लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    19 वीं शताब्दी की उन घटनाओं/कारकों का उल्लेख करें जो भारत में निम्न जातीय आंदोलनों के उदय का आधार बने। साथ ही, कुछ ऐसे समाज सुधारकों/नेताओं का भी संक्षिप्त परिचय दें, जिन्होंने इन आंदोलनों को सशक्त नेतृत्व दिया।

    08 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    उन्नीसवीं शताब्दी में अनेक धार्मिक सुधार आंदोलन चलाये गए। उनमें से अधिकतर आन्दोलनों के प्रवर्त्तक उच्च वर्णीय हिंदू थे जिन्होंने अस्पृश्यता और जाति-पाति को निन्दनीय ठहराया। किंतु, उसी दौर में कुछ ऐसी घटनाएँ हुई जिनसे निम्न जातियों में जातीय चेतना जगी और उन्होंने जातीय समानता प्राप्त करने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली तथा उनके प्रयत्नों के फलस्वरूप दक्षिणी और पश्चिमी भारत में भिन्न-भिन्न जातीय आंदोलन आरंभ हुए। उनमें से कुछ घटनाएँ निम्नलिखित हैं-

    • पश्चिमी शिक्षा प्रणाली का प्रसार, जिसने समानता के आदर्श की व्याख्या की।
    • अंग्रेजों द्वारा एक समान दण्ड संहिता (IPC-1861) तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC-1872) लागू किया जाना।
    • रेलों का विस्तार (जिसमें प्रत्तेक व्यक्ति टिकट खरीदकर किसी भी उपलब्ध स्थान पर बैठ सकता था ।)
    • राष्ट्रीय जागरण का उदय तथा समानता तथा सामाजिक समतावाद पर आधारित आधुनिक राजनीतिक विचारों के प्रसार ने ऐसा सामाजिक एवं राजनीतिक वातावरण बना दिया, जिसमें जाति प्रथा को न्यायसंगत कहना असंभव हो गया। इन्हीं परिस्थितियों में निम्न जातियों में से ऐसे नेता उभरे जिन्होंने स्वयं इन समानता के आंदोलनों का नेतृत्व किया।

    प्रमुख समाज सुधारक/नेताः

    1. डॉ. टी.एम. नैकरः न्याय दल (Justice Party) के संस्थापक। नैकर ने अस्पृश्यता जैसे अन्याय के विरुद्ध अभियान चलाया। उनका कहना था- ‘कुछ ऐसे तत्व होते हैं जिनका सुधार नहीं हो सकता, उनका केवल अन्त ही करना होता है। ब्राह्मणीय हिन्दू-धर्म एक ऐसा ही तत्व है।’
    2. श्री नारायण गुरूः केरल में एझवा जाति से संबंध रखने वाले श्री नारायण गुरू ने केरल तथा केरल से बाहर ‘श्री नारायण धर्म परिपालन योगम्’ नाम की संस्था तथा उसकी शाखाएँ स्थापित की। उन्होनें गाँधीजी के चतुर्वर्णीय व्यवस्था में विश्वास रखने के लिये उनकी आलोचना की क्योंकि उनकी दृष्टि में यह चतुर्वर्णीय व्यवस्था ही जाति-पाति तथा अस्पृश्यता को जन्म देने तथा बनाये रखने के लिये उत्तरदायी है। उन्होंने एक नया नारा दिया- ‘मानव के लिये एक धर्म, एक जाति तथा एक ईश्वर।’
    3. ज्योतिराव फूलेः पश्चिमी भारत के पुणे में माली कुल से संबंध रखने वाले ज्योतिराव गोविंदराव फूले ने 1873 में ‘सत्य शोधक सभा’ बनाई जिसका उद्देश्य समाज के कमजोर वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाना था। उन्होंने सभी वर्णों के अनाथों एवं स्त्रियों के लिए अनेक पाठशालाएँ व अनाथालय खोले।
    4. डॉ. भीमराव अम्बेडकरः महार कुल में जन्में तथा बचपन से ‘अस्पृश्यता’ का दंश झेलने वाले अम्बेडकर भारत के संविधान निर्माता बने। उन्होंने अपने पूरे जीवन में निम्न जातियों के उत्थान एवं सम्मान के लिये संघर्ष किया तथा अस्पृश्यता निवारण तथा निम्न जातियों के उत्थान हेतु संविधान में प्रावधान भी किये।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2