1945 में आजाद हिन्द फौज के युद्धबंदियों के समर्थन में चलाया गया आंदोलन अपने स्वरूप में राष्ट्रव्यापी होने के साथ-साथ भारतीयों के मध्य ‘एकता’ की पुष्टि का प्रतीक भी बना। चर्चा कीजिये।
20 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास1945 में सरकार ने आजाद हिंद फौज के कैदियों पर सार्वजनिक मुकदमा चलाने का निर्णय लिया। मुकदमा नवंबर में लाल-किले में एक सिख (गुरूबख्श सिंह), एक हिन्दू (प्रेम कुमार सहगल) और एक मुसलमान (शाहनवाज खान) को एक ही कटघरे में खड़ा करके चलाया गया। सरकार द्वारा इन युद्धबंदियों पर मुकदमा चलाने के निर्णय के विरूद्ध पूरे देश में बहुत तीव्र प्रतिक्रिया हुई। पूरा देश इन सैनिकों के बचाव में आ गया। जिन राजनीतिक दलों ने आजाद हिंद फौज के युद्धबंदियों का समर्थन किया उनमें कांग्रेस मुस्लिम लीग, कम्युनिस्ट पार्टी, यूनियनवादी, अकाली जस्टिस पार्टी, रावलपिंडी के अहरार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदू महासभा तथा सिख लीग प्रमुख थी। उस समय कांग्रेस के भूलाभाई देसाई, जवाहरलाल नेहरू, तेज बहादुर सप्रू, कैलाशनाथ काटजू एवं आसफ अली ने युद्धबंदियों के बचाव पक्ष की ओर से वकालत की।
युद्धबंदियों को रिहा करने के लिये भारतीयों ने अप्रत्याशित एकता का परिचय दिया। उनके समर्थन में राष्ट्रव्यापी आंदोलन एवं प्रदर्शन किये गए। समाचार-पत्रों ने संपादकीय लेख लिखे व आंदोलन की खबरों को प्रमुखता से छापा। 1 नवम्बर से 11 नवम्बर तक आजाद हिन्द फौज सप्ताह का आयोजन किया गया तथा 12 नवम्बर 1945 को आजाद हिन्द फौज दिवस मनाया गया।
समाज के सभी वर्गों एवं राजनीतिक दलों ने इस आंदोलन का समर्थन किया। शहरों से दूर-दराज गाँवों तक आंदोलन का प्रभाव था। इस आंदोलन में छात्र सबसे अधिक सक्रिय थे। छात्रों ने न केवल शिक्षण संस्थानों का बहिष्कार किया अपितु सभाओं, प्रदर्शनों एवं हड़तालों का भी आयोजन किया। दुकानदारों ने दुकानें बंद कर दी। एक कोष बनाया गया जिसमें नगरपालिकाओं, जिला बोर्डों, गुरूद्वारा समितियों, कैंब्रिज मजलिस, कलकत्ता और बंबई के फिल्मी सितारों तथा अमरावती के तांगे वालों तक ने चंदा दिया।
आजाद हिन्द फौज आंदोलन का दायरा इतना विस्तृत एवं प्रभाव इतना गहरा था कि अभी तक ब्रिटिश राज के परम्परागत समर्थक माने जाने वाले सरकारी कर्मचारी एवं सशस्त्र सेनाओं के लोग भी सरकार के विरूद्ध हो गए तथा उन्होंने आंदोलनकारियों का समर्थन किया। उन लोगों को युद्धबंदियों से पूरी सहानुभूति थी। वे सरकार विरोधी सभाओं में जाने लगे थे, भाषण सुनते थे तथा चंदा भी भेजते थे।
इस प्रकार, आजाद हिन्द फौज के युद्धबंदियों के समर्थन में चलाये गए आंदोलन ने न केवल ‘भारतीय एकता’ का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत किया बल्कि यह भी सिद्ध किया कि अब भारतीयों के संबंध में कोई भी निर्णय लेने का अधिकार भारतीयों ने प्राप्त कर लिया है। आंदोलन के सामाजिक एवं भौगोलिक दायरे ने भी आंदोलन के राष्ट्रव्यापी स्वरूप की पुष्टि की।