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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में ब्रिटिश काल की शुरुआत के संदर्भ में इतिहासकारों में प्रायः मतभेद पाया जाता है। तथापि, यह तो तथ्य है कि ब्रिटिश काल की शुरूआत 18वीं शताब्दी में चुकी थी। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना की सफलता में कौन-कौन से कारक उत्तरदायी थे?

    12 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    18वीं शताब्दी के मध्य में भारत में कई ऐतिहासिक शक्तियाँ गतिशील थी। उन शक्तियों में मध्य हुए संघर्षों ने देश को नई दिशा की ओर उन्मुख किया। कुछ इतिहासकार भारत में ब्रिटिश काल की शुरुआत वर्ष 1740 से मानते हैं जब भारत में सर्वोच्चता के लिये आंग्ल-फ्राँसीसी संघर्ष की शुरुआत हुई। कुछ इसे 1754 का वर्ष मानते हैं, जब अंग्रेज़ों ने बंगाल के नवाब को प्लासी में परास्त किया। जबकि, कुछ अन्य इतिहासकार इसे 1761 का वर्ष मानते हैं जब पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमदशाह अब्दाली ने मराठाओं को परास्त कर अंग्रेज़ी साम्राज्य की स्थापना की राह आसान बनाई। उस दौर में शुरू हुआ राजनीतिक रूपान्तरण लगभग एक शताब्दी में जाकर पूरा हुआ।

    भारत में ब्रिटिश सफलता के कारणः
    अठारवीं शताब्दी के मध्य से लेकर लगभग एक शताब्दी तक देश के विभिन्न भागों में ब्रिटिश विजय प्रगति पर रही, उन्होंने कई कूटनीतिक और सैन्य प्रतिकूलताओं को भी झेला परंतु अंत में विजयी होकर निकले। उनकी सफलता के कारण निम्नलिखित रहे-

    • उत्कृष्ट हथियारः 18वीं शताब्दी में भारतीय शक्तियों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले हथियार बेहद धीमे एवं भारी थे। उन हथियारों को अंग्रेज़ों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले यूरोपीय बंदूकों एवं तोपों ने गति व दूरी दोनों ही लिहाज से बाहर कर दिया था। उस दौर में अन्य शक्तियों के मुकाबले अंग्रेज़ अस्त्रों, सैन्य युक्तियों एवं रणनीति में सर्वश्रेष्ठ थे।
    • सैन्य अनुशासनः अनुशासन की कड़ी व्यवस्था और नियमित वेतन भुगतान ऐसे साधन थे जिनके माध्यम से कंपनी ने अधिकारियों एवं सैनिकों की सत्यनिष्ठा को सुनिश्चित किया। अधिकतर भारतीय शासकों के पास सेना के वेतन के नियमित भुगतान के लिये पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं था। भारतीय शासक निजी परिवारजनों या किराये के सैनिकों की भीड़ पर निर्भर थे, जो अनुशासन के प्रति उदासीन थी और जो कभी भी विद्रोही बनकर विरोधी खेमे में जा सकती थी।
    • असैनिक अनुशासनः कंपनी के अधिकारियों एवं सैनिकों को उनके कौशल और विश्वसनीयता के आधार पर कार्य सौंपे जाते थे, न कि वंशागत या जाति के आधार पर। इससे वे अपने उद्देश्यों के प्रति जागरूक तथा कड़े अनुशासन के अधीन रहते थे। 
    • मेधावी नेतृत्वः क्लाइव, वारेन हेस्टिंग्ज, एलफिन्सटन, मुनरो, डलहौजी इत्यादि ने नेतृत्व के दुर्लभ गुणों का प्रदर्शन किया। भारत की तरफ से भी हैदरअली, टीपू सुल्तान, जसवंत राव होल्कर, सिंधिया जैसा प्रतिभाशाली नेतृत्व था परंतु भारतीय नेतृत्व प्रायः आपस में ही लड़ते रहते थे। भारत की एकता एवं अखंडता के लिये संघर्ष या युद्ध की भावना की अभिप्रेरणा उनमें नहीं थी। 
    • वित्तीय सुदृढ़ताः अंग्रेज़ी वित्तीय दृष्टि से मजबूत थे क्योंकि कंपनी ने कभी भी अपने व्यापार एवं वाणिज्य को कमजोर नहीं पड़ने दिया। उनका लाभ कमाने के साथ-साथ युद्धों का वित्तीयन करने का प्रबंधन बेजोड़ था।
    • राष्ट्रवादी अभिमानः यह वह कारक था, जो भारत में समस्त ब्रिटिश शक्ति को सबसे ज़्यादा प्रेरित करता था। आर्थिक रूप से अग्रसर ब्रिटिश लोग भौतिक प्रगति में विश्वास रखते थे तथा अपने राष्ट्रीय गौरव पर अभिमान करते थे, इसके विपरीत, भारतीय लोग/शासक कमजोर-विभाजित-स्वार्थी तथा अज्ञानता व अंधविश्वास में डूबे थे। उनमें एक अखंड राजनीतिक राष्ट्रवाद की भावना का नि नितात्त अभाव था।

    निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि अंग्रेज़ों की रणनीति व ताकत तो ज़्यादा उत्तम थी ही, भारतीय शासक/जनता की कमजोरियाँ एवं आपसी झगड़े भी अंग्रेज़ों की ताकत बने। फलस्वरूप भारत में एक नया राजनीतिक रूपान्तरण हुआ।

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