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प्रश्न :
अनेक विद्वानों का मत है कि विश्वविद्यालयों में राजनीति छात्रों को उनके परिवेश और समाज के संबंध में जागरूक बनाने के लिये आवश्यक है। उपरोक्त कथन का समालोचनात्मक परीक्षण करें।
05 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- पृष्ठभूमि
- विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति के सकारात्मक पक्ष
- विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति के नकारात्मक पक्ष
- निष्कर्ष
भारत के शैक्षणिक संस्थानों में राजनीति का जुड़ाव भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के समय से रहा है। विश्वविद्यालयों को राजनीति की नर्सरी भी कहा जाता है। हमारे स्वाधीनता आंदोलन के दौरान विश्वविद्यालय सर्वाधिक सक्रिय राजनीतिक अखाड़ों में से एक थे। महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के विरुद्ध जब भी कोई आंदोलन छेड़ा तो उनके पास हमेशा छात्रों के लिये एक राजनीतिक संदेश होता था। राष्ट्रीय आंदोलन के कई सारे नेताओं ने भी आजाद भारत में छात्र आंदोलन पर भरोसा किया। जयप्रकाश नारायण का आंदोलन इसकी मिशाल है। सतर्क छात्र राज्य के शोषक चरित्र पर प्रश्न उठाने की बेहतर स्थिति में होते हैं। परंतु स्वाधीनता प्राप्ति के बाद के दशकों में देश के राजनीति के स्वरूप में अत्यधिक परिवर्तन आया है, साथ ही छात्र राजनीति के मूल्यों में भी परिवर्तन देखने को मिला है। रोहित वेमुला से लेकर जेएनयू (JNU) में विरोध प्रदर्शन व दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर में हिंसा जैसी घटनाओं के कारण भारत के शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ती हुई राजनीति के विषय में कुछ चिंताएँ भी उभर कर सामने आई हैं।
विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति के सकारात्मक पक्षः
- राजनीति में अपराधी तत्त्वों के समावेश को रोकने के लिये यह आवश्यक है कि विद्यार्थी जीवन से ही छात्रों को राजनीति की शिक्षा प्रदान करें।
- अनेक विद्वानों का मत है कि विश्वविद्यालय में राजनीति शैक्षिक कार्यक्रम का ही अंग है। केवल जागरूक छात्र ही समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं और स्वयं भी राष्ट्र के लिये एक मूल्यवान संपत्ति बन सकते हैं।
- छात्रों के राजनीतिक संगठन, सरकार के नीतियों की प्रति युवाओं के मत निर्णायक होते हैं। वे विशिष्ट रूप से शैक्षणिक व छात्र संबंधी मुद्दों के प्रति सरकार का ध्यान आकर्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- वर्तमान समय में उदारवादी विचारों वाला प्रत्येक व्यक्ति स्वायत्तता और स्वतंत्र विचारधारा के लिये स्थान चाहता है। ऐसे में छात्रों द्वारा संघ बनाने और अपनी विचारधारा विकसित करने की चेतना को दबाना अत्यंत अलोकतांत्रिक माना जाएगा।
नकारात्मक पक्ष:
- कुछ प्रशासकों का मानना है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुशासन बनाए रखने के लिये छात्रसंघ चुनाव बंद कर देना चाहिये। इससे विश्वविद्यालय परिसरों में राजनीतिक दलों का दखल बढ़ता है और पढ़ाई-लिखाई पर नकारात्क प्रभाव पड़ता है।
- छात्र संघों को उनके मूल राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन दिया जाता है। अतः अधिकांश समय वे छात्र हितों के स्थान पर अपने दलगत हितों के लिये कार्य करते हैं। यही छात्र संगठन राजनैतिक विरोधियों के लिये गुंडागर्दी में शामिल रहते हैं।
- शैक्षणिक संस्थानों के राजनीतिकरण का परिणाम प्रायः यह होता है कि अकादमिक नियुक्तियाँ दलगत आधार पर होने लगती हैं और पाठ्यक्रम का निर्धारण पार्टी लाइन के आधार पर किया जाने लगता है।
निष्कर्षः ज्ञान और ऊर्जा से परिपूर्ण छात्र ही एक पूर्ण रूप से जागरूक राष्ट्र का निर्माण करते हैं। परंतु कई आधारों पर यह पाया गया है कि भारतीय विश्वविद्यालयों के परिसरों का राजनीतिकरण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिये हानिकारक रहा है। इसलिये यह आवश्यक हो गया है कि प्रमुख संस्थानों में आवश्यक जागरूकता और अनावश्यक राजनीतीकरण के बीच उचित संतुलन खोजा जाए।
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