उद्योगों के वर्गीकरण के आधार को स्पष्ट करते हुए भारत में उद्योगों की स्थापना हेतु उत्तरदायी कारकों की पहचान कीजिये।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में उद्योगों के विषय में लिखें।
- तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में उद्योगों के वर्गीकरण के आधार को स्पष्ट करते हुए स्थापना के लिये उत्तरदायी कारकों को लिखें।
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स्वतंत्रता से पहले भारतीय उद्योग पिछड़ी अवस्था में थे। अंगेज़ शासकों ने केवल उन्हीं उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जो उनके हित में थे, लेकिन स्वतंत्रता के तुरंत बाद उद्योगों को सुधारने की आवश्यकता पर बल दिया गया। परिणामस्वरूप योजनाबद्ध कार्यक्रम आरंभ किया गया तथा उद्योगों को वर्गीकृत करके उनके विकास पर ध्यान दिया गया। उद्योगों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है-
♦ बड़े पैमाने के उद्योग- सूती कपड़ा व विभिन्न प्रकार की मशीनों से संबंधित यांत्रिक उद्योग।
♦ मध्यम पैमाने के उद्योग- साइकिल, रेडियो, टेलीविज़न आदि इस वर्ग के उद्योग हैं।
♦ छोटे पैमाने के उद्योग- ग्रामीण, लघु तथा कुटीर उद्योग छोटे पैमाने के उद्योग हैं जो व्यक्तिगत परिवारों तक ही सीमित रहते हैं।
- कच्चे माल के तथा निर्मित वस्तुओं के आधार पर-
♦ भारी उद्योग- लोहा इस्पात उद्योग।
♦ हल्के उद्योग- वस्त्र उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक पंखे, सिलाई मशीन आदि।
♦ सार्वजनिक उद्योग- दुर्गापुर, भिलाई और राउरकेला के लौह-इस्पात केंद्र।
♦ निजी उद्योग- खाद्य, कपड़ा, औषधियाँ आदि।
♦ संयुक्त या सहकारी उद्योग
- कच्चे माल के स्रोत के आधार पर-
♦ कृषि आधारित उद्योग-सूती वस्त्र, पटसन, चीनी, वनस्पति तेल आदि।
♦ खनिजों पर आधारित उद्योग –एल्युमिनियम, सीमेंट आदि उद्योग।
♦ वनों पर आधारित उद्योग- कागज़, लाख, रेसिन आदि उद्योग।
भारत में उद्योगों की स्थापना के लिये उत्तरदायी कारक-
- भूमि- उद्योगों की स्थापना के लिये भूमि एक आधारभूत अवयव है। उद्योगों के आकार के अनुसार भूमि की आवश्यकता होती है।
- श्रम- बंगाल और असम का चाय उद्योग अनुकूल जलवायु के साथ-साथ उस क्षेत्र में श्रम की उपलब्धता के कारण सफल हो सका है।
- पूंजी- भूमि तथा श्रम के बाद उद्योगों के लिये तीसरा महत्त्वपूर्ण अवयव पूंजी है। पूंजी के बिना उद्योगों के लिये बुनियादी अवसंरचना को खड़ा करना मुश्किल है।
- कच्चे माल की उपलब्धता- ह्रासमान प्रवृत्ति के कारण कुछ उद्योग उन क्षेत्रों में ही लगाए जाते हैं, जहाँ कच्चे माल की उपलब्धता अधिक हो तथा उनको उद्योगों तक पहुँचाने में कम समय लगता हो।
- उर्जा उपलब्धता- उर्जा उद्योगों की रीढ़ है। जिन क्षेत्रों में उर्जा की आपूर्ति मांग के अनुसार सुलभ होती है, वहाँ उद्योगों की स्थापना करना आसान होता है।
- बाज़ार- उद्योगों की सफलता उनके उत्पादों के लिये विकसित बाज़ारों की उपस्थिति पर भी आधारित होती है। बड़ी आबादी वाला देश होने के कारण भारत कई उद्योगों के लिये एक बड़ा बाज़ार है।
- जलवायु- चाय, सूती वस्त्र आदि उद्योगों के लिये विशेष प्रकार की जलवायु की आवश्यकता होती है। भारत का 80% सूती वस्त्र उद्योग कपास उत्पादक क्षेत्रों में वितरित है। कपास के लिये नम जलवायु आवश्यक है, क्योंकि शुष्क वातावरण में धागा जल्दी टूटता है।
- पर्यावरणीय मंज़ूरी- भारत में प्रशासकीय अनुमति के अलावा उद्योगों को पर्यावरणीय मंज़ूरी भी लेनी होती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि इन उद्योगों की स्थापना से पर्यावरण को कोई क्षति न पहुँचे।