मानव जनित वर्षा की प्रक्रिया को स्पष्ट करें। क्या इस विधि को भारत के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में व्यवहृत करना धारणीय है? परीक्षण कीजिये।
13 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी
उत्तर की रूपरेखा
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मनुष्य द्वारा अतिशीतल बादलों में कृत्रिम विधि से हिमकणों के नाभिकीयन द्वारा वर्षा कराने को मानव प्रेरित वर्षा या कृत्रिम वर्षा कहा जाता है। देश के कई हिस्सों में ‘सूखा’ की घटना एक सामान्य बात है। इस स्थिति के परिणाम कठोर हैं और कई बार तो अपरिवर्तनीय होते हैं। कृत्रिम वर्षा भारत के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पानी की समस्या से निजात दिलाने का कारगर उपाय हो सकती है। ऐसी तकनीक मानसून की परिवर्तनशीलता संबंधी प्रभावों के न्यूनीकरण में कारगर सिद्ध हो सकती है तथा कृषि एवं पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों को इस तकनीक से कम किया जा सकता है।
हिमकणों के नाभिकीयन तथा संघनन की प्रक्रिया को तेज करने के लिये सिल्वर आयोडाइड या ड्राई आइस (ठोस कार्बन डाईऑक्साइड) को रॉकेट या हवाई जहाज़ के ज़रिये बादलों में छोड़ा जाता है। इस प्रक्रिया को मेघ बीजन कहा जाता है। हवाई जहाज़ से सिल्वर आयोडाइड को बादलों के बहाव के साथ फैला दिया जाता है। विमान में सिल्वर आयोडाइड के दो बर्नर या जनरेटर लगे होते हैं, जिनमें सिल्वर आयोडाइड का घोल हाई प्रेशर पर भरा होता है। जहाँ बारिश करानी होती है, वहाँ पर हवाई जहाज से हवा की उल्टी दिशा में छिड़काव किया जाता है। कहाँ और किस बादल पर इसे छिड़कने से बारिश की संभावना ज़्यादा होगी, इसका फैसला मौसम वैज्ञानिक करते हैं। इसके लिये मौसम के आँकड़ों का सहारा लिया जाता है। इस प्रक्रिया में बादल हवा से नमी सोखते हैं और संघनित होने से उनका द्रव्यमान बढ़ जाता है। इससे बारिश की भारी बूँदें बनने लगती हैं और बरसने लगती हैं। क्लाउड सीडिंग का उपयेाग वर्षा में वृद्धि करने, ओलावृष्टि के नुकसान को कम करने, कोहरा हटाने तथा तात्कालिक रूप से वायु प्रदूषण कम करने के लिये किया जाता है।
क्या यह भारत के सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिये धारणीय है?
पक्ष में तर्कः
विपक्ष में तर्क:
भारत में कृत्रिम वर्षा की दिशा में अभी शोध कार्य जारी है तथा पर्याप्त सकारात्मक परिणामों की प्राप्ति के बाद ही इसे अमल में लाया जाएगा। इसके अलावा, हम जल संरक्षण के परंपरागत तौर-तरीकों को भी पुनर्जीवित कर सकते हैं जो भारतीय संदर्भ में जाँचा-परखा हुआ है।