पोर्ट्समाउथ की संधि (Treaty of Portsmouth) ने जापान को तो एक बड़ी साम्राज्यवादी ताकत के रूप में पहचान दिलाई ही, चीन की राजनीति में भी नये युग के बीज बोये। चर्चा कीजिये।
18 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासमंचूरिया एवं कोरिया में आपसी हितों के टकराव के कारण 1904-05 में रूस-जापान के मध्य शुरू हुए युद्ध का अंत 5 सितंबर, 1905 में पोर्ट्समाउथ की संधि से हुआ। इस युद्ध में जापान ने रूस को सभी मोर्चों पर शिकस्त दी थी। अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट की मध्यस्थता के कारण यह युद्ध समाप्त हुआ अपनी बड़ी पराजय के कारण रूस संधि कर लेने के लिये विवश हुआ। इस संधि की प्रमुख शर्तें निम्नलिखित थी-
गौर करने की बात यह थी कि संधि में एक भी शर्त ऐसी नहीं थी जो विजेता जापान को रूस से हरजाना दिलाती। फिर भी, इस युद्ध एवं संधि से जापान को अभूतपूर्व लाभ हुआ। यथा-
इस प्रकार, पोर्ट्समाउथ संधि उपरांत जापान का उत्साह बहुत बढ़ गया। रूस पर विजय के बाद उसने उग्र साम्राज्यवादी नीतियाँ अपनायी जिसके परिणामस्वरूप उसका विशाल साम्राज्य स्थापित हुआ।
रूस-जापान युद्ध से चीन में भी नवजागरण के बीज अंकुरित हुए। चीन के देशभक्तों के लिये रूस-जापान युद्ध एक बहुत बड़ी शिक्षा थी। इस युद्ध में विशाल रूस को एक छोटे से देश जापान ने हरा दिया। यह इसलिये संभव हो पाया क्योंकि जापान ने समय की गति पहचानकर अपना तेजी से आधुनिकीकरण किया। इस पृष्ठभूमि में चीन के लोग भी अपने देश को जापान की तरह उन्नत और शक्तिशाली राज्य बनाने की बात सोचने लगे। चीन के देशभक्तों ने अपने देश में नवयुग लाने की सोची और इस प्रकार 1911 ई. की क्रांति का आधार तैयार हुआ।
अतः निश्चय ही पोर्ट्समाउथ की संधि जापान एवं चीन के भविष्यलक्षी उद्देश्यों का प्रस्थान बिंदु बनी।