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प्रश्न :
किगाली समझौता समान परंतु विभेदीकृत जिम्मेदारियों (Common but differentiated responsibility) के सिद्धांत पर कार्य करता है। कथन की चर्चा करते हुए इस समझौते के भारत पर पड़ने वाले प्रभावों का मूल्यांकन करें।
22 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरणउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा :
- किगाली समझौते का संक्षिप्त विवरण ।
- साझी किंतु भिन्नज़ि के तहत विभिन्न श्रेणी के देशों की उत्सर्जन संबंधी समय सीमा का उल्लेख करें।
- इससे भारत पर पड़ने वाले सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख करें।
हाइड्रोफ्लोरो कार्बन, ग्रीनहाऊस प्रभाव पैदा कर वायुमंडल का ताप बढ़ाने के मामले में कार्बन डाइऑक्साइड से हज़ार गुना खतरनाक है। इसलिये जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने हेतु भारत सहित 200 देशों ने हाइड्रोफ्लोरो कार्बन (एचएफसी) का इस्तेमाल कम करने के लिये कानूनी रूप से बाध्य ऐतिहासिक ‘किगाली समझौता’ किया। यह समझौता मुख्यतः ओज़ोन परत संरक्षण से संबंधित मांट्रियल प्रोटोकॉल में संशोधन है जो कि ‘साझी किंतु भिन्न उत्तरदायित्व’ की अवधारणा पर आधारित है।
इस अवधारणा के तहत विकसित देश जैसे- यूरोपीय संघ, अमेरिका तथा जापान आदि वर्ष 2019 से ही एचएफसी में कटौती प्रारंभ करेंगे तथा वर्ष 2036 तक इसके उपयोग में वर्ष 2010-12 के आधार स्तर से 85% तक कमी लाएंगे। चीन, ब्राज़ील तथा अन्य देश वर्ष 2045 तक वर्ष 2020-22 के उत्सर्जित स्तर से एचएफसी के प्रयोग को 85% तक कम करेंगे। भारत, ईरान, पाकिस्तान तथा खाड़ी देश आदि वर्ष 2028 से एचएफसी के उत्सर्जन में कटौती करना प्रारंभ करेंगे तथा वर्ष 2047 तक वर्ष 2024-26 के स्तर से 85% तक इस्तेमाल में कमी लाएंगे।
यह समझौता वैश्विक तापन को 0.50C तक कम रखने में सहायक होगा। इस समझौते की आवश्यकता एवं विशिष्टता के मद्देनज़र भारत ने भी सक्रियता से इसमें भाग लेते हुए वर्ष 2030 तक एचएफसी-23 के उपयोग को पूर्णतः समाप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है तथा एचएफसी के अन्य विकल्पों का प्रयोग करने हेतु सहमति प्रदान की।
इस समझौते के पर्यावरण पर जहाँ सकारात्मक प्रभाव पड़े हैं वहीं भारत की अर्थव्यवस्था एवं विकास पर इसका प्रभाव मिश्रित होगा जो कि निम्नलिखित हैं:
सकारात्मक प्रभाव:
- किगाली समझौते के सफल क्रियान्वयन के लिये भारत में हरित तकनीकी को बढ़ावा दिया जाएगा, जो कि अंततः पर्यावरण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिये लाभदायक होगी।
- हरित तकनीकी के विकास हेतु नवाचार एवं अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा जिससे भारत में तकनीकी का विकास होगा तथा भारत ‘आत्मनिर्भरता’ की ओर अग्रसर होगा।
नकारात्मक प्रभाव:
- हाइड्रोफ्लोरो कार्बन का विकल्प ‘हाइड्रोफ्लोरो ओलेफिन्स’अपेक्षाकृत महँगा है जो कि वित्तीय समस्या के रूप में एक चुनौती है।
- अधिकतर वैकल्पिक गैसें भारत में विनिर्मित नहीं होती तथा इनका पेटेंट वर्ष 2025 तक अन्य देशों के पास सुरक्षित है अतः भारत को प्रतिबद्धता के पालन में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।
- भारत तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर नहीं है ,अतः एचएफसी कटौती तथा इसके विकल्पों के लिये आवश्यक तकनीकों हेतु भारत की अन्य देशों पर निर्भरता बढ़ेगी
- औद्योगिक क्षेत्र पर उत्सर्जन कम करने की बाध्यता तथा तकनीक की अनुपलब्धता ‘मेक इन इंडिया’ के लक्ष्य के साथ-साथ भारत की विकास दर को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।
- अतः स्पष्ट है कि इस समझौते के भारत पर मिश्रित प्रभाव होंगे, यद्यपि नकारात्मक प्रभाव अल्पकाल में अधिक हैं परंतु दीर्घकालिक स्तर के संदर्भ पर देखें तो पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य के परिप्रेक्ष्य में इस समझौते के सकारात्मक प्रभाव अधिक होंगे।
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