हाल ही में प्रवाल भित्तियों की रक्षा हेतु ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा लिये गए निर्णय के संदर्भ में इनके अर्थ, उपयोगिता, समस्याओं एवं वितरण के विषय में संक्षेप में चर्चा कीजिये। साथ ही यह भी स्पष्ट कीजिये कि जलवायु परिवर्तन एवं महासागरीय अम्लीकरण के कारण इन पर क्या प्रभाव पड़ता है तथा इनके बचाव हेतु क्या किया जा सकता है?
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में ग्रेट बैरियर रीफ को बताते हुए इसे बचाने के लिये ऑस्ट्रेलियाई सरकार के निर्णय को लिखें।
- तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में इनके अर्थ, उपयोगिता, समस्याओं एवं वितरण की संक्षेप में चर्चा करते हुए जलवायु परिवर्तन एवं महासागरीय अम्लीकरण के इन पर प्रभाव तथा बचाव हेतु समाधान के उपाय लिखें।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
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ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर स्थित ग्रेट बैरियर रीफ दुनिया की सबसे बड़ी और प्रमुख अवरोधक प्रवाल भित्ति है। यह ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड के उत्तर-पूर्वी तट में मरीन पार्क के समानांतर 1200 मील तक फैली हुई है। इसकी चौड़ाई 10 मील से 90 मील तक है। महाद्वीपीय तट से इसकी दूरी 10 से 150 मील तक है। ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ को बचाने के लिये ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने 500 मिलियन ऑस्ट्रेलियन डॉलर आवंटित करने का निर्णय लिया है।
प्रवाल भित्तियाँ या मूंगे की चट्टानें (Coral reefs) समुद्र के भीतर स्थित प्रवाल जीवों द्वारा छोड़े गए कैल्शियम कार्बोनेट से बनी होती हैं। प्रवाल कठोर संरचना वाले चूना प्रधान जीव (सिलेन्ट्रेटा पोलिप्स) होते हैं। इन प्रवालों की कठोर सतह के अंदर सहजीवी संबंध से रंगीन शैवाल जूजैंथिली पाए जाते हैं। प्रवाल भित्तियों को विश्व के सागरीय जैव विविधता का उष्णस्थल (Hotspot) माना जाता है तथा इन्हें समुद्रीय वर्षावन भी कहा जाता है।
उपयोगिता: ध्यातव्य है कि प्रवाल भित्तियों को विश्व के दूसरे सबसे समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में जाना जाता है। यें न केवल अनेक प्रकार के जीवों एवं वनस्पतियों का आश्रय स्थल होती है, बल्कि इनका इस्तेमाल औषधियों में भी होता है। बहुत-सी दर्दरोधी दवाओं के साथ-साथ, इनका इस्तेमाल मधुमेह, बवासीर और मूत्र रोगों के उपचार में भी किया जाता है। कई अन्य उपयोगी पदार्थों, जैसे- छन्नक, फर्शी, पेंसिल, टाइल, श्रृंगार आदि में भी इनका प्रयोग किया जाता है। 1348,000 वर्ग किलोमीटर में फैले ऑस्ट्रेलियाई ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ पर तकरीबन 64 हज़ार नौकरियाँ निर्भर करती हैं। दुनिया भर से ग्रेट बैरियर रीफ को देखने आने वाले पर्यटकों की वजह से ऑस्ट्रेलिया को हर साल 6.4 अरब डॉलर (करीब 42 हज़ार करोड़ रुपए) की आय होती है।
वितरण
- विश्व के सर्वाधिक प्रवाल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पाए जाते हैं। ये भूमध्य रेखा के 30 डिग्री तक के क्षेत्र में पाए जाते हैं।
- विश्व में पाए जाने वाले कुल प्रवालों का लगभग 30% हिस्सा दक्षिण-पूर्वी एशिया क्षेत्र में पाया जाता है। यहाँ प्रवाल दक्षिणी फिलिपींस से पूर्वी इंडोनेशिया और पश्चिमी न्यू गिनी तक पाए जाते हैं।
- प्रशांत महासागर में स्थित माइक्रोनेशिया, वानुआतु, पापुआ न्यू गिनी में भी प्रवाल पाए जाते हैं।
- ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर स्थित ग्रेट बैरियर रीफ दुनिया की सबसे बड़ी और प्रमुख अवरोधक प्रवाल भित्ति है। भारतीय समुद्री क्षेत्र में मन्नार की खाड़ी, लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार आदि द्वीप भी प्रवालों से निर्मित हैं। ये प्रवाल लाल सागर और फारस की खाड़ी में भी पाए जाते हैं।
समस्याएँ: प्रवाल द्वीप जैव विविधता के दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं। लेकिन वर्तमान में इन्हें जलवायु परिवर्तन, उष्णकटिबंधीय चक्रवात, स्टार फिश सहित अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। गौरतलब है कि महासागरों में कार्बन डाइऑक्साइड के विलयन की बढ़ती मात्रा महासागरों की अम्लीयता में वृद्धि कर देती है जिससे प्रवालों की मृत्यु हो जाती है। प्रवाल खनन, अपरदन आदि को रोकने हेतु बनाई गई रोधिका, स्पीडबोट के द्वारा होने वाले गाद निक्षेपण से भी प्रवालों को नुक्सान पहुँचता है। अधिकाँश एटॉल बाह्य जाति प्रवेश, परमाणु बम परीक्षण आदि मानवीय गतिविधियों से विरूपित हो गए हैं। औद्योगिक संकुलों से निष्कासित होने वाला जल इनके लिये संकट का कारक बन गया है। इसके अतिरिक्त तेल रिसाव, मत्स्यन, पर्यटन आदि से भी प्रवाल द्वीपों को नुकसान पहुँचता है। इसके अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन और महासागरीय अम्लीकरण का भी इन पर प्रभाव देखा गया है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव-
