कांट्रैक्ट फार्मिंग क्या है? इसकी वर्तमान स्थिति एवं आवश्यकता को बताते हुए इस संदर्भ में मॉडल कांट्रैक्ट फार्मिंग अधिनियम 2018 की चर्चा करें।
04 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा
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कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग खरीदार और किसानों के मध्य हुआ एक ऐसा समझौता है, जिसमें इसके तहत किये जाने वाले कृषि उत्पादन की प्रमुख शर्तों को परिभाषित किया जाता है। इसमें कृषि उत्पादों के उत्पादन और विपणन के लिये कुछ मानक स्थापित किये जाते हैं जिसके तहत किसान किसी विशेष कृषि उत्पाद की उपयुक्त मात्रा खरीदारों को देने के लिये सहमति व्यक्त करते हैं और खरीदार उस उत्पाद को खरीदने के लिये अपनी स्वीकृति देता है। दूसरे शब्दों में, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत खरीदार (जैसे-खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ और निर्यातक) और उत्पादक (किसान या किसान संगठन) के बीच हुए फसल-पूर्व समझौते के आधार पर कृषि उत्पादन (पशुधन और मुर्गीपालन सहित) किया जाता है।
वर्तमान में देश के अधिकांश राज्यों में एपीएमसी प्रणाली लागू है, जिसके तहत किसानों से सीधे फसल खरीदने के बजाय कंपनियों या व्यवसाइयों को कृषि या फल मंडी में आना पड़ता है। यह पद्धति भारत के लिये नई नहीं है, लेकिन यह देश के सीमित हिस्सों में ही प्रचलित रही है। मॉडल एपीएमसी अधिनियम, 2003 के तहत राज्यों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित कानूनों को लागू करने संबंधी अधिकार दिये जाते है जिसमें 22 राज्यों ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को सह-विकल्प के रूप में अपनाया है। हालाँकि, इसके दायरे में आने वाली उपज के प्रकार के साथ-साथ उन शर्तों के बारे में भी कोई एकरूपता या समरूपता नहीं है, जिनके तहत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की अनुमति दी जानी चाहिये।
पंजाब में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर 2013 में द पंजाब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट नामक अलग से एक कानून बनाया गया है। इस कानून के आधार पर कृषि आधारित उत्पाद तैयार करने वाली कंपनियाँ सीधे किसानों से अपने लिये फसल उत्पादन करने का समझौता कर सकती हैं। किसानों द्वारा उपजाई गई फसल को कंपनियाँ सीधे खरीद सकती हैं। पंजाब में पिछले 15 वर्षों से भी अधिक समय से कॉर्पोरेट कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हो रही है और वहाँ टमाटर, आलू, मूंगफली एवं मिर्च के मामले में पेप्सिको इंडिया से किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिल रहा है। इसी प्रकार मध्य प्रदेश में कुसुम, आंध्र प्रदेश में पाम ऑयल एवं संकर बीज के लिये किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्त हो रहा है।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की ज़रूरत क्यों?
किसानों की आय बढ़ाने और उपज की बेहतर कीमत दिलाने के लिये केंद्र सरकार ने कांट्रैक्ट फार्मिंग पर मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग अधिनियम, 2018 को स्वीकृति दे दी है और इसका मसौदा जारी कर दिया है। इसका मुख्य उद्देश्य फलों और सब्जियों का उत्पादन करने वाले किसानों को कृषि प्रसंस्करण इकाइयों से सीधे तौर पर (बिचौलियों के बिना) एकीकृत करना है, ताकि उन्हें बेहतर मूल्य मिल सके और साथ ही फसल की कटाई के बाद होने वाले नुकसान को भी कम किया जा सके। इसके निम्नलिखित प्रावधान हैं -
भारत के किसानों की समस्याओं के निदान के लिये कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग सहायक हो सकती है। किसानों को उनकी पैदावार का न्यायसंगत मूल्य दिलाने व कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिये जहाँ सरकार को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग जैसे तरीकों को सधे हुए कदमों से प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है, वहीं ऐसी समुचित निगरानी व्यवस्था भी स्थापित करनी चाहिये जिससे किसानों के शोषण को रोका जा सके। इसीलिये कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को सुव्यवस्थित करने तथा इसे समस्त राज्यों में एक समान बनाने के लिये एक कानून का होना बेहद आवश्यक है। आशा की जा सकती है कि यह प्रस्तावित कानून इस दिशा में सकारात्मक और अच्छा कदम साबित होगा। लेकिन यह सावधानी बरतना भी उतना ही आवश्यक होगा कि हर हाल में कृषि किसानों के ही हाथों में रहनी चाहिये, कॉर्पोरेट हाथों में नहीं।