भारत में लोकसभा व विधानसभाओं के साथ-साथ चुनाव के पक्ष व विपक्ष में दिये जाने वाले विभिन्न तर्कों की चर्चा करते हुए इसकी व्यवहार्यता के संबंध में अपना मत प्रकट करें।
07 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
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भारत में लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ कराए जाने के संबंध में समय-समय पर विभिन्न मत प्रकट किये जाते रहे हैं। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा भी लोकसभा, विधानसभा, तथा स्थानीय निकाय के चुनाव साथ-साथ कराये जाने की बात कही गयी तो यह मुद्दा एक बार पुनः जोर पकड़ता नज़र आ रहा है। परंतु किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले हमें इसके पक्ष-विपक्ष में दिये जाने वाले तर्कों की जाँच अवश्य कर लेनी चाहिये
पक्ष:
विपक्ष:
एक साथ इतने बड़े स्तर पर चुनाव करवाने में कई व्यावहारिक समस्याएं भी उत्त्पन्न हो सकती हैं, जैसे:
a) संविधान संशोधन की आवश्यकता, क्योंकि कई राज्यों की विधानसभाओं और लोकसभा के कार्यकाल में काफी अंतर है। साथ ही बिना अविश्वास प्रस्ताव व कार्यकाल की समाप्ति के किसी सदन को भंग करना संविधान की मूल भावना के विरुद्ध होगा।
b) पुनः यदि किसी/ किन्हीं राज्य विधानसभाओं का समय से पूर्व विघटन हो जाता है तो क्या यह अगले चुनाव तक राष्ट्रपति शासन के अधीन रहेगा?क्या यह एक प्रकार से राज्य की जनता को पूर्ण बहुमत वाली सरकार न चुनने का दंड देने के सामान न होगा?
c) यदि केंद्र सरकार बीच में ही लोकसभा में अपना बहुमत खो देती है, जबकि अन्य 29 राज्यों में पूर्ण बहुमत वाली सरकार हो, तो उनका क्या होगा?
इस प्रकार की कई अन्य व्यावहारिक समस्याएँ भी हैं जो एक साथ चुनाव के विचार पर प्रश्नचिन्ह उपस्थित करती हैं। फिर भारत जैसे विविधतामूलक राष्ट्र में एक साथ चुनाव प्रकारांतर से लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत प्रतीत होता है । 1967 तक का साथ-साथ चुनाव मूल रूप से एकदलीय वर्चस्व के कारण था न कि इसे डिॆज़ाईन किया गया था और अब पुनः वापस लौटना बहुत व्यावहारिक प्रतीत नहीं होता है।