कृषि क्षेत्र में तमाम आर्थिक उपायों को अपनाए जाने के बाद भी कृषि आय में गिरावट ही दर्ज होती है। तर्क सहित विश्लेषण करें।
14 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा
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वर्तमान में कृषि क्षेत्र की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि उच्च पैदावार और सूखे में कोई अंतर नहीं रह गया है क्योंकि कृषि आय में गिरावट ही दर्ज होती है।
पिछले वर्ष अच्छी वर्षा, अत्यधिक बुवाई और उच्च पैदावार ने बाज़ार में आपूर्ति को इतना बढ़ा दिया कि कई फसलों के मूल्य गिर गए और नतीज़तन कृषि आय में कमी आई। कृषि आय में गिरावट को रोकने के लिये मूल्य समर्थन योजना, मूल्य स्थिरीकरण निधि और बाज़ार हस्तक्षेप योजना जैसे किसी भी आर्थिक उपाय का सक्षमता से उपयोग नहीं हो सका। निर्यात और आयात नियमों में तात्कालिक तथा सटीक समायोजन से अतिरिक्त आपूर्ति को विदेशी बाज़ार की ओर मोड़कर मूल्यों की गिरावट पर नियंत्रण किया जा सकता था। लेकिन समय रहते ऐसे उपाय नहीं आजमाए गए बल्कि आयात का प्रवाह निर्बाध बना रहा जिसने मूल्य स्थिति को और बदतर बनाया।
कृषि आय में वृद्धि के लिये सरकार ने इस वर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को उत्पादन लागत का कम-से-कम 150 प्रतिशत करने की घोषणा की लेकिन कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी एवं अन्य ने आकलन किया है कि यदि लागत का 1.5 गुना प्रदान करने के फॉर्मूले पर अमल किया गया तो 2018-19 के खरीफ मौसम के लिये धान के एमएसपी में 11-14 प्रतिशत वृद्धि लानी होगी, जबकि कपास में 19-28 प्रतिशत और ज्वार में 42-44 प्रतिशत वृद्धि करनी होगी। स्पष्ट है कि इस परिदृश्य को देखते हुए अगले मौसम में किसान अधिक लाभ के लिये ज्वार अधिक रोपेंगे। इस प्रकार यह नीति अनजाने में ही अधिक ज्वार उत्पादन का अवसर देगी, जबकि ज्वार की मांग में भी वृद्धि होने का कोई कारण मौजूद नहीं है। इससे एक मांग-आपूर्ति विसंगति पैदा होगी और ज्वार का बाज़ार मूल्य घोषित एमएसपी से बहुत कम होगा। इससे फिर एमएसपी पर ज्वार खरीद की मांग अत्यधिक होगी।
समस्या यह है कि मूल्य निर्धारण नीतियाँ बाज़ार मूल्यों को विकृत करती हैं और फसलों के चुनाव एवं उनकी बुवाई के बारे में किसानों को गलत संकेत प्रदान करती हैं जिसका कृषि आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यदि इन नीतिगत विफलताओं पर गौर कर लिया जाए तो निश्चित रूप से कृषि आय में में सुधार होगा।