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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    लंबित मुकदमे और न्यायाधीशों की कमी भारतीय न्यायपालिका की ऐसी समस्याएँ हैं जो निरंतर चर्चा में बनी रहती हैं। भारत में मुकदमों के लंबित होने के कारणों को बताते हुए इस समस्या के समाधान हेतु अपने सुझाव दीजिये।

    12 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

     उत्तर की रूपरेखा :
    • न्यायालय में मुकदमों के लंबित होने का कारण।
    • न्यायपालिका में सुधार हेतु कुछ सुझाव।।

    राष्ट्रीय अदालत प्रबंधन की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते तीन दशकों में मुकदमों की संख्या दोगुनी रफ़्तार से बढ़ी है। हमारे देश में न्यायाधीशों की संख्या और आबादी के बीच में बहुत बड़ा गैप है। भारत में न्याय व्यवस्था की रफ़्तार बहुत धीमी है। अधिकांश मामलों में हम देखते हैं कि मुकदमों के फैसले आने में साल नहीं अपितु दशक लग जाते हैं। न्यायालय में मुकदमों के लंबित होने के कारणः

    • न्यायपालिका के समक्ष दो प्रमुख चुनौतियाँ हैं- अकुशल वाद प्रबंधन के कारण मुकदमों के निपटारे में विलंब तथा बेंचों में रिक्तियाँ। दरअसल बार और बेंच न्यायिक प्रक्रिया के मूल आधार हैं।
    • निचली अदालतों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों की भारी कमी है। 1987 में विधि आयोग ने प्रति दस लाख की आबादी पर 50 न्यायधीशों की नियुक्ति का विचार दिया था, जबकि भारत में मात्र 17 न्यायाधीश हैं। ऐसी स्थिति में निर्णय की गुणवत्ता और त्वरित न्याय की आशा करना बेमानी है। 
    • न्यायधीशों की नियुक्ति पर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच गतिरोध भी बना रहता है। न्यायधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया तय करने का काम अभी भी अधर में ही लटका हुआ है।
    • न्यायपालिका पर मुकदमों का बोझ तभी कम होगा जब न्यायालय के कार्य अवधि की सीमा बढ़ेगी इसलिये अदालतों के छुट्टी के दिनों में कटौती करने की आवश्यकता है।
    • पुलिस के पास साक्ष्यों के वैज्ञानिक संग्रहण हेतु प्रशिक्षण का अभाव है। इसके अतिरिक्त पुलिस और जेल अधिकारी प्रायः अपने कर्त्तव्यों को पूरा करने में विफल रहते हैं जिससे सुनवाई में अत्यधिक विलंब हो जाता है।

    समय पर न्याय पाना व्यक्ति का अधिकार है इसलिये न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता है और जिसके लिये निम्नलिखित कदम उठाने की आवश्यकता है:

    • न्यायपालिका के मुकदमों के बोझ को कम करने के लिये सर्वप्रथम रिक्त पदों पर जजों की नियुक्तियाँ करने की आवश्यकता है। जिन राज्यों में मुकदमों का बोझ अधिक है वहाँ पर विशेष अदालतों का गठन किया जाना चाहिये। उच्च न्यायलय का विकेंद्रीकरण यानी सभी राज्यों में इसके खंडपीठ का गठन किया जाए ताकि मुकदमों के निस्तारण में तेजी आए। उच्च न्यायालय के खंडपीड की तर्ज पर सर्वोच्च न्यायलय की खंडपीठ भी स्थापित होनी चाहिये। इससे न सिर्फ लंबित मुकदमों के निस्तारण में तेजी आएगी बल्कि यह उच्च न्यायालय के लिये भी फायदेमंद होगा।
    • पारदर्शिता और सूचना प्रवाह में सुधार के लिये सूचना और प्रौद्योगिकी के साधनों तथा आधुनिक वाद-प्रबंधन प्रणाली का उपयोग किया जाना चाहिये।
    • वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिये और लोगों को इसके बारे में अवगत कराया जाना चाहिये।
    • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुछ सर्वोत्तम प्रथाओं जैसे कि वादों का न्यायिक प्रबंधन, मुकदमे की तैयारी, सेटलमेंट कांफ्रेस, कुछ निश्चित चीजें फाइल करने हेतु वकीलों के लिये समय-सीमा तय करना इत्यादि का विकास किया गया है। यह विलंब कम करने में बहुत प्रभावी सिद्ध हुए हैं।
    • प्रभावी कार्यवाही और जाँच प्रणाली में सुधार के लिये पुलिस प्रशासन को अधिक संसाधन प्रदान करने की आवश्यकता है।
    • ग्राम न्यायालयों की स्थापना का कार्य तीव्रता से संपन्न किया जाना आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सामाजिक, आर्थिक अथवा अन्य असमर्थताओं के कारण कोई भी नागरिक न्याय के अवसरों से वंचित हो।

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