वर्तमान में राज्यों के राजकोषीय घाटे में वृद्धि की प्रवृत्ति देखी जा रही है। कारण सहित व्याख्या करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में राज्यों के राजकोषीय घाटे को स्पष्ट करें।
- तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में राजकोषीय घाटे में वृद्धि के कारणों का उल्लेख करें।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
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वर्तमान में राज्यों की वित्तीय स्थिति चिंता का एक महत्त्वपूर्ण कारण है। राज्यों के राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये भी चिंता का कारण बन गई है। हाल ही में भारत सरकार के वित्त पर भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2018 में राज्य सरकारों का समेकित राजकोषीय घाटा 2.7% के बजट अनुमान के मुकाबले 3.1% था।
राज्य सरकारों का राजकोषीय घाटा बढ़ रहा है। संयुक्त राजकोषीय घाटे (केंद्र और राज्य) में राज्यों की हिस्सेदारी वित्तीय वर्ष 2012 के 18% से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2018 में 44% हो गया है। समेकित राज्य सरकारों का व्यय केंद्र सरकार के व्यय के आकार का करीब 1.4 गुना है। जबकि पाँच वर्ष पूर्व राज्य सरकार का व्यय, केंद्र सरकार के व्यय के समान था। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं :
- राजकोषीय संघवाद की भावना के अनुरूप समय-समय पर राज्य सरकारों की व्यय प्रतिबद्धता में वृद्धि हुई है लेकिन अभी भी उन्हें राजस्व संग्रह में सीमित स्वायत्तता है। कुल राजस्व प्राप्ति के प्रतिशत के रूप में राज्यों का अपना राजस्व लगभग 50 प्रतिशत के आसपास ही है, जबकि शेष राजस्व को केंद्र सरकार द्वारा हस्तांतरित किया जाता है।
- जीएसटी के शुरू होने से राज्यों की स्वायत्तता और भी कम हो जाती है क्योंकि राज्यों के पास जीएसटी दरों के संदर्भ में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की शक्ति नहीं है। इसमें दरें केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से तय की जाती हैं।
- राज्य सरकारों के बाज़ार उधार पर निर्भरता के कारण राज्य वित्त भी महत्त्वपूर्ण हो गया है। राज्यों के वित्तीय पोषण में बाज़ार से उधार की हिस्सेदारी वित्तीय वर्ष 2015 के 63% से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2019 में 91% हो गई है। इसलिये राज्यों के राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी अब अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों के लिये अधिक प्रत्यक्ष प्रभाव डालती है।
- उल्लेखनीय है कि उदय योजना,कृषि ऋण छूट और वेतन संशोधन के कारण पिछले कुछ सालों में राज्य सरकारों का कर्ज़ तेज़ी से बढ़ गया है। राज्य सरकारों का ऋण-से-जीडीपी अनुपात वित्तीय वर्ष 2015 के 21.5% से बढ़कर 24% हो गई है। जबकि समेकित राज्य सरकारों का ऋण से जीडीपी अनुपात केंद्र (46%) से कम है, पिछले तीन वर्षों में यह तेज़ वृद्धि चिंता का महत्त्वपूर्ण कारण है।
राज्यों को सावधान रहना होगा क्योंकि उन पर उच्च व्यय की ज़िम्मेदारी है और राजस्व संग्रह में उनकी सीमित स्वायत्तता है। हालाँकि इसे राज्यों के लिये आसान नहीं माना जा सकता है। व्यय के मोर्चे पर राज्यों को यह सुनिश्चित करना है कि व्यय की गुणवत्ता का प्रतिकूल प्रभाव नहीं होगा जैसा कि राजकोषीय घाटे के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये पूंजीगत व्यय से राजस्व के बढ़ते अनुपात के द्वारा दर्शाया गया है।