"ब्रिटिश काल में घटी कुछ घटनाओं ने ऐसा राजनीतिक एवं सामाजिक वातावरण तैयार किया कि जाति प्रथा को न्यायसंगत कहना असंभव हो गया।" इस कथन की पुष्टि करते हुए ब्रिटिश भारत के प्रमुख निम्नजातीय आंदोलनों की चर्चा करें।
उत्तर :
जाति प्रथा हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीति थी जो न केवल अपमानजनक, अमानवीय और जन्मगत असमानता के जनतंत्र विरोधी सिद्धांत पर आधारित थी बल्कि सामाजिक विघटन का कारण भी थी।
ब्रिटिश शासन काल में अनेक ऐसी घटनाएँ हुई जिन्होंने धीरे-धीरे जाति प्रथा की जड़ों को कमजोर किया। आधुनिक उद्योगों की स्थापना, सड़क एवं रेलवे आवागमन का विकास एवं बढ़ते नगरीकरण ने विभिन्न जातियों के बीच संपर्क को बढ़ाया। प्रशासनिक क्षेत्र में अंग्रेजों ने कानून के सामने सबकी समानता का सिद्धांत लागू किया, जातिगत पंचायतों से उनके काम छीन लिये और प्रशासनिक सेवाओं के दरवाजे धीरे-धीरे सभी जातियों के लिये खोल दिये। इसके अलावा, नई शिक्षा प्रणाली पूणतः धर्म निरपेक्ष थी एवं जातिगत भेदभाव के खिलाफ थी।
इनके अलावा राष्ट्रीय जागरण के विकास, समानता और सामाजिक समतावाद पर आधारित आधुनिक राजनीतिक विचारों के प्रसार आदि ने ऐसा राजनीतिक एवं सामाजिक वातावरण पैदा किया कि जाति-प्रथा को न्यायसंगत कहना असंभव हो गया। इसलिये निम्नजातियों में ऐसे नेता उभरे जिन्होंने स्वयं इन समानता आंदोलनों का नेतृत्व किया।
प्रमुख निम्नजातीय आंदोलन
- जस्टिस पार्टी की स्थापनाः 1917 में पी. त्यागराज एवं टी.एम नैयर ने इसकी स्थापना की जिसका उद्देश्य सामाजिक समानता की स्थापना करना था। 1937 में रामास्वामी नायकर इस पार्टी के सभापति बने। उन्होंने अस्पृश्यता के खिलाफ अभियान चलाया तथा हिंदू धर्म में व्याप्त असमानता का विरोध किया एवं इनके खिलाफ द्रविड़ों को एकजुट करने का प्रयास किया।
- अन्नादुरै तथा द्रविड़ मुन्नैत्र कड़गम (DMK): नायकर के अनुयायी सी.एन. अन्नादुरै ने द्रविड़ आंदोलन को आगे बढ़ाया तथा जस्टिस पार्टी का नाम द्रविड़ संघ कर दिया। 1949 में इस दल का विभाजन हो गया तो अन्ना ने अपने दल का नाम DMK कर दिया।
- नारायण गुरु तथा श्री नारायण धर्म परिपालन योगम् (SNDP): नारायण गुरु केरल की एझवा जाति के नेता थे जिन्होंने एझवा जाति के उत्थान के लिये SNDP की स्थापना की। इन्होंने एझवा से नीची मानी जाने वाली जातियों के प्रति अस्पृश्यता को समाप्त किया एवं ऐसे मंदिर बनवाए जो सभी जातियों एवं वर्णों के लिये खुले थे। उन्होंने नारा दिया-"मानव के लिये एक धर्म, एक जाति और एक ईश्वर।
- ज्योतिबा फूले और सत्यशोधक समाजः ज्योतिबा फूले का जन्म पूणे के माली (निम्नजातीय) कुल में हुआ था। इन्होंने सत्यशोधक समाज की स्थापना कर न केवल ब्राह्मणों द्वारा किये जाने वाले अत्याचार का विरोध किया सभी वर्णों के अनाथों तथा स्त्रियों के लिये पाठशालाएँ और अनाथालय खोले।
- अंबेडकर एवं दलित आंदोलनः अंबेडकर निम्न जातियों के उत्थान के लिये प्रमुख धर्म योद्धा थे। इन्होंने 1924 में बम्बई में ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ बनाई जिसका उद्देश्य अस्पृश्य लोगों की नैतिक एवं भौतिक उन्नति करना था। उन्होंने अछूतों के लिये मंदिरों में प्रवेश एवं कुओं से पानी भरने के नागरिक अधिकारों को प्राप्त करने का प्रयास किया। अंबेडकर ने दलितों के लिये पृथक निर्वाचन मंडल की मांग की जिसे ब्रिटिश सरकार ने स्वीकार कर लिया था लेकिन गांधी के दबाव से पूना पैक्ट (1932) के माध्यम से दलितों के लिये साधारण वर्ग में ही सीटों का आरक्षण किया गया।
इन्हीं आंदोलनों के परिणामस्वरूप सदियों से दबे कुचले दलित वर्गों में चेतना जागृत हुई एवं उन्होंने अपने अधिकारों एवं समानता की मांग प्रारंभ की।