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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ब्रिटिश भारत में शिक्षा को प्रोत्साहन देने के संबंध में हुए ‘आंग्ल-प्राच्य विवाद’ की चर्चा करें एवं बताएँ कि इस विवाद के समाधान के पश्चात् भारतीय शिक्षा के विकास की स्थिति क्या रही?

    17 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    1813 के चार्टर एक्ट में, भारत में स्थानीय विद्वानों को प्रोत्साहित करने और आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कंपनी द्वारा प्रतिवर्ष 1 लाख रुपये प्रदान करने का प्रावधान रखा गया था। किंतु, इस राशि को खर्च करने के प्रश्न पर विवाद हो जाने के कारण यह राशि उपलब्ध नहीं कराई गई।

    वस्तुतः ‘लोक शिक्षा समिति’ में दो दल थे। एक दल प्राच्य (Oriental) शिक्षा का समर्थक था जबकि दूसरा आंग्ल शिक्षा का। प्राच्य शिक्षा समर्थकों का तर्क था कि परंपरागत भारतीय भाषाओं एवं साहित्य को प्रोत्साहित किया जाए। दूसरी ओर, आंग्ल-शिक्षा समर्थकों का तर्क था कि यह रकम आधुनिक पाश्चात्य अध्ययनों को प्रोत्साहित करने के लिये खर्च की जाए। इन दोनों दलों के मध्य विवाद को ही आंग्ल-प्राच्य विवाद कहा जाता है।

    दूसरी ओर, आंग्ल शिक्षा समर्थकों में भी शिक्षा के माध्यम को लेकर विवाद पैदा हो गया। एक पक्ष शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी को बनाए रखने पर जोर दे रहा था तो दूसरा पक्ष शिक्षा का माध्यम भारतीय (देशी) भाषा को बनाए रखने पर जोर दे रहा था। दोनों विवाद 1835 में तब समाप्त हुए, जब ब्रिटिश सरकार ने निर्णय किया कि वह अपने सीमित संसाधनों को केवल अंग्रेजी भाषा के माध्यम से पढ़ाने में लगाएगी।

    इस निर्णय के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने तेजी से कार्रवाई करते हुए अपने स्कूलों एवं कॉलेजों में अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बना दिया। उसने बड़ी संख्या में प्राथमिक स्कूल खोलने के बजाय थोड़े से अंग्रेजी स्कूल खोले। शिक्षा के मद में दी गई धनराशि काफी कम थी अतः अधिकारियों ने तथाकथित ‘अधोगामी निस्यंदन सिद्धांत (downward infiltration theory) को अपनाया इसके माध्यम से केवल उच्च एवं मध्यम वर्ग के थोड़े से लोगों को शिक्षित करने पर खर्च किया गया एवं इन लोगों से आशा की गई कि ये जनसाधारण को शिक्षित करेंगे और उनके बीच आधुनिक विचारों का प्रचार करेंगे।

    निष्कर्षः वस्तुतः भारतीयों में शिक्षा का प्रसार औपचारिकता मात्र था तथा सरकार की योजना समाज के उच्च एवं मध्यम वर्ग के एक तबके को शिक्षित कर एक ऐसा वर्ग तैयार करना था जो रक्त और रंग से भारतीय हों किंतु आचार, विचार एवं प्रवृत्ति से अंग्रेज हो।

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