प्रथम विश्वयुद्ध में हुए व्यापक विनाश के उपरांत विश्व में स्थायी शांति की स्थापना हेतु वैश्विक स्तर पर उभरी निरस्त्रीकरण की मांग के आलोक में राष्ट्रसंघ द्वारा आयोजित किया गया ‘निरस्त्रीकरण सम्मेलन’ विभिन्न राष्ट्रों द्वारा सर्वहित की अपेक्षा अपने राष्ट्रीय हितों को वरीयता देने के कारण असफल हुआ। चर्चा करें।
27 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासप्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व यूरोपीय राष्ट्रों के मध्य शस्त्रों को असीमित गति से बढ़ाने की प्रतिस्पर्द्धा ही प्रथम विश्व युद्ध का मूलभूत कारण थी। इस होड़ ने यूरोप में एक भयानक सैनिकवादी प्रवृत्ति को उत्पन्न किया जिसने युद्ध की विस्फोटक परिस्थितियाँ पैदा की। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ही यह निश्चित हो गया था कि राष्ट्रों के मध्य शस्त्रास्त्रों में वृद्धि की होड़ को रोकना होगा और निरस्त्रीकरण की दिशा में ठोस कदम उठाने ही होंगे।
अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन के ‘चौदह सूत्रों’ के चौथे सूत्र में यह बात कही गई थी कि इस बात की पर्याप्त गारंटी होनी चाहिये कि राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रों के शस्त्रास्त्र कम-से-कम किये जाएँ। राष्ट्रसंघ के विधान की आठवीं धारा द्वारा राष्ट्रसंघ के सदस्यों ने यह स्वीकार किया था कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किसी भी राष्ट्र को शस्त्रास्त्र में निम्नतम सीमा निर्धारित करना शांति बनाये रखने के लिये आवश्यक है।’
दिसम्बर, 1925 में राष्ट्रसंघ की कौंसिल ने एक ‘निरस्त्रीकरण सम्मेलन प्रारम्भिक आयोग’ की नियुक्ति की। आयोग को निरस्त्रीकरण समस्या का अध्ययन करके सिफारिशों का एक प्रारूप करने का कार्य दिया गया था ताकि उस प्रारूप के आधार पर एक व्यापक निरस्त्रीकरण सम्मेलन पर विचार हो सके।
पाँच वर्षों के निरन्तर प्रयास के बाद आयोग ने अपने प्रतिवेदन में सिफारिश की कि प्रत्येक राज्य के लिये यह निर्णय कर दिया जाए कि उसकी थल, जल और नभ सेनाओं में अधिक-से-अधिक कितने आदमी हों। युद्ध में जहरीली गैसों तथा रोग के कीटाणुओं का प्रयोग सर्वथा वर्जित हो और एक स्थायी आयोग नियुक्त किया जाए जो निरस्त्रीकरण की प्रगति के विषय में जानकारी प्राप्त करता रहे और समय-समय पर अपनी रिपोर्ट देता रहे। इसके पश्चात् 2 फरवरी, 1932 को जेनेवा में ‘निरस्त्रीकरण सम्मेलन’ हुआ जिसमें 61 राज्य सम्मिलित हुए, जिनमें यू.एस. और सोवियत संघ भी थे, जो राष्ट्रसंघ के सदस्य नहीं थे। इस सम्मेलन में जर्मनी, फ्राँस, ब्रिटेन, सोवियत संघ और अमेरिका, सभी ने निरस्त्रीकरण के संबंध में अपने-अपने प्रस्ताव पेश किये परंतु किसी भी प्रस्ताव पर आम सहमति नहीं बन पाई। मई, 1934 तक निरस्त्रीकरण सम्मेलन के कई अधिवेशन हुए परंतु 29 मई, 1934 को हुए अंतिम अधिवेशन में सम्मेलन के अध्यक्ष आर्थर हैण्डरसन ने सम्मेलन को पूर्णतः विफल घोषित करते हुए खुले तौर पर फ्राँस को निरस्त्रीकरण की असफलता के लिये जिम्मेदार ठहराया। इस प्रकार दो वर्ष के निरन्तर प्रयास के बाद भी राष्ट्रसंघ का निरस्त्रीकरण सम्मेलन एक भी बंदूक, टैंक या हवाई जहाज में कमी नहीं कर पाया।
सम्मेलन की असफलता के मूल कारणः
इस प्रकार, विभिन्न विपरीत शक्तियों, मनोवृत्तियों एवं प्रतिरोधों की शक्तिशाली लहरों के थपेड़ों से निरस्त्रीकरण का जहाज सफर से पहले ही टूट कर बिखर गया।