव्यवस्था एक उचित गति से विकास कर रही है तब ‘एकोमोडेशन’ की समाप्ति हो और नीतिगत फलक का सृज़न हो। दूसरा, दीर्घकालिक नीतिगत सामंजन ने वित्तीय बाज़ारों में (विकसित व विकासशील दोनों बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में) आधिक्य की स्थिति को उत्पन्न किया है। जारी ढील से आगे परिसंपत्ति मूल्यों में और वृद्धि होगी तथा अंतिम सुधार और अधिक पेचीदा होगा, जिसका प्रबंधन और अधिक जटिल होगा।
यद्यपि उद्देश्य स्पष्ट है लेकिन नीति पथ तय नहीं है। वैश्विक पुनरुद्धार के लिये एक बड़ा जोखिम वित्तीय बाज़ारों में आया एक तेज़ सुधार है। वस्तुतः वित्तीय बाज़ारों में अस्थिरता और विकास पर इसका प्रभाव केंद्रीय बैंकों को विवश कर सकता है कि वे नीतिगत सामान्यीकरण की प्रक्रिया को स्थगित कर दें। यह नीति-निर्माण की जटिलता को और बढ़ा देगा। उदाहरण के लिये, हाल की यह खबर कि बैंक ऑफ जापान ने अपनी परिसंपत्ति खरीद में कमी की है, ने येन को ऊपर चढ़ा दिया है। यद्यपि जापानी केंद्रीय बैंक द्वारा इस हफ्ते ही की गई यह घोषणा कि वह अपने ढील देने के कार्यक्रम (इज़िंग प्रोग्राम) कार्यान्वयन को जारी रखेगा। संभावित है कि बैंक ऑफ जापान अपने नीतिगत दृष्टिकोण पर इस वर्ष के अंत में पुनर्विचार करेगा, क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि 1990 के दशक के बाद अभी अर्थव्यवस्था सबसे बेहतर स्थिति में है।
बड़े केंद्रीय बैंकों के लिये यह वर्ष महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वे अभी बेहतर स्थिति में हैं कि नीतिगत सामंजन को ढीला छोड़ दें। हालाँकि, प्रगति इस पर निर्भर करेगी कि वे उभरते मैक्रोइकॉनमिक परिदृश्यों के प्रति क्या दृष्टिकोण रखते हैं और वे वित्तीय बाजारों के प्रति अपनी नीतिगत मंशा को प्रस्तुत करने में कितने सक्षम होते हैं।