“भारत प्राकृतिक संसाधनों से धनी लेकिन गरीबों का देश है, यहाँ गरीबी उन्मूलन और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन एक-दूसरे के सापेक्ष चलते हैं।” इस कथन के संदर्भ में पर्यावरण संरक्षण और धारणीय विकास की अवधारणा का उल्लेख करें।
08 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण
उत्तर की रूपरेखा
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भारत के संदर्भ में यह कहा जाता है कि ‘भारत प्राकृतिक संसाधनों से धनी लेकिन निर्धन लोगों का देश है।’ यहाँ प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है, लेकिन आज भी देश में 30 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन निर्वाह करने को विवश हैं और उनके लिये प्रथम वरीयता रोटी, कपड़ा और मकान है। वे पर्यावरण के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते क्योंकि उनके लिये यह मुद्दा उनकी वरीयता में सबसे नीचे है। गरीबी उन्मूलन के लिये सरकार द्वारा चलाए जा रहे अनेक विकास कार्यक्रम प्राकृतिक संसाधनों पर भारी पड़ रहे हैं। यह अक्सर देखा गया है कि विकास कार्य के दौरान बीच में आने वाले पेड़ों या अन्य पारिस्थितिकी घटकों को दरकिनार कर दिया जाता है। शहरी क्षेत्रों में किये जा रहे विकास कार्य के दौरान यह स्थिति अधिक देखने को मिलती है। इस परिस्थिति पर गौर किया जाए तो इसके निम्नलिखित कारण दिखाई पड़ते हैं-
पर्यावरण तथा धारणीय विकास
वस्तुतः सतत् विकास जिस संगठित सिद्धांत की ओर इशारा करता है वह समाज एवं अर्थव्यवस्था को अपनी सेवाएँ प्रदान करने के लिये प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र की मज़बूती पर ही बल देता है। यह ऐसी व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण को प्रोत्साहित करता है जहाँ प्राकृतिक संसाधनों की अखंडता और स्थिरता को प्रभावित किये बिना मानवीय आवश्यकता को पूरा किया जाता है। इस तरह सतत् विकास से तात्पर्य ऐसे विकास से है जिसके अंतर्गत वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपनी आने वाली पीढि़यों की ज़रूरतों से समझौता नहीं किया जाता है। इसके अतिरिक्त पर्यावरण संरक्षण स्वैच्छिक रूप से किसी-न-किसी मात्रा में विकास की धारणीयता को भी संवर्द्धित करता है। बिना स्वच्छ पर्यावरण के सतत् विकास की अवधारणा बेईमानी है। समुचित विकास के लिये पेड़ एक प्राथमिक घटक है। पेड़ वह कड़ी है जो भौतिक दुनिया और प्राकृतिक दुनिया को जोड़ने का कार्य करती है। यह कार्बन प्रच्छादन, सौर ऊर्जा का उत्पादन, भौतिक जगत के लिये विभिन्न प्रकार की सामग्री उपलब्ध कराने के साथ-साथ खाद्य श्रृंखला और जैव-विविधता के लिये भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।
हमें यह समझना होगा कि पर्यावरण और मानव अस्तित्व एक-दूसरे के पूरक हैं, लेकिन पर्यावरण के बिना मानव जीवन की कल्पना करना बेमानी है। सतत् विकास की अवधारणा मनुष्य और उसके पर्यावरण के अंतर्संबंध को स्पष्ट करते हुए चेतावनी देती है कि मनुष्य पर्यावरण की कीमत पर विकास नहीं कर सकता क्योंकि इसमें अंतत: पराजय मनुष्य की ही होती है।