- हिंद महासागर, प्रशांत महासागर और कैरिबियाई महासागर में कोरल ब्लीचिंग की घटनाएँ सामान्य रूप से घटित होती रही हैं, परंतु वर्तमान समय में ग्लोबल वार्मिंग के कारण लगातार समुद्र के बढ़ते तापमान व अल-नीनो के कारण प्रवाल या मूंगे का बढ़े पैमाने पर क्षय हो रहा है।
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री-जल का ताप बढ़ने से प्रवाल भित्ति का विनाश होने लगता है। वर्तमान में लगभग एक-तिहाई प्रवाल भित्तियों का अस्तित्व ताप वृद्धि के कारण संकट में पड़ गया है।
- तापमान में बदलाव से प्रवाल आसानी से प्रभावित हो जाते हैं। तापमान के दबाव, यहाँ तक कि 1-2 डिग्री सेल्सियस बढ़ोतरी से ही प्रवाल और शैवाल के बीच संतुलन गड़बड़ा जाता है तथा शैवाल अलग होकर बिखरने लगते हैं। इस बिखराव से मूंगे का रंग और चमक फीकी पड़ जाती है और वे निर्जीव से दिखने लगते हैं।
- ब्लीचिंग से प्रवाल कमज़ोर पड़ जाते हैं और इनमें अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिये ऊर्जा भी नहीं बचती। इस कारण लगातार ब्लीचिंग से इनमें खुद ही सुधार होने की संभावना कम बचती हैं।
- इसके अतिरिक्त अति-मत्स्यन (Over-Fishing) जैसे स्थानीय कारक भी प्रवालों को प्रभावित करते हैं।
महासागरीय अम्लीकरण का प्रभाव-
- महासागरीय अम्लीकरण को समुद्री जल के pH में होने वाली निरंतर कमी के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- महासागरों में प्रवेश करने के बाद कार्बन डाइऑक्साइड जल के साथ संयुक्त होकर कार्बोनिक अम्ल का निर्माण करती है, जिससे महासागर की अम्लीयता बढ़ जाती है और समुद्र के पानी का pH कम हो जाता है।
- महासागरीय अम्लीकरण प्रवाल जीवों को उनके कठोर कंकाल को निर्मित करने से रोकता है। ऐसा महासागरों द्वारा मानव-जनित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की अधिक मात्रा को अवशोषित करने से होता है।
- ऑस्ट्रेलिया में दक्षिणी क्रॉस विश्वविद्यालय सहित कई संस्थानों के वैज्ञानिकों ने प्रशांत और अटलांटिक महासागरों के पाँच प्रवालों में 57 स्थानों पर तलछट विघटन के उपेक्षित पहलू का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि अम्लीकरण और तलछट विघटन के बीच संबंध प्रवाल गठन और अम्लीकरण की तुलना में अधिक मज़बूत है।
- उनके अनुमानों के मुताबिक़ 2050 तक प्रवाल तलछट घुलने शुरू हो जाएंगे और 2080 तक इनके निर्माण की तुलना में इनके घुलने की दर अधिक होगी। यह अध्ययन दर्शाता है कि महासागरीय अम्लीकरण की वज़ह से कोरल रीफ सिस्टम बढ़ने की बजाय कम हो रहा है।
प्रवाल द्वीप के विनाश को रोकने हेतु उपाय-
- तापमान वृद्धि को पूर्व औद्योगिक काल से 2°C तक सीमित करना।
- प्रवाल द्वीपों के पारिस्थितिकी तंत्र की वहन क्षमता के अनुकूल ही पर्यटन व मत्स्यन को बढ़ावा देना।
- प्रवालों पर आजीविका के वैकल्पिक साधनों को विकसित किया जाना चाहिये।
- विभिन्न हितधारकों और NGO आदि के संयुक्त प्रबंधन जैसे दृष्टिकोण के माध्यम से प्रवाल द्वीपों की रक्षा की जा सकती है।
- रासायनिक रूप से उन्नत उर्वरकों, कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों के उपयोग को न्यून किया जाना चाहिये।
- खतरनाक औद्योगिक अपशिष्टों को जल स्रोतों में प्रवाहित करने से पहले उन्हें उपचारित करना चाहिये।
- जहाँ तक संभव हो, जल प्रदूषण से बचना चाहिये।
- रसायनों एवं तेलों को जल में नहीं बहाना चाहिये।
- अति मत्स्यन पर रोक लगानी चाहिये, क्योंकि इससे प्राणी प्लवक में कमी आती है और परिणामतः कोरल भुखमरी के शिकार होते हैं।
ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा इस धनराशि का इस्तेमाल समुद्री जल की गुणवत्ता बढ़ाने, स्टार फिश को नियंत्रित करने, कोरल की संख्या में वृद्धि करने तथा पानी के भीतर निगरानी में वृद्धि करने हेतु किया जाएगा। इस धनराशि का कुछ हिस्सा तटीय इलाके में गन्ने की खेती और पशुपालन करने वाले किसानों को भी दिया जाएगा, ताकि रीफ को कीटनाशक और अन्य हानिकारक पदार्थों से बचाने हेतु किसान इसका इस्तेमाल खेती के तरीकों में बदलाव लाने के लिये कर सकें।